
मैं वो नहीं
मैं वो नहीं
जिसे तुम सुनते हो
घंटि यों में अज़ानों में।
मैं वो नहीं
जिसे तुम देखते हो
या पत्थरों में
या चंद इंसानों में।
मैं वो नहीं
जिसे तुम ढूँढ़ते हो
अपने ही बनाए
मकानों में।
मैं वो भी नहीं
जिसे तुम तलाशते हो
दर-ब-दर
बियाबानों में।
मैं तुम्हारा वजूद हूँ
और तुम्हारा वजूद
तुम्हारा जिस्म नहीं
ना तुम्हारी सोच
ना मन, ना आत्मा
और ना ही
तुम्हारा बनाया
परमात्मा!
मैं परे हूँ
तुम्हारी हर तक़रीर से
तुम्हारी आँखों की
पुतलियों पर बनती
हर तस्वीर से
तुम्हारे हर बयान से।
मुझे जानने से पहले
यह बताओ
तुम कौन हो
क्या हो
कहाँ थे
जन्म से पहले
कहाँ जाओगे
मृत्यु के बाद
मैं भी वहीं हूँ
इन्हीं सवालों में
हो सके तो
मुझे भी ढूँढ़ दो
मैं भी खो चुका हूँ
शायद
तुम्हारी बनाई
इस दुनियाँ में॥
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– पंकज शर्मा