
जंक
– दिव्या माथुर
कार-बूट-सेल्स में घूम-घूम कर छोटी बड़ी चीज़ें इकट्ठी करने का एक ही तो शौक़ था इन्दिरा का – तस्वीरें, मूर्तियाँ, सिक्के, स्टैम्प्स,, केतलियाँ, मुखौटे, महंगी धातुओं से बने बर्तन और कई ऐसी-ऐसी अजीब सी चीज़ें जिनके उपयोग के बारे में वह स्वयं नहीं जानती थी। उसके जीवन भर की कमाई को जब बहु रीता ‘प्योर शिट’ अथवा जंक आदि कहकर पुकारती तो इन्दिरा तड़प के रह जाती।
रीता ने इंदिरा द्वारा इकट्ठे की गए पुराने तैल-चित्रों को उतार कर बैठक की दीवारों पर सस्ते और भड़कीले कैनवासेज़ लगा दिए थे;, शीशे की अलमारियों में सजे कीमती सामान को बक्सों में भरकर इन्दिरा के शयनकक्ष के कोनों में रखवा दिया था और उनकी जगह ले ली थी विवाह में मिले नकली चाँदी और तामचीनी के बर्तनों ने।
इस जंक को फ़िकवा दें तो पिया का बिस्तर यहाँ आसानी से लगाया जा सकता है,,’ रीता चाहती थी कि इस जंक को अब इंदिरा के शयन-कक्ष से भी निकाल फेंका जाए।
‘रक्षित बेटा,, इस कूड़े-करकट को तू अब ई-बे पर बेच दे,,’ रोज़ रोज़ की कलह से इन्दिरा दुखी थी; बीमार तो रहने ही लगी थी।
क्यों, माँ,, तुम्हारा दिल इस जंक से भर गया है क्या?’ रक्षित उन्हें टाल देता पर रीता कहाँ चुप बैठने वाली थी, उसने अपने तिकड़मी भाई रंजीत को फोन किया तो वह भागा भागा चला आया।
‘सिस, ये रब्बिश है, प्योर रब्बिश, तुम चाहो तो मैं कुछ कबाड़ियों से बात करके देखता हूँ,,’ एक ही नज़र में रंजीत ने जंक का मोल लगा लिया था।
थैंक-यू,, बेटे रंजीत, तुम्हें परेशान होने की ज़रूरत नहीं है।, मैंने डोरोथि से कह दिया है कि वह इस जंक का टीवी पर औक्शन करवा दे,, उसका पार्टनर चैनेल-वन के लिए ऐसे कार्यक्रम बनाता है,,’
‘ये गोरे आपको कुछ नहीं देने वाले,,’
‘अब मुझे क्या चाहिए, बेटा,, जो कुछ मिलेगा वो सब कैंसर-चैरिटि को जाएगा,’
रक्षित छोटा सा मुंह लेकर चला गया पर रीता घंटों बुड़बुड़ाती रही, ‘इस बुढ़ापे में मम को टीवी पर आने का शौक़ चढ़ा है,’
इंदिरा के बुरे स्वास्थ्य को देखते हुए, कैंसर चैरिटी को जल्दी ही एक स्लॉट मिल गया। शूटिंग के दौरान सजी-धजी रीता ख़ुशी-ख़ुशी भाग दौड़ करती रही। जिस दिन टी.वी पर लाइव-औक्शन था, इन्दिरा बहुत तकलीफ़ में थी। उसे टीवी वाले बड़ा मान दे रहे थे।
‘डियर-डियर, इंडिरा,, थैंक-यू सो वेरी-मच,, तुम्हारा पचास हज़ार पाउंड्स का डोनेशन हमारी चैरिटी के बहुत काम आएगा। तुम्हारा आभार प्रकट करने के लिए हमारे पास शब्द नहीं है,,’ कार्यक्रम के प्रस्तोता और चैरिटी वाले इंदिरा को बारम्बार धन्यवाद देते हुए फ़ोटोज़ खिंचवा रहे थे। पूरा मोहल्ला इकट्ठा था।
अस्पताल के एक कमरे में लेटी इंदिरा की साँसों के साथ साथ उसके मन की मुराद भी पूरी हो चुकी थी।