
पृथ्वी के मुख पर केवल धूल हैं हम
पृथ्वी के मुख पर केवल धूल हैं हम
एक निस्संकोच नृत्य में हिमकण-फीता हैं जैसे..
हम हैं मानों पिघले बादल जो माँ के गर्भ में समा रहे हैं।
हवा चलेगी और हम एकदम काफूर हो जाएंगे, अंतरिक्ष में समा जाएंगे।
हजारों सदियाँ हमसे पहले और भी हमारे बाद
नृत्य की लय में छोटे-छोटे कण चक्कर लगाते ही रहेंगे।
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– आन्ना पोनोमारेंको
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धरती = माता
अंतरिक्ष = पिता
नृत्य = जीवन