
आभास
नील गगन में निशितारों ने,
घूँघट अपना खोल दिया है।
प्यार से तुमने देखा मुझको,
ऐसा कुछ आभास मिला है॥
छवि तुम्हारी अंतर मन में,
मुझे फुहारें सी देती है।
लगता है इस बंजर मन को,
तुमने आकर सींच दिया है॥
याद तुम्हारी ने आ आ कर,
मुझको यूँ झकझोर दिया है।
मैंने भी तारों की भाँति,
नींद से नाता तोड़ दिया है॥
श्वेत चाँदनी छिटक रही है,
मन के कोमल भावों में।
जीवन से अनभिज्ञ बनी हूँ,
ओढ़ रात की चादर में॥
गूँज रहे हैं शब्द तुम्हारे,
गुंजित मधुर बहारों में।
शिथिल हुआ तन जैसे सोती,
धूप शिशिर की ऋतुओं में॥
लगता है कोई सरिता बहती,
कल कल करती यादों में।
रातों से नाता है जोड़ा,
आज मेरे जज़्बातों ने॥
जीवन में ना रस है कोई,
रस तो तेरी बातों में।
खोई रहूँ यूँ जन्म जन्म तक,
बस अब तो तेरी यादों में॥
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– सविता अग्रवाल ‘सवि’
