
वह मैं नहीं हूँ किंचित प्यारे
जो मुझको तुम समझते हो नित,
वह मैं नहीं हूँ किंचित प्यारे,
नौ द्वार के प्राकृतिक भवन में
हम मनुज निवास करते सारे,
राजा और उसका अमूल्य महल
नहीं होते एक जिस प्रकार,
फिर मुझको तज मेरे इस सदन से
क्यों तुम करते इतना प्यार।
इसका अब भेद समझना होता
चाहते यदि अपना उद्धार
नहीं तो इस सुख-दुख की
जगती में आते रहेंगे बार-बार
पहले हम समझ लें स्वयं को
दूसरे को फिर जान पायेंगे,
गीता में कान्हा का संदेश सुन
जीवन सफल कर जायेंगे।
भूतकाल में नहीं है हमें रहना,
भविष्य से भी नहीं डरना,
सब परिस्थितियों का सामना कर
वर्तमान में जीवन जीना
नहीं रहेगा सदैव यहाँ पर
कोई, हर पल है स्मरण रखना
काम क्रोध मद लोभ दनुजों को
है आलय से भगाते रहना।
भूत को इतिहास में है रखना
भविष्य को रहस्य रहने दो
वर्तमान में साँस लेते हुए
जीवन महत्व समझते चलो
फिर समझ में आ जायेगा
कौन मैं, तुम और सब यहाँ प्यारे,
कविता सृजन और श्रवण होगा –
सार्थक कवि हृदय यही पुकारे
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– डॉ. भारतेन्दु श्रीवास्तव