मैं ब्रह्मा हूँ

मैं ब्रह्मा हूँ
ये सारा ब्रह्मांड
मेरी ही कोख से जन्मा है
पाला है इसे मैंने
ढेर सा प्यार-दुलार देकर
और ये मेरे ही जाए
मेरी ही गोद का
बँटवारा करने पर तुले हैं
चिंदी चिंदी कर डाला है
मेरा आँचल
युद्ध चल रहा है
मेरी ही गोद में
ग़रीबों को कुचल रहें हैं अमीर
कमज़ोरों को धमका रहे हैं बलशाली
मैं किसके संग रहूँ
या किसको सही कहूँ
जिसको भी समझाना चाहूँ
वह ही विरुद्ध हो जाता है
’बहकावे में आ जाती हूँ’
मुझपर इल्ज़ाम लगाता है
एक दिन मुझसे जगह पलटें
ता जानेंगे दुविधा माँ की
क्या सह पायेंगे पल भर भी
सतत वे पीड़ा ब्रह्मा की?

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– दिव्या माथुर

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