
धर्म क्या है?
धर्म वह है, जो शाश्वत है,
अपने पराये के भेद से परे है।
धर्म वह है, जो सजग है,
सहज है, सुलभ है।
धर्म वह है, जो क्षमाशील है,
उदार है।
धर्म वह है, जो परिवर्तनशील है,
और अग्रगण्य है।
धर्म वह है, जो हर जन के,
जीवन में, जीवित है।
धर्म वह है, जो सदा चैतन्य है,
जागरूक है।
धर्म वह है, जो सत्य है,
सात्विक है।
धर्म वह है, जो निर्भय है,
और निर्मल है।
धर्म वह है, जो अंतरमुखी है,
व प्रियदर्शी है।
धर्म, वह है, जो मृदुल है,
और मधुर है।
धर्म, शुभ है,
और अशुभ से परे है।
धर्म, शांत है,
और शान्तिप्रद है।
धर्म, वह है,
जो सतत सतकर्म में संलग्न है।
धर्म, मंदिरों की दीवारों के
दायरों में नहीं
मन के मंदिरों में
जागृति बन जीवित है।
धर्म, निराश मन में,
आशा की किरन है।
धर्म स्वयं का स्वयं से,
परिचय है,
धर्म आत्मबोध है।
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– परिमल प्रज्ञा प्रमिला भार्गव