
संदेह
– दिव्या माथुर
ब्रायन पीटर्स पूर्णतः आश्वस्त था; चौपड़ का हर मोहरा उसकी मर्ज़ी के मुताबिक पर चल रहा था। संबंधी, मित्र, पड़ोसी और सहकर्मी उसकी तारीफ़ करते नहीं अघाते थे कि वह कैसे अपनी ‘डिप्रैसड वाइफ़’ अनिता और बच्ची को हिम्मत और धैर्य से सम्भाले था। मनोरोग-चिकित्सक जो ठहरा; उसके निदान और इलाज को कोई कैसे गलत ठहराता ?
‘डिप्रैसड वाइफ़’ अथवा अनिता के सन्दर्भ में यह कथ्य विशेषतः सही था कि कर्ता ही भुगतता है। वह एक नौकरानी बन कर रह गयी थी; जिसके हर काम में ब्रायन मीनमेख निकालता। घर उसके लिए पिंजरा था, जिसमें स्नेह, सहानुभूति और स्वच्छ वातावरण का नितांत अभाव था। वह मन ही मन कुढ़ती और ख़ामोशी से छत ताका करती थी क्योंकि उसकी सुनने वाला कोई नहीं था। मम्मी-पापा अथवा भाई-भाभी से ब्रायन की शिकायत करने का कोई फ़ायदा नहीं था; सिवा उन्हें परेशान करने के। वे कर भी क्या सकते थे? अनिता पहले कभी कभी अपनी माँ और भाभी से “वाटसअप’ पर बात कर लिया करती थी किन्तु ब्रायन ने इस उपकरण को भी उसके फ़ोन से यह कह कर हटा दिया था, ‘मैं हैरान हूँ कि तुम जैसी पढ़ी-लिखी औरत ऐसी वाहियात बातों में अपना बेशकीमती समय गंवा सकती है!” अनिता को भी ब्रायन की बात तब सही ही लगी थी।
अनिता से विवाह के पूर्व, ब्रायन के अन्य कई युवतियों से सम्बन्ध रहे। वह कितनी भी धूर्तता और चालाकी से काम ले, कोई भी लड़की उसकी धौंस सहने को तैयार नहीं होती थी, तिस पर कभी कभार उसका हाथ भी उठ जाता था। ब्रायन की माँ हेज़ल और अनिता की माँ मैरी ज़ूम्बा क्लब की सदस्य थीं, जहां व्यायाम से अधिक गप्पें चलती थीं। अनिता की तरह ही मैरी भी सीधी सादी और मितभाषिणी थीं, जिन्हें हेज़ल ने अपने संरक्षण में ले रखा था, सलाह देने के बहाने हेज़ल जब देखो तब मैरी के घर पर चाय पीने बैठ जातीं और लंच के बाद ही घर जाती। अपने आत्मलीन बेटे के लिए उन्हें अनिता पसंद आ गयी थी। शक्ल-सूरत से अधिक उन्हें अनिता की नम्रता ने आकर्षित किया था; ब्रायन को एक ऐसी ही पत्नी की आवश्यकता थी जो बिना चूं-चपड़ उनके बेटे के इशारों पर नाच सके।
जल्दी ही अनीता और ब्रायन को मिलवाया गया। पहली ही नज़र में अनिता को ब्रायन पसंद आ गया था; वह अपने को भाग्यशाली समझ रही थी कि उसे इतना पढ़ा-लिखा वर मिल रहा था जबकि वह स्वयं कॉलेज के दूसरे वर्ष में ही थी। हाल ही में, ब्रायन की पूर्व-प्रेमिका ने उससे सम्बन्ध तोड़ लिए थे इसलिए हेज़ल को उसे राज़ी करने में समय नहीं लगा। इसके पहले कि ब्रायन की सच्चाईयां सामने आतीं, चट मंगनी और पट ब्याह हो गया।
विवाह के शुरू-शुरू में अनिता को यही लगा था कि ब्रायन उसके प्रति ‘ओवर-प्रोटैक्टिव’ था, जिसके लिए वह उसकी आभारी थी। आत्मविश्लेषण की अभ्यस्त, अनिता छोटी-मोटी दुर्घटनाओं के लिए स्वयं को ही ज़िम्मेदार ठहराती रही किन्तु धीरे-धीरे उसे अहसास होने लगा कि ब्रायन ‘कण्ट्रोल-फ़्रीक’ था, जो उसे फटकारने के लिए कभी गैस खुली छोड़ देता तो कभी लाइट्स और फिर कहता कि अनिता का दिमाग़ ठिकाने नहीं रहता। मज़े की बात यह थी कि उसकी फटकार प्यार और दुलार से भरी होती, विशेषतः जब कोई उनके आसपास होता। साल भी नहीं बीता था कि आन्या का जन्म हुआ, जिसका ज़िम्मेदार भी अनिता को ही ठहराया गया कि उसे सावधानी बरतनी चाहिए थी।
रेजीडेंसी के दौरान, ब्रायन बहुत व्यस्त रहा और अनिता के पांच वर्ष लगभग सुकून से गुज़रे। वह देर रात को पिए हुआ घर लौटता और सो जाता। कभी-कभी बुरे मूड में होता तो अनीता अपनी सुरक्षा का प्रबंध कर लेती और जब तक स्पेयर-शयन-कक्ष से नहीं निकलती जब तक वह सो नहीं जाता। रेजीडेंसी के पूरे होते ही ब्रायन को ब्राइटन थेरेपी-सेंटर में एक अच्छी नौकरी मिल गयी तो उसने ब्राईटन के एक समृद्ध इलाके में घर बसाया, जहां उसे किसी की दखलन्दाज़ी का भय न था। अनिता यूं भी शर्मीली थी; जब कोई पड़ोसी उससे बात करने का प्रयत्न करता, ब्रायन आगे बढ़ कर बातचीत की बाग़डोर संभाल लेता। उसके दोस्त और पड़ोसी यही सोचते कि वह अपनी भुलक्कड़ पत्नी की गलतियों को भी कैसे नज़रअन्दाज़ कर देता है। आसपास रहने वाली कुछ महिलाएं तो ब्रायन की इसी अदा पर फ़िदा थीं।
उसके काम के घंटे तय न थे; जब देखो तब वह घर में ही मंडराता रहता, अनिता के काम में मीन-मीख निकालता और कभी-कभी उस पर हाथ भी उठा देता किन्तु आन्या पर वह तन मन धन से निछावर था। महंगे महंगे खिलौनों, कपड़ों और तरह तरह के गैजेट्स से उसका कमरा भरा पड़ा था। पति के अत्यधिक लाड़-प्यार में डूबी आन्या माँ से दूर होती चली गयी। बेटी की तरफ़दारी ले लेकर ब्रायन ने उसे अधम और ज़िद्दी बना डाला था; वह माँ की एक नहीं सुनती थी। स्वास्थ्य-निगम के डाक्टरों के पास भला कहाँ समय था कि वे अनिता की फ़रियाद पर गौर करते; वे तो उसके मनो-चिकित्सक पति से तत्काल सहमत हो गए थे कि प्रसव के पश्चात बहुत सी औरतें ‘डिप्रेशन’ का शिकार हो जातीं हैं। किसी का नाम यदि एक बार इस रजिस्टर में दर्ज हो जाए, तो उसे भगवान भी नहीं मिटा सकते।
अनिता को जब तक अपनी बेज़ारी और ब्रायन की मक्कारी का अहसास हुआ; वह एक ऐसा ड्रामा तैयार कर चुका था; जिसका मंच-निर्देशक और नाटककार वह स्वयं था। ‘डिप्रेसड औरत’ का किरदार निभाते अनिता जब तब विद्रोह पर उतर आती किन्तु ब्रायन के आगे उसकी एक नहीं चलती थी।
‘मैं डिप्रैस्ड नहीं हूँ, चौबीसों घंटों घर और आन्या को अकेले संभालते, मैं थक जाती हूँ…,’ सदा ख़ामोश रहने वाली अनिता अब शिकायत करने लगी थी; जो ब्रायन की बर्दाश के बाहर की बात थी।
‘दिस इज़ ऐ सिम्पटम औफ़ डिप्रेशन,’ अनिता अपनी व्यथा जिस भी रूप में प्रकट करती, ब्रायन उसे ‘डिप्रेशन’ का एक लक्षण घोषित कर देता। वह उसे एंटी-डिप्रैसेंट्स देने लगा, जो वह बड़े प्यार से उसे स्वयं खिलाता।
‘बट आई एम नौट डिप्रेस्ड,’ व्यथित अनिता ने जब-जब इस निदान का विरोध किया, उसकी अवसादक-औषधि की मात्रा तब-तब बढ़ा दी गयी। इस कहानी में तरह तरह के रंग भर कर, ब्रायन ने पड़ोसियों और रिश्तेदारों की भी सहानुभूति हासिल कर ली थी। अनीता को लगने लगा कि उसका इस गहरे ग़र्त से निकलना असंभव था।
अवसाद के लिए दी गयी दवाइयां अनिता की व्यग्रता को नियंत्रण में रखती थीं किन्तु जल्दी ही वह जान गयी कि वे उसके तन-मन को हानि पहुंचा रही थीं। इस भय से कि उनके असर में कहीं वह अपने बच्चों को नुक्सान न पहुंचा दे, उसने गोलियों को नाली में बहा देना उचित समझा। यह आसान नहीं था। ब्रायन की लाई गोलियों को फेंक कर उसने शीशी में सस्ती सी मल्टी-विटामिन्स की गोलियां भरनी शुरू कर दीं; जब भी ब्रायन उससे दवाई लेने को कहता; वह उसे सटक लेती। वह अब सचेत रहने लगी। आन्या को स्कूल से लाने के पहले उसके पास काफ़ी समय होता था, जिसमें वह अखबार पढ़ा करती या टीवी देखती। एक दिन स्कूल के ही नोटिस बोर्ड पर उसने कम्यूनिटी सेंटर में होने वाले फ्री-इंटरनेट-कोर्स के बारे में पढ़ा तो उसने हिम्मत करके फॉर्म भर दिया। ब्रायन को बताना बेकार था; उसे तो बस एक पत्नीनुमा नौकरानी चाहिए थी, जो बिना किसी अपेक्षा के उसका घर साफ़ रखे, समय पर भोजन पका दे, बच्चों को पाले और सबसे बड़ी बात, उससे ज़बान न लड़ाए।
ब्रायन जान गया कि अनिता को बाहर की हवा लग गयी थी; वह ब्रायन से जवाबतलबी जो करने लगी थी। उसके पर कतरने के इरादे से, ब्रायन ने तय किया कि घर में आन्या को एक भाई अथवा बहन की ज़रुरत थी; हेज़ल भी उन्हें सलाह देती रहती थी कि समय रहते उन्हें कम से कम एक बच्चा और कर लेना चाहिए।
‘प्रेगनैन्सी में कई बीमारियाँ खुद ही दूर हो जाती हैं; अनिता, तुम्हारा डिप्रेशन खुद बा खुद दूर हो जाएगा।‘ फ़ोन पर सास की ऐसी बातें सुनकर अनिता के तन बदन में आग लग जाती। ब्रायन ने भी जीवन में माँ की चाहे एक न सुनी हो, माँ की इस आज्ञा को उसने शिरोधार्य किया। अनीता को एंटी-डिप्रैसेंटस से छूट मिली।
जौशुआ को लेकर जब अनिता घर लौटी तो इकलौती और लाडली आन्या को एकाएक आभास हुआ कि मम्मी की तवज्जो बंट गई थी। वह नवजात शिशु के प्रति इतनी आक्रामक हो उठी कि उसका दूध पीना भी दूभर कर देती। ब्रायन आन्या को बाहर घुमाने ले जाता ताकि अनिता जौशुआ को नहला-धुला कर उसके कपड़े बदल सके। पिता के सामने वह भाई के बड़े लाड़ करती किन्तु जैसे ही वह रुख़ पलटता, वह जौशुआ की आँख या नाक में उंगली घुसा देती।
‘आन्या, भैय्या को क्यों परेशान कर रही हो?’ अनिता कहती।
‘मैंने तो उसे छुआ तक नहीं,’ आन्या भोली सूरत लिए पिता से मुख़ातिब हो कर कहती।
‘आन्या तो से खेल रही थी, अनिता। जौशुआ के पेट या कान में दर्द हो रहा होगा। तुम आन्या को बेकार में ही ब्लेम कर रही हो,’ ब्रायन जब आन्या की तरफ़दारी करता, वह हाथ बांधे माँ की असमर्थता का आनंद लेती। अनिता को लगता कि जैसे उसके दो पति थे, सुबह-शाम एक तो भुगतती और दिन भर दूसरे को। इसी जद्दोजहद में, अनिता कभी घर साफ़ नहीं कर पाती तो कभी कपड़े नहीं धो पाती किन्तु ब्रायन को हर चीज़ जगह पर चाहिए थी; बिलकुल उसी करीने से सजी जैसा कि वह चाहता था। तनाव बढ़ता चला गया; आन्या को स्कूल छोड़ने और वापिस लाने के अलावा अनिता का जौशुआ को पार्क में ले जाकर घुमाना तक बंद हो चुका था।
‘आस पड़ोस में सबके यहाँ क्लीनर्स आती हैं, हम क्यों नहीं रख सकते एक क्लीनर? रोज़ न सही, हफ्ते में दो या तीन बार…’ चिड़चिड़ी अनिता की मांगे बढ़ने लगीं। आन्या के माध्यम से अनिता को सज़ा देने के अलावा, ब्रायन बाल की खाल निकाल कर उसे अयोग्य सिद्ध करने का भी प्रयास करता रहता किन्तु अनिता अब हार मानने को कतई तैयार नहीं थी।
‘अनिता, अपनी खुशी के लिए तुम अपने घर-परिवार को दाँव पर नहीं लगा सकतीं,’ ब्रायन ने उसे धमकी दी और यह ड्रामा केवल इसलिए कि एक शाम अनिता बच्चों को दो घंटों के लिए चाइल्ड-माइंडर के पास छोड़ कर, अपनी स्पैनिश पड़ोसन शिवोन के साथ लंच पर चली गयी थी।
आन्या को भी मम्मी को कष्ट पहुंचाने में आनंद आने लगा था; विशेषतः इसलिए कि वह जानती थी कि चाहे कुछ भी हो, पापा उसी की तरफ़दारी करेंगे। सुबह-सुबह वह धुले और इस्त्री किए हुए कपड़ों पर जान बूझ कर दूध या पानी गिरा लेती ताकि जौशुआ को छोड़ अनिता को उसकी ड्रेस धोनी और इस्त्री करनी पड़े। इस बीच वह जौशुआ को नोचती और काट खाती ताकि वह रोने लगे। अनिता के डांटने पर आन्या चीख़-चिल्ला कर मोहल्ला सिर पर उठा लेती।
‘अनिता, हाउ आर यू कोपिंग दीज़ डेज़?’ एक सुबह शिवोन ने पूछा, जो इस इलाके के नियमों से शायद अनभिज्ञ होने के कारण मोहल्ले भर में घूमा करती थी हालांकि मोहल्लेवाले ‘बिज़ी-बॉडी’ शिवोन की बकबक बड़े मज़े से सुनते थे।
‘वाट डू यू मीन बाइ कोपिंग?’ अनिता ने वितर्क किया।
‘ब्रायन सेड दैट यू कांट कोप विद द किड्स,’
‘आई एम फ़ाइन, एक्चुअली, शिवोन,’ अनिता हैरान थी कि ब्रायन को नई पड़ोसन शिवोन से निजी बातें करने का मौक़ा कब मिल गया। एक ही तो सहेली बनी थी अनिता की, क्या ब्रायन से यह भी सहन नहीं हुआ।
‘क्या आपने शिवोन से कहा था कि मैं कोप नहीं कर पा रही?’ उसी शाम को अनिता ने गुस्से में ब्रायन से सफ़ाई माँगी।
‘मैं तो तुम्हारे लिए ही कुछ सिम्पथी गेन करने कोशिश में था। शिवोन कह रही थी कि आन्या दिन भर चीख़ती-चिल्लाती है। सोशल-सर्विसज़ को फ़ोन कर देगी तो मुश्किल हो जाएगी।’
‘सभी के बच्चे रोते-चिल्लाते हैं। आप तो जानते ही कि आन्या कितना परेशान करती है और …,’
‘अनिता, यह ऐक्सैपट करने में कोई बुराई नहीं है कि तुम कोप नहीं कर सकतीं, दो बच्चो की माँ के लिए यह बहुत आम बात है…,’
‘और कोप कैसे किया जा सकता है, ब्रायन? दो छोटे बच्चों और इतने बड़े घर को अकेले संभालना क्या आसान है, एक सफ़ाई वाली तक नहीं है घर में…,’
‘यू नो वेरी वेल, मैं तुम्हें बिज़ी क्यों रखना चाहता हूँ? यह बात मुझे रिपीट करने की ज़रुरत नहीं पड़नी चाहिए, अनिता,’ ब्रायन ने थोड़ा सख्त होते हुए कहा।
‘पर इसका मतलब यह तो नहीं हुआ कि मुझे नहाने-धोने की भी फुर्सत न मिले, पूरा एक साल हो गया है मुझे एक फिल्म भी देखे…’ अनिता बिफ़र उठी।
‘शुश अनिता, नेबर्स सुनेंगे तो क्या सोचेंगे? लो, यह गोली खा लो, इट विल हेल्प यू काम डाउन,’ उसकी ओर गोली और पानी बढ़ाते हुए ब्रायन ने कहा तो अनिता को इतना गुस्सा आया कि उसे लगा कि कहीं वह गिलास पति के मुंह पर ही न दे मारे। उसके गोली लेने से इनकार करने पर ब्रायन उसे भारी-भरकम मेडिकल-टर्म्स के माध्यम से उसे डिप्रेशन के विषय में समझाने लगा कि जैसे अनिता बेवकूफ़ थी। डिप्रेशन के बारे में अनिता ने पूरा गूगल खगोल डाला था और स्थानीय लाइब्रेरी की सारी पुस्तकें चाट डालीं थीं। इस विषय पर वह एक पूरा शोध लिख सकती थी किन्तु ब्रायन उससे सौ गुना अधिक चतुर था। उसने अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से पूरी दुनिया को बहला रखा था। अनिता को खुद पूरे तीन साल लगे थे उसकी मक्कारी समझने में। अब वह दिन रात बस यही सोचा करती थी कि किसी तरह सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। ऐसा क्या कोई रास्ता नहीं कि वह बच्चों को लेकर ब्रायन से अलग हो सके?
अनिता ने अपनी सास से एक बार उसके क्रोध के बारे में ज़िक्र किया तो वह बोलीं, ‘ब्रायन के डैड से तुम्हारा पाला पड़ता न तो तुम दो दिन में रो देतीं, मैं ही जानती हूँ कि मैंने उनके साथ कैसे ग़ुज़ारा किया…’ कहते-कहते वह अतीत में डूब गईं।
‘लगता है कि यह खानदानी रोग है।’ अनिता के मुंह से निकल गया, जो उन्हें नागवार गुज़रा।
‘सभी मर्द ऐसे होते हैं, अनिता, और बच्चों की ख़ातिर थोड़ा-बहुत कौन नहीं सहता। तुम उसके एक छोटे से ऐब देखती हो, इतनी सारी अच्छी बातों को भूल जाती हो। ‘ और वह अंतहीन उपदेशों का पिटारा खोल कर बैठ गयी।
‘आन्या को कितना प्यार करता है ब्रायन जबकि उसे अपने डैड से कभी प्यार नहीं मिला।’
‘क्यों उसके डैड उसे प्यार नहीं करते थे?’ अनिता के इस प्रश्न को वह बड़ी सफ़ाई से टाल गईं।
काउंसिल का नज़ारा तो वह देख ही चुकी थी। अपनी एक विकलांग सह-अध्यापिका के आवास का आवेदन लिए अनिता और लिज़ को एक बार काउंसिल के दफ़्तर में जाना पड़ा था, द्वार पर ही धूम्रपान, मद्यपान और ड्रग्स जैसी बदबुओं ने उनका स्वागत किया था। अंदर जाकर ऐसा लगा कि जैसे वह जहन्नुम में पहुँच गयी थी। एक ऐसी भद्दी और विकराल दुनिया, जिसमें असभ्य, अपरिष्कित, कुरूप और पीले दांतों वाले, बीमार और झुर्रीदार लोग लम्बी कतारों में खड़े थे।
एक भारी भरकम अँगरेज़ भीड़ को चीरते हुए आगे पहुंचना चाहता था, “इन फ़क्किंग कालों की वजह से हमें लाइन में खड़ा होना पड़ रहा है,”
“गो बैक टू योर ब्लैक कन्ट्रीज़।” दूसरे अँगरेज़, जो शायद उसका दोस्त था, ने चिल्ला कर कहा।
‘यू गो बैक इन द क्यू ,’ एक अफ़्रीकी युवति ने विरोध किया।
“ब्लडी पॉकीज़,” उस पियक्क्ड़ अँगरेज़ ने अपनी जैकेट की जेब से चाकू निकाल लिया।
‘हू आर यू कालिंग पॉकीज़, यू मंकी?”
ग़ुस्से में पियक्कड़ चाकू लिए उस युवती पर लपका, एक अन्य अफ़्रीकी युवक ने उस अँगरेज़ को धर दबोचा। गुत्थमगुत्थी में चाकू अँगरेज़ के कंधे में घुस गया और ख़ून के फ़व्वारे छूटने लगे।
भगदड़ मच गयी, किसी ने पुलिस को फ़ोन कर दिया था क्योंकि जल्दी ही पुलिस का सायरन सुनाई दिया।
“यू ऑल राइट, अनिता, डोंट बौदर अबाउट देम, दे आर ऑल ड्रंक ऐंड ड्रगीज़।” कहती हुई लिज़ बौखलाई हुई अनिता को धकेलती हुई काउंसिल के दफ़्तर से बाहर खींच लाई। यदि अनिता कॉउन्सिल की मदद लेती है तो उसका पाला इन्हीं लोगों से पड़ेगा।
जौशुआ के लालन-पालन के दौरान, अनिता की जी-तोड़ कोशिश के बावजूद, आन्या माँ से दूर होती चली गयी; वह अपना हर काम पिता के माध्यम से करवाती थी। स्कूल से वापिस आने के बाद, जब तक ब्रायन घर नहीं आ जाता, आन्या अपने कमरे में ही बंद रहती। खाने के बाद बाप-बेटी देर रात तक टीवी देखते या कम्प्युटर पर गेम्स खेलते। सुबह उसे ज़बरदस्ती उठा कर स्कूल भेजने की ज़िम्मेदारी अनिता की थी; जिसकी तैय्यारी उसे युद्ध स्तर पर हर रोज़ करनी होती। स्कूल छोड़ने के लिए निकलती तो आन्या माँ से दस कदम आगे या बीस कदम पीछे चलती।
‘आन्या, जल्दी चलो, स्कूल को आज फिर देर हो जाएगी,’ प्रैम को खींचते हुए अनिता बार-बार रुक कर आन्या को आवाज़ देती। माँ की बात एक कान से सुन कर आन्या दूसरे कान से निकाल देती।
‘सुबह थोड़ा जल्दी निकल लिया करो,’ आन्या के देर से स्कूल आने पर रुक्का आ जाता तो ब्रायन झुंझला पड़ता। बच्चों को सुबह सात बजे तैयार करना आसान न था जबकि आन्या के मुंह में ब्रश भी अनिता को ही हिलाना पड़ता।
‘नाश्ते में क्या लोगी आन्या, कॉर्न-फ्लैक्स दे दूं?’ अनिता बेटी से पूछती किन्तु वह मुंह फुलाए चुप बैठ रहती। कई कई बार पूछने पर वह अंडा-टोस्ट मांगती तो कभी पैनकेक। पैनकेक परोसती तो वह प्लेट दूर सरका कर चुपचाप बैठी रहती क्योंकि इस सुबह उसे जैम चाहिए था, शहद नहीं। सुबह-सुबह अनिता के पास समय ही कहाँ होता है कि वह आन्या के नखरे उठाए।
आश्चर्य की बात यह थी कि अनिता की अस्वस्थता के दौरान, आन्या ब्रायन की एक आवाज़ पर उठ कर नहा लेती और स्कूल की यूनिफ़ॉर्म पहन कर स्वयं तैयार होकर कॉर्न-फ़्लैक्स खाने बैठ जाती।
‘लुक एट माई लिटल प्रिंसेस, यू लुक गौर्जियस। पापा की तरह, हर काम टाइम पर। देखो अनिता, अब नाश्ता भी अपने आप कर रही है। मम्मी तुम्हें बेकार में ही नौटी कहती हैं, हैं न लिटल प्रिंसेस?’ ब्रायन के ऐसे ही तानो-बानों से अनिता अक्सर आहत होती रहती।
कुछ दिनों से अनिता के मन को जैसे एक और घुन लग गया था। उसका शक पनीले-एग्ज़ीमें की तरह फ़ैल रहा था, जिसका कोई इलाज न था; व्यग्रता अपनी चरम सीमा पर थी; जितना खुजाती, खुजली उतनी ही बढ़ जाती। किससे कहे? कहने से होगा भी क्या? अपने तथाकथित प्रतिष्ठित पति से तलाक़ मांगेगी तो उसे अपने बच्चों से हाथ धोने होंगे।
उस रात, जौशुआ को सुला कर और सारे काम निपटा कर, अनिता यूं ही ऊपर चली आई थी। कमरे में झांका तो पाया कि बिस्तर में ब्रायन और आन्या सिर तक रज़ाई ओढ़े कोई खेल रहे थे।
‘माई लिटिल प्रिन्सेज़…,’ रज़ाई के अन्दर एक अजीब सी हलचल देखी तो अनिता जड़वत खड़ी की खड़ी रह गयी। क्या करे? जब-जब ब्रायन आन्या के लिए ‘लिटिल प्रिन्सेज़’ का संबोधन इस्तेमाल करता था, अनिता कसमसा कर सोचा करती कि कहीं यह उसकी अपनी ही बेटी से जलन तो नहीं?
कांपती हुई टांगों को संभाले नीचे आकर सोते हुए जौशुआ को सीने से चिपटा कर बैठ गयी, जैसे अपने टूटे-फूटे बदन को किसी तरह सयंत करने के प्रयत्न में हो। वह टीवी पर ‘चाइल्ड-ऐब्यूज़’ के बारे में सुनती आई थी, क्या यह वही तो नहीं?
ब्रायन को शायद पता लग गया था कि अनिता कमरे में आई थी। कुछ ही देर में वह आन्या को लिए हुए नीचे आया।
‘वी स्केयर्ड मम्मी, डिडन्ट वी? हमारी लिटिल प्रिन्सेज़ को आज नींद नहीं आ रही,’ हँसते हुए ब्रायन ने कहा। ब्रायन को स्पष्टीकरण की क्या आवश्यकता थी? अनिता ने सोचा कि कहीं उसे वहम तो नहीं हो गया था। काश कि वह हिम्मत करके रजाई उठा कर देख लेती कि वे खेल रहे थे या….? चाइल्ड-एब्यूज़ के विषय में टीवी पर इतने समाचार आते हैं, किन्तु उनमें यह नहीं बताया जाता कि चाइल्ड-एब्यूज़ असल में है क्या? क्या वही जो रजाई में हो रहा था, जिसे देख कर उसका ह्रदय काँप उठा था? क्या वह बात का बतंगड़ इसलिए तो नहीं बना रही कि ब्रायन के खिलाफ़ उसे कोई सबूत चाहिए ताकि वह पति से छुटकारा पा सके? वह बेवकूफ़ नहीं थी; उसने तथ्यों का निष्पक्ष होकर मुआयना किया। आज पहली दफ़ा, सोने का समय बीत जाने के बाद आन्या और ब्रायन नीचे आए थे, ब्रायन ने पहली बार ‘लिटिल प्रिन्सेज़’ संबोधन के पहले ‘हमारी’ जोड़ा था और क्या वजह थी कि उसे ‘वी स्केयर्ड हर, डिडन्ट वी?’ जैसा स्पष्टीकरण देने की आवश्यकता महसूस हुई?
‘आर यू औल राईट, आन्या?’ अनिता ने आन्या का बड़ी बारीकी से मुआयना करते हुए पूछा।
‘वाए, वाए शुडन्ट शी बी?’ ब्रायन ने अनिता के प्रश्न को काटते हुए ग़ुस्से में पूछा।
‘मैं तो आन्या से सिर्फ़ यह पूछ रही…’
‘कभी-कभी बच्चे एक्साइटमेंट में नहीं सो पाते, नौट ए बिग डील,’
अनिता क्या कहती? वह क्या कह सकती थी? उसने एक बार फिर आन्या को ध्यान से देखा; उसकी आँखें नींद से भारी थीं।
‘यू नो, यू आर पैरानौइड,’ ब्रायन ने अनिता की आँखों में घिरता हुआ संदेह देख लिया था।
‘प्रिन्सेज़, एनफ़ गेम्स फ़ौर वन ईवनिंग, मम्मी इज़ वेरी एंग्री विद अस, गो टु बेड नाउ,’ तालियाँ बजाते हुए ब्रायन ने आन्या को एक हल्का सा धक्का देते हुए सीढ़ियों की ओर धकेल दिया और खुद टीवी खोल कर बैठ गया। अपने मम्मी-पापा को अजीब नज़रों से देखती हुई आन्या बिना किसी ज़िद के अपने कमरे में चली गयी।
अनिता की नींद हराम हो गयी। यदि उसका संदेह सही था तो उसे आन्या को ब्रायन से दूर ले जाना होगा पर कैसे? एक ‘डिप्रैस्ड’ और ‘पैरानौइड’ औरत की बात पर कौन विश्वास करेगा? ब्रायन एक नामी मनो-चिकित्सक था, जिसे लोगों के दिमाग़ों से खेलना आता था। आन्या तो उसकी छोटी उंगली के इशारे पर नाचती थी; वह अनिता को कुछ नहीं बताएगी।
उस घटना के बाद, अनिता को लगा कि जैसे ब्रायन ने उसे सताना कम कर दिया हो। आन्या का होम-वर्क करवाने के बाद अनिता उसे सुलाने ऊपर ले जाती क्योंकि कुछ दिनों से ब्रायन दफ्तर के काम में व्यस्त था। आन्या के मन की थाह लेने का यह अच्छा मौक़ा था किन्तु ऊपर पहुँचते ही वह सो जाती या सो जाने का नाटक करती।
‘आई विल टेक आन्या टू बेड टुनाईट,’ अपनी फ़ाइल्स बंद करते हुए एक रात अचानक ब्रायन ने उठते हुए कहा।
‘इट्स ऑल राईट, जौशुआ खेल रहा है, मैं ही सुला दूंगी उसे,’
‘तुम किचन साफ़ कर लो, इट्स इन सच ए मैस। कम लिटल प्रिंसेस, टाइम फॉर बेड,’ आन्या को कन्धों पर झुलाते हुए ब्रायन ऊपर चला गया। सुबह-सुबह ब्रायन एक हफ्ते के लिए न्यू-जर्सी जा रहा था, शायद इसलिए वह आन्या के साथ कुछ समय गुज़ारना चाहता हो। अनिता ने सोचा कि एक हफ्ता वह चैन से रहेगी; ब्रायन की गैरहाज़िरी में आन्या भी उसे तंग नहीं करेगी।
रसोई साफ़ करते वक्त, एकाएक को लगा कि जैसे आन्या ने उसे ‘मम्मी’ कह कर पुकारा हो। मन हुआ कि भाग कर ऊपर जाए किन्तु रुक गयी कि कही ब्रायन उसे फटकार ही न दे।
‘आन्या की तबियत कुछ ढीली लग रही है, मैंने उसे कैल्पोल दे दी है ताकि वह आराम से सो जाए,’ ब्रायन नीचे आकर बोला। ब्रायन के सो जाने के बाद, अनिता दबे कदमों से आन्या के कमरे में पहुँची तो देखा कि वह सो चुकी थी; उसका माथा चूम कर अनिता नीचे लौट आई।
सुबह पांच बजे ब्रायन को हीथ्रो के लिए निकलना था। उसकी धारा-पटक से अनिता की नींद खुल चुकी थी। वह चाय बना ही रही थी कि ब्रायन किचन में आया।
‘आन्या की तबियत ढीली लग रही है, कहीं वायरल न हो। आज उसे स्कूल मत भेज देना।’
‘देखती हूँ, अगर ठीक नहीं हुई तो …’
‘तुमसे कहा न, आज उसे आराम करने देना,’
आठ बज चुके थे। कई बार आवाज़ देने के बाद भी जब सुबह आन्या ने जवाब नहीं दिया तो उसे जगाने के लिए अनिता ऊपर पहुँची, वह अपने बिस्तर में नहीं थी। स्नानघर में झांका तो देखा कि वह अलसाई सी आदमकद शीशे के सामने खुद को निहार रही थी।
‘पापा कह रहे थे कि, आन्या, कि तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है? अब कैसा लग रहा है?’
‘आई एम फ़ाइन,’ नज़र चुराते हुए वह बोली।
‘ओह गुड! आज हम साथ में नाश्ता करते हैं।’ यह जानते हुए कि ब्रायन की ग़ैरहाज़री में आन्या उसे कुछ ज़्यादा ही तंग करेगी, अनिता ने तय किया कि आज वह उसे ग़ुस्से का कोई मौक़ा नहीं देगी ताकि घर में शान्ति रहे। अलमारी से बेटी की पसंदीदा पीली फ़्रॉक निकाल ही रही थी कि उसे लगा कि जैसे कोई सिसक रहा हो। अगले ही पल अनिता स्नानघर में थी, जहां शीशे के सामने स्टूल पर बैठी हुई आन्या दोनों हाथ से अपनी जाँघों को चौड़ा कर अपना मुआयना करते हुए सिसक रही थी; दर्द उसकी बर्दाश्त के बाहर था।
‘गेट आउट,’ जल्दी से अपना जांघिया ऊपर चढ़ाते हुए आन्या चिल्लाई। अनिता को काटो तो खून नहीं; लगा कि जैसे आसमान उसके सिर पर टूट पड़ा हो।
‘आन्या, तुम्हें यह चोट कैसे लगी?’ अनिता ने आन्या के कन्धों को पकड़ कर पूछा। निरंतर बहते हुए आंसुओं को पोंछते हुए आन्या झींक उठी थी। अनिता ने उसे अपने सीने से चिपका लिया।
‘इट हर्ट्स,’ आन्या इतनी तकलीफ़ में थी कि हमेशा की तरह माँ की उपेक्षा नहीं कर पाई; उसने खुद को माँ के हवाले कर दिया। अनिता को लगा कि कहीं उसकी छाती ही न फट जाए।
‘ओह आन्या, तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया?’ अपने ऊपर नियंत्रण रखते हुई अनिता ने आन्या से कहा। क्या हुआ, कैसे हुआ, पूछने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी; नन्ही सी बच्ची के भाग्य में इतनी बड़ी विभीषिका!
‘आई डोंट नो,’ आन्या ने सपाट आवाज़ में कहा। इसका अर्थ था कि अपनी त्वचा पर लाल नीले धब्बों के विषय में आन्या जानती थी किन्तु उसके बारे में बात नहीं करना चाहती थी। काफ़ी देर तक एक दूसरे से चिपकी हुई माँ-बेटी दुःख और दर्द के पेंगे लेती रहीं।
‘पापा ने रात को तुम्हें कैल्पोल इसीलिए दी थी?’ अनिता ने पूछा।
‘दिस इस अवर लिटल सीक्रेट, बिटवीन पापा एंड मी,’ आन्या ने माँ से एकाएक छिटकते हुए कुछ और बताने से साफ़ इनकार कर दिया।
‘आन्या, यू आर ऐ वेरी इंटेलीजेंट गर्ल, तुम जानती हो न कि यह बहुत ग़लत … बहुत बहुत ग़लत बात है?’
आन्या माँ के चहरे को ध्यान से पढ़ने की कोशिश में थी।
‘ऐसे सीक्रेट्स बहुत दिनों तक सीक्रेट नहीं रह सकते, आन्या, यह ग़लत है, बहुत ग़लत, यू नो दैट, डोंट यू, इस बारे में तुम्हें क्लास में भी समझाया गया था।’
‘आई डोंट वांट टू टाक अबाउट इट,’
‘फ़ोन पर तुम्हारे पापा से बात करें?’ अनिता जानती थी कि अंजन बारह घंटों से पहले न्यू-जर्सी नहीं पहुंचेगा किन्तु आन्या का मुंह खुलवाना आवश्यक था।
‘नो,’ आन्या चिल्लाई।
‘वाए नौट? आई नो, ही विल बी एंग्री बट…’
‘ही विल पुट मी इन ऐ केज विद लौटस ऑफ़ रैट्स,’ कहते हुए आन्या ने घबरा कर अपनी आँखें बंद कर लीं।
‘वाट? देयर आर नो रैट्स हियर,’
‘नौट हियर, उनकी सर्जरी में, पापा उन पर एक्सपेरिमेंट्स करते हैं न,’
भौंचक्की सी अनिता सोच रही थी कि बच्ची की जुबान बंद रखने के लिए ब्रायन क्या उसे ऐसी-ऐसी कहानियां सुनाता रहा था!
‘डोंट वरी, आन्या, ट्रस्ट मी, जब तक मैं हूँ न तुम्हारे पास, तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता, ट्रस्ट मी,’ आन्या को उसने गोदी में बिठाना चाहा तो वह एक बार फिर दर्द से तड़प उठी।
‘चलो, डाक्टर हिलेरी को दिखा देते हैं,’ अनिता के यह कहते ही आन्या फिर बिदक उठी।
‘स्कूल को लेट हो जाएंगे, अब मैं ठीक हूँ,’ अपने को संयत करते हुई आन्या बोली। अनिता को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे? उसे लगा कि यदि उसने ज़बरदस्ती की तो कहीं आन्या चटक न जाए, स्थिति बेहद नाज़ुक थी।
‘आर यू श्योर, आन्या?’ अनिता अच्छी तरह जानती थी कि आन्या को यह चोट कैसे पहुँची थी पर यह सच्चाई स्वीकार करने, किसी से सलाह लेने अथवा पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए बड़ी हिम्मत चाहिए थी। शायद यह बुरा सपना हो; आँख खुलने पर सब ठीक हो जाए!
दर्द और घबराहट पर ढिठाई का मुलम्मा चढ़ाए आन्या उस रोज़ माँ के कदम से कदम मिलाते हुए स्कूल पहुँची। उसे चलने में तकलीफ़ होती देख, अनिता के आंसू उमड़ आए, जिन्हें उसने अपनी जैकेट की बांह से चुपचाप पोंछा और प्रैम के सहारे वह अपने को धकेलती हुई किसी तरह स्कूल पहुँची।
अनिता के दिल और दिमाग़ में एक जंग चल रही थी कि उसे अब क्या करना चाहिए? दिमाग़ कह रहा था कि उसे सीधे पुलिस में रिपोर्ट कर देनी चाहिए किन्तु दिल कह रहा था कि कोई क़दम उठाने से पहले उसे सौ फ़ी सदी भरोसा होना चाहिए कि उसका अनुमान सही था। दिमाग़ में क्षण भर को यह भी आया कि बिगड़ी हुई आन्या ने कहीं ये चोटें स्वयं ही तो नहीं पहुंचाईं? उसे अपने नाखूनों से हथेली या टांगों को घायल करते हुए अनिता ने अपनी आँखों से देखा था, जो आन्या ‘अटेंशन-सीकिंग के लिए किया करती थी। किन्तु ऐसा गहरा आघात तो आन्या खुद को नहीं पहुंचा सकती और कल रात का हादसा भी इसी ओर इंगित कर रहा था कि इस वारदात के लिए ब्रायन ही ज़िम्मेदार था।
‘आर यू औल राईट, अनिता? बौखलाई हुई अनिता को देख कर हेडमिस्ट्रेस ने पूछा।
अनिता असमंजस में थी कि उन्हें कुछ बताए अथवा नहीं किन्तु हो सकता है कि आन्या को कोई संक्रामक रोग हो; जो कहीं बच्चों में न फ़ैल जाए। कहीं उसका कोई अध्यापक ही तो पीडोफ़ाइल नहीं? वह बेकार में ही ब्रायन को दोष दे रही थी। उसे डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए। प्रैम को घुमा कर वह अपनी कांपती टांगों को किसी तरह साधती हुई सर्जरी पहुँची किन्तु डाक्टर हिलेरी उपलब्ध नहीं थी। बड़ी मुश्किल से रिसैप्श्निस्ट ने एक नए डाक्टर से मिलने की अनुमति दी।
‘बच्ची की जांच किए बिना कुछ नहीं कह सकता।,’ डाक्टर थौम्पसन बोले। अनिता भागी-भागी वापिस स्कूल पहुँची। हेडमिस्ट्रेस को बताया कि आन्या को उसे उसी वक्त डाक्टर को दिखाना था। वह इतनी बेज़ार थी कि लगा कहीं बेहोश ही न हो जाए; दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया था। तभी जौशुआ रोने लगा; उसका फ़ीड का समय कब का निकल चुका था। अनिता ने अपना धीरज खो दिया; वह हिचकियाँ ले लेकर रोने लगी।
‘वाट इज़ इट, माई डार्लिंग? कैन आई हैल्प यू इन सम वे?’ हेडमिस्ट्रेस ने अनिता से सस्नेह पूछा।
‘इट्स आन्या, शी इज़…,’ अनिता का मुंह इतना सूख गया था कि वह बोल नहीं पा रही थी। कहीं उसका दुखता हुआ दिल सीने से बाहर न आ गिरे।
‘वाट हैप्पेंड टु आन्या?’ हेडमिस्ट्रेस ने अनिता को पानी पिलाया और स्कूल-नर्स को फ़ोन पर आदेश दिया कि आन्या को लेकर उनके दफ्तर में झटपट पहुंचे।
‘ओह, वाए डिडन्ट यू टेल मी बिफ़ोर?’
अनिता इसी पशोपश में थी कि यदि आन्या ने इस वक्त अपना मुंह नहीं खोला तो इस घटना को भी अनिता के दिमाग़ की खलल समझ लिया जाएगा। अनिता ने निर्णय लिया कि यह उसकी बेटी की ज़िंदगी का प्रश्न है, उसे बताना ही होगा। यह अच्छा ही है कि ब्रायन विदेश में हैं, नहीं तो यह बात घर के अन्दर ही दबा दी जाती।
‘यू कैन ट्रस्ट मी, अनिता,’ अनिता का हाथ अपने हाथ में लेते हुए हेडमिस्ट्रेस ने बड़ी सहानुभूतिपूर्वक पूछा तो उसके धैर्य का बाँध टूट गया, वैसे ही जैसे सुबह आन्या ने रो-रो कर जल थल एक कर दिया था।
‘ओह माइ गौड! आन्या इज़ हर्ट…इन हर प्राइवेट…पार्टस…, में बी इट्स नथिंग…,’ उसी वक्त जौशुआ फिर बिलखने लगा, उसके दूध का समय कब का निकल चुका था। अनिता निढाल होकर सोफे पर लुढ़क गयी।
‘डोंट वरी, अनीटा, आई विल टेक गुड केयर औफ़ आन्या, यू नीड टु फ़ीड योर सन फर्स्ट,’ अनिता को उठा कर लगभग घसीटती हुई हेडमिस्ट्रेस एक अलग कमरे में ले गईं ताकि वह जौशुआ को फ़ीड कर सके; दूध और आंसू एक साथ झरने लगे।
इसके बाद सब कुछ बहुत जल्दी में हुआ। जब तक अनिता हेडमिस्ट्रेस के दफ़्तर में लौटी, सोशल-सर्विसेज़ को खबर दी जा चुकी थी।
करीब आधे घंटे में स्कूल की डाक्टर कैरोलाइन भी स्कूल पहुँच गई; वह आन्या से ऐसे गप्पें मार रही थी कि जैसे उसकी हमउम्र हो।
इसी बीच, अनिता को बोर्ड-रूम में बुलाया गया, जहाँ दो पुलिस अधिकारियों के साथ सोशल-वर्कर पैन्नी स्मिथ भी बैठी हुई थी।
महिला-अधिकारी ने अनिता का कांपता हुआ हाथ थपथपाते हुए पहले अपना परिचय दिया कि वे उस पुलिस-दस्ते के अधिकारी थे, जो बाल-उत्पीड़न के मामलों के लिए विशेष तौर बनाया गया है। इधर उधर की सैकड़ों बातें पूछने के बाद वह असल मुद्दे पर आई।
‘अनिता, तुम बहुत बहादुर हो, अक्सर ऐसी बातें दबा दी जाती हैं,’
‘अनिता, पहले पहल तुम्हें कब संदेह हुआ कि आन्या के साथ कुकर्म किया जा रहा है?’
‘आज सुबह … नहीं, पिछले हफ़्ते जब मैं अचानक आन्या के शयनकक्ष में पहुँची तो ब्रायन, मेरे पति…’ प्रश्नों का एक लंबा सिलसिला ख़त्म होने में ही नहीं आ रहा था किन्तु अनिता ने सब उगल दिया; यह भी कि उसे अपने पति पर ही संदेह था, किसी और पर नहीं।
एक लंबा कुस्वप्न था जो समाप्त होने पर नहीं आ रहा था। अनिता बार-बार जैसे जागने के प्रयत्न में थी। आरंभिक पूछताछ के बाद, वे अनिता के घर पहुंचे, जहां उन्होंने आन्या के शयन-कक्ष से बहुत से सबूत इकट्ठे किए, ब्रायन के दफ़तर का अच्छे से मुआयना किया, पासवर्ड के न मिलने पर वे कम्प्यूटर उठा कर ले गए।
‘तुम्हारे पति कब लौट रहे हैं?’
‘अगले हफ़्ते,’ जवाब देते ही भय और तनाव अनिता पर एक साथ टूट पड़े। ब्रायन के लौटने पर उसका क्या होगा?
‘एक बार उसे हिरासत में ले लिया गया तो वो तुम्हारे घर के एक मील के अंदर भी नहीं आ पाएगा,’ महिला अधिकारी ने अनिता को विश्वास दिलाया।
आन्या भी आश्वस्त लग रही थी; सालों में पहली बार वह अनिता से चिपकी बैठी थी। शाम घिर आई थी, वे लोग जाने के लिए उठ खड़े हुए। तभी साइलेंट-मोड पर अनिता का मोबाइल कूँ-कूँ करने लगा; ब्रायन का फ़ोन था।
‘माई हज़बैंड, यू मस्ट टॉक टु हिम,’ अनिता की हिम्मत जैसे जवाब दे गयी।
‘येस, वी विल, डोंट वरी, ऑल इन ड्यू कोर्स,’ अनिता को लगा कि जैसे भय और आक्रोश एक साथ उस पर हावी हो उठे हों।
‘डरने की कोई बात नहीं है, घर को अच्छे से बंद कर लो और सोने की कोशिश करो। हमारा अभी बहुत सा काम बाक़ी है।
‘और ब्रायन वापिस आ गया तो, आख़िर यह उसका घर है… ‘ भयाक्रांत अनिता ने पूछा।
पैन्नी ने अनिता को समझाया कि यदि वह जज को विश्वास दिला दे कि ब्रायन से बच्चों को और स्वयं उसे ख़तरा है तो वह उसके घर आने पर रोक लगा सकते हैं।
‘रियली?’ तभी ब्रायन का फ़ोन दोबारा आया। स्पीकर्स औन करने के बाद, अनिता ने हेलो कहा।
‘कब से फ़ोन कर रहा हूँ, उठाया क्यों नहीं? मेरे जाते ही तुम आवारागर्दी करने निकल गयी होगी,’
‘शायद आन्या ने…’ अनिता घबरा गयी; शायद सुबह आन्या ने पिता को फ़ोन किया हो।
‘अब आन्या ने क्या कर दिया कि तुम्हें मुझे रिंग करना पड़ा?’ ब्रायन ने गुस्से में पूछा।
‘शी वाज़ हर्ट,’
‘क्या मतलब? वाट डिड यू डू टू हर? क्या हुआ उसे? यू आर ब्लडी यूज़लेस,’ ब्रायन का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर था। अनिता की हिम्मत जवाब दे गयी; उसने मोबाइल फ़ोन पुलिस अधिकारी को थमा दिया। कमान से छुटा हुआ तीर वापिस नहीं आ सकता था; जो होगा देखा जाएगा। इस वक्त तो उसे बस आन्या के हित के विषय में सोचना है।
‘डोंट वरी सर, डॉक्टर हैज़ सीन आन्या…’ ब्रायन ने शायद पुलिस अधिकारी को टोका होगा क्योंकि वह अपनी बात पूरी नहीं कर पाई।
‘सौरी सर, वी कांट हेल्प यू विद ऐनी इनफ़ौर्मेशन एट द मोमेंट, वेन यू आर बैक इन लन्दन, प्लीज़ रिपोर्ट टू द पोलिस,’
‘वाट द हैल डू यू मीन? वाट हैज़ माई डिप्रेसड वाइफ़ टोल्ड यू? शी इज़ ब्लडी मैड…’ सोशल-वर्कर ने फ़ोन काट दिया। अनिता और आन्या दोनों भय से आक्रान्त थीं।
ब्रायन के लौटने से पहले, डाक्टर और सोशल-सर्विस वालों को आन्या से सच उगलवा लेना होगा। ब्रायन इस वक्त अधिकारियों के फ़ोन खड़खड़ा रहा होगा; अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से वह उन्हें पटाने में कहीं कामयाब न हो जाए। खुद को बचाने के लिए कहीं वह अनिता की ही बलि न चढ़ा दे।
दिन भर का थका हुआ जौशुआ अपने पालने में चैन से सो रहा था। डाक्टर ने आन्या को पीने और त्वचा पर लगाने की दवाएं दे दी थीं, जिसकी वजह से वह सुखपूर्वक माँ से चिपकी बैठी थी; पूरे पांच साल बाद। न जाने क्या-क्या भुगता होगा आन्या ने इन सालों में? अनिता का दिल काँप उठा। अपनी रिहाई के चक्कर में वह इतनी अंधी हो गयी थी कि वह अपनी ही बेटी का दर्द नहीं समझ पाई, उसके चेहरे के भाव न पढ़ पाई। ज़रा भी चौकस रही होती तो उसे कई संकेत मिल जाते, जो उपेक्षित रह गए। सप्ताहांत पर आन्या का कमरा साफ़ करने के उपरान्त ब्रायन ही उसे तैराने ले जाते और उसके बाद मैकडोनाल्ड अथवा पिज्ज़ा-हट में भोजन करने के बाद आराम से लौटते थे। अनिता ने जब भी संग चलने के लिए कहा, ब्रायन ने किसी न किसी बहाने से उसे अपने साथ ले जाने से इनकार कर दिया।
‘जौशुआ इज़ टू स्मॉल,’ अथवा ‘बेबीज़ आर नौट अलाउड,’ या फिर ‘जौशुआ ठीक नहीं लग रहा, घर में ही रहो तो अच्छा होगा,’ अंततः अनिता ने कहना ही छोड़ दिया; प्रश्न के दोहराने भर से वह बिफर उठता था। एक बार तो ब्रायन ने गुस्से में जौशुआ को यह कहते हुए उसकी ओर उछाल दिया था, ‘क्या यह तुम्हें ठीक लग रहा है?’ यदि अनिता उसे लपक न लेती तो वह ज़मीन पर गिर गया होता।
अगले दिन सुबह उन्हें अपनी कार में बैठाकर पैन्नी पुलिस के विशेष-आवास में जा पहुँची, जो थाने जैसा तो बिलकुल नहीं था। रिसेप्शन में तरह-तरह के गुड्डे और गुड़ियां रखी थीं, जिनके साथ आन्या को काफ़ी देर तक अकेला छोड़ दिया गया था। अनिता ने देखा कि पैन्नी और पुलिस अधिकारी वीडियो पर आन्या की एक-एक हरकत रिकॉर्ड कर रहे थे। कुछ देर बाद डा कैरोलाइन अन्दर पहुँची और आन्या के साथ खेल-खेल में गूढ़ प्रश्न पूछने लगीं। अनिता हैरान थी कि आन्या कितने नपे तुले ढंग से जवाब दे रही थी।
तभी एक महिला पुलिस अधिकारी अनिता का बयान लेने आ पहुँची। तीन दिन के बाद मजिस्ट्रेट के सामने पेश होना था और उसके लिए बहुत सी ख़तोकिताबत बाकी थी।
‘तुम्हें घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है, अनिता, यह एक वाटर-टाईट केस है,’ अनिता को तनाव में देख कर सोशल-वर्कर ने उसे तसल्ली देनी चाही।
‘आप उसे नहीं जानतीं, किसी न किसी तरह वो सबको मेरे विरूद्ध भड़का देगा,’
‘घबराओ नहीं, अनिता, एक बार उसका डी.एन.ए. मैच हो जाए तो उसे कोई नहीं बचा पाएगा,’
‘यदि डी.एन.ए. मैच नहीं हुआ तो?’ अनिता ने पूछा।
‘तुम्हें लगता है कि कोई और इन्वोल्वड’ है?’
‘मुझे शत प्रतिशत यक़ीन है, बट ….’
‘ख़ुद पर तो भरोसा करो, अनीता,’
‘वो जेल चले जाएंगे तो, हमारा ग़ुज़ारा कैसे होगा?’
‘चिंता मत करो, सोशल-सर्विसेज़ वाले तुम्हारी और तुम्हारे बच्चों की देखभाल करेंगे,”
‘मैं अपने बच्चों को सोशल-वेलफ़ेयर पर नहीं पाल सकती, मैं कुछ भी करने को तैयार हूँ। क्या मुझे कोई जॉब मिल सकती है?
‘अनिता, तुम यहां तक आ पहुंची हो, अब मंज़िल दूर नहीं, हिम्मत बनाए रखो।
‘मैं दुनिया को दिखा दूंगी कि मैं एक ‘नार्मल परसन’ हूँ,’ एक युद्ध तो वह शायद जीत गयी थी किन्तु एक युद्ध उसे और लड़ना था खुद अपने लिए, अपने बच्चों के लिए।
‘यह हुई न बात, अनीता।‘
कहने को तो कह दिया था अनिता ने किन्तु वह जानती थी कि उनका जीवन अब शायद ही कभी सामान्य हो पाए। एक पीडोफ़ाइल की बीवी और बेटी होने के नाते माँ-बेटी को सहानुभूति के अलावा इस जग से कुछ नहीं मिलने वाला।
बिस्तर पर गुमसुम लेटी हुई माँ और बेटी को तरह तरह की चिंताओं ने घेर रखा था; भविष्य कितना अनिश्चित था! ब्रायन के लौटने पर जो युद्ध छिड़ेगा, उसे जीतना आसान नहीं होगा।
‘मम्मी, पुलिस वाले क्या पापा को जेल में बंद कर देंगे?’ एकाएक आन्या ने पूछा।
‘तुम क्या सोचती हो, आन्या?’
‘हाँ, ही इज़ ऐ बैड मैन,’ हिम्मत जुटाते हुए आन्या बोली। अनिता कहना चाहती थी कि ऐसे कुकर्म के लिए जेल काफ़ी नहीं थी।
‘बिना पापा के हम कैसे मैनेज करेंगे?’ नन्ही सी जान को एक बड़ी फ़िक्र सता रही थी।
‘मुझे तुम्हारी हेल्प मिल जाएगी न, आन्या, तो हम दोनों अच्छी तरह से मैनेज कर सकते हैं,’ अपने अपने विचारों में मग्न, एक दूसरे के गले में बाहें डाले वे दोनों कुछ देर ख़ामोश लेटी रहीं।
‘मम्मी, जॉर्जी और एलेक्स की तरह मैं भी पेपर-राउंडस कर सकती हूँ और जब आप काम पर जाएंगी तो मैं जौशुआ को भी संभाल सकती हूँ,’ आन्या ने आँखे झुकाए हुए कहा; क्या मम्मी उस पर कभी भरोसा कर पाएंगी? आन्या की आँखें भर आईं; क्यों अपनी माँ को उसने इतना सताया? बेटी की जीवटता को देखा तो अनिता भी दंग रह गयी।
‘थैंक यू सो मच, आन्या पर तुम एक ब्रिलियंट स्टूडेंट हो; तुम्हारी पढ़ाई में कोई कमी नहीं होनी चाहिए।’
‘बट हाउ कैन यू वर्क विद ऐ लिटिल बेबी?’ आन्या के माथे पर परिपक्व बल पड़े थे। दोनों गहरी सोच में डूबी थीं जैसे कि आज रात सोने से पहले उन्हें इस पहेली का हल हर हालत में खोजना था।
‘आन्या, हम इस घर में एक क्रेच खोल लें तो कैसा रहे? अपने ही सुझाव पर अनिता भाव-विभोर हो उठी; बाकी के बच्चों के साथ जौशुआ भी संभल जाएगा।
‘मम्मी, वाट ए ब्रिलियंट आइडिया! प्रौब्लम सौल्वड,’ कहते हुए आन्या की आँखें मुंदती चली गईं। वह नहीं जानती कि इस एक ‘प्रॉब्लम’ के अनेक कटीले कोण थे। आन्या को रज़ाई ओढ़ा कर चूमते हुए भी अनिता के मस्तिष्क में दर्जनों शंकाएं युद्धरत थीं – क्या आन्या के घाव कभी भर पाएंगे? क्या उनका जीवन कभी सामान्य हो पाएगा? क्या उन्हें ब्रायन से कभी पूरी तरह छुटकारा मिल पाएगा?
जीवन यदि इसी युद्ध का नाम है तो अनिता को लड़ना होगा, क्या हुआ जो हर तरफ़ तलवारें तनीं हैं; उसे एक मज़बूत ढाल में ढलना होगा। शयन कक्ष में न जाकर, अनिता वहीं सोफ़े पर तन कर बैठ गईं; उसकी मुट्ठियाँ दृढ़ता से कसी हुई थीं।
*** *** ***
स्वरचित एवं अप्रकाशित
दिव्या माथुर
१८ जून २०१५