बेचारी सिंथिया

– दिव्या माथुर

हायसिंथ अथवा थियो, उर्फ़ ‘पुअर सिंथिया’ अथवा ‘घुन्नी सिंथिया’ जैसे नामों और उपनामों से सुसज्जित, सिंथिया को सिर्फ़ उसकी माँ ईडिथ ही उसे पूरे नाम से संबोधित किया करती हैं, पापा चार्ल्स उसे प्यार से ‘थियो’ पुकारते हैं।  स्कूल और कॉलेज के दौरान सिंथिया ही प्रचलित रहा किंतु कुछ वर्षं से वह मात्र ‘पुअर सिंथिया’ कर रह गई है।

एक खाते पीते परिवार की इकलौती बेटी हायसिंथ कब, कैसे और क्यूँ ‘पुअर सिंथिया’ बन गयी, इसकी कहानी बहुत भी लंबी नहीं है। 

हायसिंथ बचपन से ही घुन्नी है, बिल्कुल अपनी माँ ईडिथ की जैसी; फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि माँ के पेट में एक लंबी सी दाढ़ी है। उनके रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों सभी का मानना है कि ईडिथ ने चार्ल्स और हायसिंथ दोनों को अपने कब्ज़े में ले रखा है। कहने को चार्ल्स डाक्टर हैं पर जहां तक घर का सवाल है, रोग का पूर्वानुमान, निदान और उपचार सब ईडिथ के हाथ में हैं। हायसिंथ का अपना कोई अस्तित्व नहीं है; उसके नपे तुले कदमों पर माँ का पहरा रहता है। उसने कभी स्वतंत्र रूप से शायद न तो कुछ सोचा और न कुछ करने का प्रयत्न किया; थोड़ा बहुत जो भी कुछ करती, वह उत्तम होता, क्योंकि ईडिथ के कहे मुताबिक होता; शब्द दर शब्द। घर के बाहर माँ-बेटी चुप्पी धारे दुनिया को देखतीं, सुनतीं और, आवश्यकता पड़ने पर, अपना सिर हामी में हिला कर घर लौट आतीं और फिर शुरू होता ईडिथ का सिलसिलेवार तपसिरा, जो घंटों चलता, तब तक, जब तक कि हायसिंथ उनकी बातों से पूरी तरह सहमत न दिखाई दे। बचपन से इस कड़े अनुशासन में रहने के कारण उसके दिमाग़ ने काम करना ही बंद कर दिया।  

स्कूल में सिंथिया के बॉय-फ़्रेंड्स बनने का प्रश्न ही नहीं उठता था क्योंकि ईडिथ साये की तरह उसके साथ रहती थी। कोई लड़का सिंथिया से बात भी करता तो ईडिथ को घूरता हुआ देख दुम दबा कर भाग लेता। कॉलेज में बेटी के साथ आना जाना कुछ अधिक हो जाता, मज़ाक बनता सो अलग, इसलिए चाहते हुए भी ईडिथ को हायसिंथ को कुछ छूट देनी पड़ी, हिदायदों की एक लंबी फ़ेहरिस्त के साथ, जो सुबह शाम दोहराई जाती। घर पहुँच कर ईडिथ को अपने पूरे दिन का हिसाब-किताब देते, फिर मम्मी द्वारा उसकी गहरी पड़ताल और चेतावानियाँ सुनते सुनते हायसिंथ जल्दी ही परेशान हो गई थी। इस दौरान हायसिंथ के कुछ सहपाठियों को उसके करीब आने का मौका मिला। जल्दी ही उसने ईडिथ से बहुत कुछ छिपाना शुरू कर दिया और यहीं से शुरुआत हुई उसके घुन्नेपन की। ईडिथ की तरह वह भी बिना सोचे समझे हाँ में सिर हिलाने लगी। 

अपनी उम्र की सहेलियों की तुलना में कुछ देर से ही सही, किंतु हायसिंथ भी एक युवति में परिवर्तित हो रही थी। ईडिथ से भला यह कब तक छिपता? सहपाठियों का जब तब घर या पहुँच जाना और हायसिंथ को पार्टियों में ले जाने की ज़िद करना आम होता जा रहा था। चार्ल्स के समझाने पर कि बेटी अब बच्ची नहीं रही है; ईडिथ और भड़क उठती। 

‘वी आर डीसैन्ट ब्रिटिश पीपल,’ ईडिथ का तकियाकलाम था,

ईडिथ के लिए पड़ोसी और दोस्त सब ऐरे गैरे थे, जिनमें देशी-विदेशी सभी शामिल थे। उनकी पड़ोसन डॉ ललिता स्वामीनाथन, जो तंग या चुकीं थीं ईडिथ के इन कटाक्षों से, एक दिन बोल ही उठीं।

‘ईडिथ, किसी भी मूल के हों, हम भी डीसैन्ट ब्रिटिश सिटीज़न्स हैं,’ ललिता और और उसके पति हरि स्वामीनाथन दोनों ही डाक्टर थे जो चार्ल्स के साथ ही पढ़े-लिखे थे, अच्छे दोस्त हुआ करते थे किंतु विवाह के बाद से उनका मिलना जुलना कम हो गया था क्योंकि ललिता की हाज़िरजवाबी से घबराती थी ईडिथ। उसे विदेशी रहन सहन अथवा खानपान कतई पसंद नहीं थे; इसलिए जो थोड़ा बहुत आना जाना था, वह भी बंद हो चुका था किंतु चार्ल्स, हरि और ललिता की मित्रता कायम रही। जब भी ईडिथ बेटी को लेकर अपने पीहर रहने जाती, चार्ल्स की शामें स्वामीनाथन परिवार के साथ ही गुज़रा करतीं, जिनके दो बच्चों जानवी और जयदीप से चार्ल्स की अच्छी बहस हुआ करती थी। यह भी किसी से छिपा नहीं था कि जयदीप सिंथिया को चाहने लगा था। जानवी जब इस विषय पर उन दोनों को चिढ़ाती तो सिंथिया को भी मन ही मन अच्छा लगता कि कोई तो है जो उसमें ख़ामियाँ नहीं निकालता, जैसी भी है, वह उसे चाहता है। हायसिंथ नाना-नानी के घर न जाने के बहाने ढूँढ लेती और ईडिथ की अनुपस्थिति में सब के सब स्वामीनाथन के घर पर ही टिके रहते। 

इसके पहले कि बॉय-फ्रेंड जैसी कोई दुर्घटना घट जाती, ईडिथ ने बेटी के लिए वर ढूँढने शुरू कर दिए। चार्ल्स टिंडल के डॉक्टर होने के नाते कुछ अच्छे ब्रिटिश परिवारों में उनका उठना बैठना था। ईडिथ को बहुत दूर नहीं जाना पड़ा; उसकी नज़र चार्ल्स के अकाउंटैंट आर्थर फ़्रेडरिक के बेटे जेम्स पर जा टिकी, जो अपने पिता की ही तरह काफ़ी हैन्डसम था। उसकी बहन मायरा भी हायसिंथ की हमउम्र थी; जेम्स दो साल बड़ा था। आर्थर की सीधीसादी पत्नी डोरोथी को पटाने में ईडिथ को अधिक समय नहीं लगा; जल्दी ही टिंडल-फ़्रेडरिक का मेलजोल बढ़ने लगा हालांकि ईडिथ अपने को अप्पर-मिडल क्लास से जोड़ती थी; उसके लिए बाकी सारे दोस्त लोअर मिडल-क्लास थे। फ़्रेडरिक परिवार से रिश्ता बनाने के लिए वह इसलिए तैयार थी क्योंकि इस परिवार में उसका और उसकी बेटी दोनों का रौब बना रह सकेगा। फ़्रेडरिक परिवार में आर्थर की चलती थी; जिसका स्वभाव उग्र था, उसकी और बच्चों की मांगों को पूरा करते डोरोथी के लिए चौबीस घंटे कम पड़ते थे; दोस्तों से मिलने बतियाने की उसे कभी फ़ुरसत ही नहीं मिली। ईडिथ को अपने से बतियाते देख कर डोरोथी को अच्छा महसूस होता; क्योंकि ईडिथ के सामने आर्थर और बच्चे भी उससे तमीज़ से पेश आते थे। आपस में लड़ने झगड़ने के अभ्यस्त फ़्रेडरिक परिवार में आजकल शांति रहने लगी। 

हायसिंथ को जेम्स और मायरा के साथ घूमने फिरने की छूट मिल चुकी थी। सीधे-सादे जयदीप के मुकाबले में चलतापुर्ज़ा जेम्स कहीं अधिक स्मार्ट और फ़ैशनेबल था।  ईडिथ को जयदीप एक आँख नहीं सुहाता था। दुबला पतला जयदीप बचपन से मोटा चश्मा पहनता था।  

‘अभी से इसका यह हाल है, कॉलेज पहुंचेगा तो ये कैसे पढ़ाई करेगा? सारी ज़िंदगी माँ-बाप के सहारे थोड़े ही गुज़ारी जा सकती है,’ ईडिथ के बड़बड़ाने पर हायसिंथ भी हामी में सिर हिला देती। वैसे, अब उसे कहाँ फ़ुरसत थी जानवी और जयदीप से मिलने की।

‘हायसिंथ जैसी बेवकूफ लड़की के प्यार में तुम कैसे पड़ सकते हो?’ गुस्से में जानवी ने जयदीप को लताड़ दिया। मम्मी-पापा ने भी मायूस जयदीप से अपना ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित करने को कहा।

स्वामीनाथन परिवार के घर में चल रहे इस ड्रामे से अनभिज्ञ और जेम्स और मायरा से प्रभावित हायसिंथ आजकल ईडिथ से अच्छे पहनावे खरीदने की ज़िद करने में लगी थी। ईडिथ का फ़ैशन से दूर दूर तक लेना देना नहीं था पर उसे बेटी की मांगे स्वीकार करनी पड़ीं। एक तो इसलिए उसे संतोष था कि उसके लिए अच्छा घर-वर तो मिल ही गया है, दूसरे, यदि हायसिंथ समय के साथ नहीं बदली तो जेम्स के तालाब में एक से एक खूबसूरत मछलियाँ हैं, वह न जाने कब हाथ से फिसल जाए। हायसिंथ के लिए नई वार्डरोब खरीदते वक्त, ईडिथ ने उत्साह में अपने लिए भी दो नयी पोशाकें खरीद लीं। जीवन में पहली बार पोशाकों पर इतना बड़ा खर्चा करना उसे अधिक नहीं खटका, चार्ल्स भी आश्चर्यचकित रह गया कि उसकी महाकंजूस पत्नी इतना कैसे बदल गई पर घुन्नी ईडिथ उसे कुछ बताए तब न। यही नहीं, हायसिंथ ने भी जेम्स के लिए एक आकर्षक बुशर्ट खरीदने की बात चलाई तो ईडिथ न केवल झट मान गई बल्कि उसने एक महंगी पोशाक डोरोथी के लिए भी खरीद डाली, जिसे उसे शनिवार की शाम को पहने वह इतराती हुई रात का भोजन परोस रही थी। जीवन में पहली बार आर्थर को लगा कि परिवार के रख-रखाव में वह चूक गया था। रविवार की दोपहर को ही फ़्रेडरिक परिवार भी शॉपिंग के लिए ऑक्सफ़ोर्ड स्ट्रीट पर घूमता हुआ दिखाई दिया। पैसा बहा कर भी आर्थर संतुष्ट था और परिवार प्रसन्न।

यह सब ईडिथ की मेहरबानी से संभव हुआ था, जिसके लिए कम से कम डोरोथी उसकी शुक्रगुज़ार थी। बच्चों के मिलने जुलने पर कोई प्रतिबंध नहीं रहा था; समय पर घर लौटने का भी नहीं। जेम्स और मायरा के साथ हायसिंथ बाहर घूमने निकलती पर जल्दी ही मायरा अपने ब्वॉय-फ्रेंड एंड्रू के साथ कहीं गायब हो जाती। जेम्स और हायसिंथ को करीब आते देख ईडिथ प्रसन्न थी। वह जेम्स की तारीफ़ों के पल बांधते नहीं थकती थी किंतु शाम के साढ़े छै-सात बजते ही जेम्स हायसिंथ को घर पहुंचा कर बाहर से ही लौट जाता। और बहुत कहने पर भी वह कभी रुकता नहीं था जबकि ईडिथ बहुत चाहती कि वह रुके और उनके साथ भोजन करे, चार्ल्स के साथ बातचीत करे ताकि संबंध प्रगाढ़ हो सकें।   

ईडिथ बेहद प्रसन्न थी, सब उसकी योजनानुसार चल रहा था कि एकाएक सबके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी। शनिवार की शाम को भाई-बहन की एक छोटी सी झड़प के दौरान जब जेम्स ने मायरा के ब्वॉय-फ्रेंड एंड्रू का मज़ाक उड़ाया तो मायरा भड़क उठी।

‘ज़रा तुम अपनी दूसरी गर्ल-फ्रेंड के बारे में भी तो सबको बताओ,’  

‘दूसरी गर्ल-फ्रेंड?’ ईडिथ चिल्लाई; ‘तो हायसिंथ को तुम रोज़ घर छोड़ कर तुम रोज़ वहीं जाते हो?’

‘मम्मी, मायरा झूठ बोल रही है,’ हक्कीबक्की हायसिंथ ने दबी ज़ुबान में कहा।   

भाई-बहन की बहस के भीषण रूप धारण कर लेने पर जेम्स की डबल-डेटिंग का ब्यौरा मिला। कुछ महीने पहले जेम्स की एक दूसरी सहपाठी हॉस्टल छोड़ कर एक फ्लैट में रहने लगी थी, जहां हर शाम उसके दोस्त और उनके बॉय और गर्ल फ्रैंडस भी आ टिकते थे। जब कोई गोपनीयता चाहता, बाकी के जोड़े गायब हो जाते। यह जेम्स की खिलंदड़ी प्रवृति के अनुकूल था, जो बिना किसी परेशानी के जीवन का आनंद लेना चाहता था। ‘उसके लिए हायसिंथ पुराने विचारों की बुज़दिल और बोरिंग युवति थी।

हायसिंथ यह स्वीकार करने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी; रो रो कर उसने सारे घर को सिर पर उठा लिया। ईडिथ की भी अक्ल जवाब दे चुकी थी। ऐसी गद्दारी! डोरोथी और आर्थर पर अपनी भड़ास निकालने के सिवा वह कर भी क्या सकती थी। चार्ल्स ने बेटी को बहुत समझाया कि अच्छा हुआ कि विवाह से पहले ही सच सामने आ गया, बाद में तो और ज़िल्लत उठानी पड़ती। जेम्स के दोस्त तो पहले से ही सब जानते थे, अब यह राज़ आस पड़ोसी भी जान गए; ख़ासतौर से स्वामीनाथन परिवार, जानवी तो हायसिंथ की बेवफ़ाई का ज़िक्र जब तब जयदीप से करती ही रहती थी; उसे डर था कि कहीं हायसिंथ उसके भाई पर फिर न डोरे डालने में कामयाब हो जाये। 

जैसा कि आमतौर पर होता है, दोष माँ को ही दिया जाता है, अपनी सफ़ाई में ईडिथ क्या कह सकती थी और माँ को लाचार देख हायसिंथ परेशान थी। ईडिथ को तो लोग वैसे भी अधिक पसंद नहीं करते थे, ऐसी स्थिति में उनकी पूरी सहानुभूति बेटी के साथ थी।  वे जिधर भी निकल जातीं, लोग एक आह के साथ कह उठते, ‘बेचारी सिंथिया।’

ईडिथ मन ही मन में बुड़बुड़ाती, ‘वी आर डीसैन्ट ब्रिटिश पीपल, यू नो,’

ईडिथ को पहली बार लगा कि जैसे अब इस वाक्य का कोई अर्थ नहीं रह गया था; अप्पर-क्लास का तमग़ा मानो उससे छीन लिया गया हो!   

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