
दे सको तो दे दो
जो कभी देने पर आओ, तो देना,
मुझे मेरी स्वतंत्र उड़ान,
मेरी कोमल आशायें,
मेरी आत्मा की आवाज़,
मेरी अनुभूति,
मेरी अभिव्यक्ति।
जो कभी देने पर आओ, तो देना,
मेरी चाहत का पूरा उत्तर,
प्रेम का उपहार, जो फूल ही नहीं होता बस,
दिलासा भी होता है।
जैसे मैं जान गई हूँ तुमको
तुम भी मुझे जानने का यत्न तो करो।
हर दिन बस यूँ ही ना गुज़र जाने दो,
हर दिन को बना लें एक अवसर,
मेरे थके हाथों को देना सहारा, चाहे कंगन नहीं।
मेरे छोटे से आकाश में उड़ानें भरने दो, स्वच्छंद,
मेरे लिए छोटी सी खिड़की-द्वार खुले रहने दो।
मैं तुम्हारा सूरज बनूँ, तुम मेरे चाँद,
अपनी साँसें दे कर रातों को बना दो चाँदनी
जो कभी देने पर आओ तो देना
मुझे मेरा अस्तित्व, मेरी जगह।
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– भुवनेश्वरी पांडे