
मेरी स्ट्रीट
है बहुत सुन्दर, मेरी स्ट्रीट
दस हज़ार साल से पुरानी कॅरिंग प्लेस ट्रेल
इसी पर थे फ़र्स्ट नेशन लोग सदा-सदा चले
हम्बरतटे, ऊँचे-ऊँचे संतरी ओक हैं खड़े
मेपल, बर्च, बीच, गिंगको मनोहर लगें
पाईन, जूनीपर, स्प्रूस कंधे से कंधा लगा डटें
राक्कून, क्योटी, लोमड़ी जहाँ रात-बिरात घूमें
ब्लू जे, ग्रे जे, चिक्कडी वृक्षों की शाखों पर झूलें
सुनो सुनो रॉबिन, कार्डिनल, वॉर्बलर चहुँ ओर
उनके मधुर सुरीले गीत करें हमें भाव-विभोर
दिखते हम्मिंगबर्ड आते ही बसंत
मोनार्क तितली को लाते संग-संग
स्नोड्रॉप, क्रॉकस, डेफ़ोडिल स्वागत में आएँ
दिल खोल मेगनोलिया,
टयूलिप, हायसिंथ खिल जाएँ
राज है जून तीस तक हवाओं पर लाईलेक का
फिर महलों से घरों के विस्तृत बग़ीचे सजाता
सुगंधित इन्द्रधनुषी फूलों का ताँता
गरमी आती, चली जाती
सुना हम्बर की कलकल
चिड़ियों का कलरव
श्यामा गिलहरी का किल्लोल
जिनका है भारी डील-डोल
शार्टरूज़ किसलयदल की ओट से झाँके नील गगन
आलस में अटे झूलें बेकयार्ड के हेम्मॉक में हम
ऑटम जल्दी से है आता
सच कहूँ मुझे ज़रा न भाता
बर्फ़ानी हवाएँ लिए इसका आगमन
‘गर न देता प्रकृति का रूमानी दर्शन
लाल-पीले-सुनहरी पत्तों के ढेर
समेटें वृक्षों की बाँहें
प्रतिपल धरती को अपने प्यार से
सराबोर करती जाएँ
सुगन्धि पुष्पों की नहीं हवाओं में अब
ओत-प्रोत फ़ायर-प्लेस के स्मोक में बस
मीठे-मीठे फल दे कह रहा मुझे दो विदा
बड़ा भाई है आता, मैं तो चला।
ओल्ड मैन विंटर की रफ़्तार तेज़ है आने की
जम कर विराजे, याद चाहे दिलाओ जाने की
खोलता रहता श्वेत, मखमली चादरें बर्फ़ की
सूरज की शक्ल तो मुश्किल ही दिखी
ठिठुरते खड़े बिन पत्तों के पेड़,
जैकेट लदे इंसां
बस टिमटिमाती दिवाली-क्रिस्मस की
पंक्तावली का आसरा
होगा समाप्त यह साल जल्दी ही
आएगा बसंत ले कर ख़ुशियाँ नई कई
मेरी स्ट्रीट में हर ऋतु का नज़ारा बेहद है प्यारा
मेरी स्ट्रीट, है अति दर्शणीय, मेरी स्ट्रीट।
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– मधु भार्गव