
तरु संवाद
शंकुल जाति के देवदारु ’सीडर’ने यह
पर्णपाती ’मेपल’ से प्रश्न किया,
क्यों हो रहा तव रंग इस तरह से पीला
तब भीमकाय मेपल ने उत्तर दिया।
(शरद)
ग्रीष्म का गमन है होता जब,
है शरद सजाता रंगोली,
शृंगार वधू सदृश मैं करता,
पहने पीली वर्ण चोली,
वर्णों की आती है बरात,
तरु बंधु खेलते हैं होली,
आनंद उत्कर्ष मैं पाता,
लगते सिंदूर और रोली।
(शीत)
शीत की भीति से हो भयभीत,
मीत होता है पर्णपात,
हिम के प्रहार, झंझे खूँखार,
स्मरणकर काँपता गात गात,
पड़ता प्रभाव वातावरण अरु
स्थान काल का सीधी बात,
मिली अनुवंशिकी विरासत
यह, उत्त्पत्ति मेरी वंश जात।
(वसंत)
शीत अंत पर आता वसंत,
रोमांचित रोम रोम मेरा,
उदयास्त अवधि में देख वृद्धि,
मुकलित हो पात पात मेरा,
नव कोमल कोंपल माल डाल,
सब झूमें डाल डाल मेरा,
तन आनंदित उन्मत्त मस्त,
‘मेपल रस’ बरस बरस मेरा।
(ग्रीष्म)
ऋतुराज का राज्य होता पूरा,
ग्रीष्म छटा दिखलाती है,
झाड़ियों, लताओं विटप संग,
भू पर हरियाली छाती है,
कुसमित कुसुम पराग पीने,
भ्रमरों की भीड़ लग जाती है,
रविरश्मि से क्रीड़ा कर के
हरी सुंदरता बढ़ जाती है।
सीडर की बोलने की फिर आ गई पारी,
गंभीर था स्वर उसका अरु आवाज़ भारी।
शीतल काल निरखिए भाई,
मुझ पर नित हरियाली छाई।
ग्रीष्म शीत सभी एक समान,
हरे पात मुझ पर विद्यमान।
गीता गाकर दिया संदेश,
कान्हा का है यही उपदेश।
करो प्रयत्न बने यह स्वभाव,
विषमताओं में हो समभाव।
(उपसंहार)
मनुज जाति की ओर से तुरु बहुत धन्यवाद,
शिक्षण मानव का किया, कर के तरु संवाद।
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– डॉ. भारतेन्दु श्रीवास्तव