मुझको ले चल तू बादल पर

(नातिनी को पीठ पर चड्डू देते समय)

चल मेरे घोड़े तू तिक तिक,
मुझको ले चल तू बादल पर
पहले देखूँ क्या है ऊपर,
और देखूँ क्या नीचे है फिर।
मुझको ले चल …

काले गोरे भारी हलके,
बादल लगते प्यारे-प्यारे
होते मेरे जो पंख अगर,
उड़ जाती इनके साथ निडर।
मुझको ले चल …

परियाँ दीखें सुंदर-सुंदर,
उड़ती हैं वे सब इधर-उधर
कुछ गाती हैं कुछ मुस्कातीं,
कहतीं आना फिर तुम ऊपर।
मुझको ले चल …

नीचे धरती है हरी-भरी,
और वृक्ष खड़े हैं लघु-विशाल
पशु चरते पक्षी उड़ते हैं,
नदियाँ बहती हैं लहर-लहर।
मुझको ले चल …

मंथन में मस्त समुन्दर है,
सारी दुनिया में हलचल है
बस ट्रेन चलें और यान उड़ें,
संसार न रुकता है थक कर।
मुझको ले चल …

कोई चुप कोई चिल्लाता है,
कोई रोता है कोई हँसता है
दौड़े कोई धीरे बढ़ता है,
सीधे कोई चलता झुक-झुक कर।
मुझको ले चल …

अब जाऊँगी मैं जब नीचे,
पूँछूँगी सबसे पहले बस
यह दुनिया कौन चलाता है,
और किस पर है यह सब स्थिर।
मुझको ले चल …

*****

– राज माहेश्वरी

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