
झगड़ा
दिल कहता है पूछ लो जाकर
क्या वो मुझसे हैं नाराज़
कहती है फिर रूह उबल कर
आ जाओ तुम अब भी बाज़
जाओ मिल आओ दिल बोला
जीने का ये ही अंदाज़
काटो दिन ग़म में रूह बोली
तुम क्यूं उठाओ नखरे नाज़
दिल और रूह के झगड़े में
टूट गया दिल बेआवाज़
रूह ने पहन लिया फिर ताज
दिल को आया जान के बाज़।
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– दिव्या माथुर