
दर्द का रिश्ता…
– उषा राजे सक्सेना
मिहिर-मंजरी का गठबंधन न तो कोई इत्तफाक था और ना ही किसी दबाव का परिणाम। उनका विवाह माँ दयामयी, मिहिर के माता-पिता और मंजरी की स्वीकृति से ही वैदिक रीति-रिवाज के अनुसार कानपुर के मोतीबाग वाले विशाल भवन में संपन्न हुआ था।
मिहिर और मंजरी, स्त्री-पुरुष सदा एक-दूसरे के मित्र रहे। उनकी संवेदनाएँ बहुत हद तक एक ही रहीं। मिहिर अकसर कहता, “मंजरी यह वस्तु-जगत एक रंग-मंच है। हम यहाँ अपना-अपना किरदार निभाने आते हैं। इस मंच पर ‘विजुअल’ और ‘प्रॉप्स’ तरह-तरह के किरदारों और स्थितियों से उत्पन्न होते हैं। एक अच्छा कलाकार हर स्थिति में अपने किरदार को श्रेष्ठ अंजाम देते हुए चाहे तो अन्य किरदारों के किरदार को सफल या असफल बना सकता है।”
मंजरी सोचती, मिहिर ठीक ही कहता है। खुद उसका अपना जीवन भी तो बाबू की असमय मृत्यु के गुणनफल का ही प्रत्यक्ष प्रमाण रहा है। नहीं तो, तेरहवीं के दिन ही क्यों? जब ब्राह्मण खीर-पूरी जीम रहे थे तो उसका चचेरा भाई पप्पू, अपने दोस्त गुल्लू के साथ उस रोती-बदहवास वय-संधि पर खड़ी अबोध बालिका को दुलारने-पुचकारने के बहाने सहलाते-दबाते, भर अकुंआर चीथ-फाड़ उसकी अस्मिता को ही जीम जाते। उसे अपनी स्थिति तब समझ आई जब वे उसको चाट-चबा कर डकार ले चुके थे। चाचा घर के सरपरस्त थे, उनसे कुछ कहना बेकार था। उस अल्हड़, बावली, अनाथ की बातों का भला कोई विश्वास करता? पप्पू खानदान का इकलौता, लाडला वारिस था। माँ-पिता की मृत्यु से पहले ही त्रसित और असंतुलित थीं। जब उन्हें खबर लगी तो वह उसे झोंटा पकड़कर घसीटते हुए, ऊपर अटारी पर ले गई। मुँह में कपड़ा ठूँस, हरामखोर, हरामजादी, करमजली, नासपीटी, मुँहजली कहते हुए जो उसकी कुटाई की कि आज भी पसलियों में दर्द करकता है। फिर आधी रात चोटों पर हल्दी और तेल लगाते हुए, ऐसी घुट्टी पिलाई कि पंद्रह रोज तक वह अधमरी दर्द से बेजार बिस्तर पर पड़ी खून बहाती रही। इस घटना ने दयामयी को ऐसा दंश दिया कि उसके जीवन से अमन-चैन लुट गया। वह बदवास हो गई। जब उसे कुछ समझ नहीं आया तो वह उस नामुराद-बेवकूफ लड़की को घसीटती हुई रातो-रात कानपुर ले आई।
वहीं सीढ़ियों पर असहाय बैठी उन माँ-बेटी की मुलाकात आर्य-समाज मंदिर के प्रमुख, समाज-सुधारक लाला दीनदयाल गुप्ता और उनकी पत्नी से हुई। लाला दीनदयाल जी भले आदमी थे। उन्होंने माँ दयामयी को आर्य-समाज बालिका विद्यालय में लड़कियों को सिलाई सिखाने का काम सौंप दिया और उसे आठवें दर्जे में पढ़ाई के लिए नर्सरी में भर्ती कर दिया।
मंजरी ने जो पढ़ाई में मन लगाया तो पिछला हादसा भूल-सी गई। इसी बीच, लाला दीनदयाल जी की पत्नी के घुटनों का ऑपरेशन हुआ और वह बिस्तर से लग गईं। उनकी अस्वस्थता में मंजरी और उसकी माँ दयामयी ने कुछ इस तरह सेवा की कि उन्होंने मन-ही-मन मंजरी को अपनी बहू बनाने की ठान ली। और यह बात उन्होंने चुपचाप मंजरी और उसकी माँ को भी बता दी। मंजरी की माँ तो पहले ही किसी तरह उसके हाथ पीले कर उसे खदेड़ने की चिंता में थी। करमजली, लुटी-पिटी लड़की को कब तक घर में बिठाए उसकी रखवाली करती!
मंजरी को लाला दीनदयाल के घर में इतना प्यार और मान मिला कि वह खुद ही अपने-आप को इस घर की बेटी-बहू समझने लगी। संवेदनशील, परिश्रमी मंजरी जो भी काम करती पूरे समर्पित मन से करती तो आदर-सम्मान तो मिलना ही था। आधा-अधूरा मन तो उसके पास था भी नहीं।
छह-सात वर्षों बाद जब लाला दीनदयाल की बीमारी में उन्हें देखने उनका बेटा मिहिर लंदन से आया तो लाला दीनदयाल और उनकी पत्नी ने मंजरी से उसकी शादी का प्रस्ताव उसके सामने रखा। उन दिनों मिहिर का स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था। लंदन के अस्पतालों में इन्वेस्टीगेशंस चल रहे थे। अतः वह अभी शादी के पचड़े में नहीं पड़ना चाह रहा था। पर, जब पिता की अस्वस्थता को लेकर माँ ने उसका भावनात्मक दोहन किया तो वह इनकार न कर सका। तीखे नयन-नक्शवाली, परिश्रमी, मृदुभाषी मंजरी के प्रति उसके मन में पहले ही दिन से कौतूहल था। घरवालों ने जो मिलने-मिलाने की छूट दी तो आठ-दस दिनों में ही वे अच्छे मित्र बन गए।
बातों-ही-बातों में एक दिन मिहिर ने कहा, “अम्मा-बाबू का मन हम दोनों के गठबंधन का है। मेरी सेहत कुछ ठीक नहीं चल रही है। इधर मेरा वजन भी तेजी से घट रहा है। कारण पता नहीं है? लंदन के अस्पताल में इन्वेस्टीगेशन हो रहा है। ऐसी असमंजस की अवस्था में मैं शादी तो नहीं करना चाहता, पर माँ-पिता जी बहुत दबाव डाल रहे हैं।” कहते हुए उसने भर आँख मंजरी की ओर देखा, जिसमें प्यार हरे धान के खेत-सा लहलहा रहा था।
मंजरी के मन में मिहिर का खयाल बहुत पहले से घर कर चुका था अतः उसने बड़ी सहजता से कह दिया, “मिहिर हारी-बीमारी तो सबके साथ लगी होती है। इनसान वही है, जो दूसरों के दुख-दर्द में शामिल हो। तुम्हारा खयाल मेरे मन में बरसों से रहा है। मेरा मन भी तुमसे मिलता है। मैं तुम्हारी साथी बनने के लिए पूरे मन से राजी हूँ। तुम्हारे विचार और तुम्हारी साफगोई मुझे अच्छी लगती है। तुम्हारा साथी बन तुम्हारा सुख-दु:ख बाँटने में मुझे सुख ही मिलेगा।”
मंजरी के अवचेतन में औरत-मर्द के शारीरिक संबंधों को लेकर तरह-तरह की विषम ग्रंथियाँ पड़ी हुई थीं। वह मिहिर को पसंद करती थी। उसकी ओर आकर्षित भी थी। पर अपने पिछले दुखद अनुभवों के कारण विवाह से घबराती थी। कई बार उसे सपनों में दाँत निपोरते बंदर दिखाई देते जो उसे नोंचते-खसोटते, तेज नुकीले दाँतों से काट-काट कर पूँछ जैसी लंबी किसी चीज से उसके संवेदनशील अंगों को यंत्रणा दे रहे होते। इन सपनों से छुटकारा पाने के लिए वह हर रात हनुमान चालीसा और गायत्री मंत्र का पाठ करती। दिन में तरह-तरह के व्यायाम और योगाभ्यास करती। मगर फिर भी महीने-दो महीनों के अंतराल पर वे भयंकर सपने उसे त्रसित कर ही जाते। मिहिर की निश्छल और साफ-सुथरी बातें उसके मन में साहस भरतीं…
“मालूम है, मिहिर मैंने तो सोच रखा था पढ़ाई खतम करने के बाद मैं मदर टेरेसा के संगठन से जुड़ जाऊँगी और दीन-दुखियों की सेवा करूँगी। मेरे निरीह बचपन को मेरे चचेरे भाई पप्पू और उसके दोस्त गुल्लू ने ऐसा डसा कि मुझे स्त्री-पुरुष के स्वाभाविक संबंधों से गहरी वितृष्णा हो गई है। मेरा बचपन मुझे भयंकर त्रासदी देता है।”
“मंजरी, जब तक इन्वेस्टीगेशन का रिजल्ट नहीं आ जाता, मैं स्वयं भी वैवाहिक संबंधों से घबराता हूँ। पता नहीं मुझे टी.बी. तो नहीं है? यह खाँसी? यह वजन का गिरते जाना? कुछ अच्छे लक्षण नहीं हैं!”
“ऐसा मत कहो मिहिर, तुम जल्दी ही अच्छे हो जाओगे। टी. बी. आजकल कोई ऐसा असाध्य रोग नहीं है। बहुत से लोग इन बीमारियों के ट्रीटमेंट के लिए इंग्लैंड जाते हैं और बिल्कुल स्वस्थ होकर लौटते हैं। और फिर मैं जो तुम्हारे साथ हूँ…हम अच्छे मित्र भी तो हैं।” उसने मिहिर की आँखों में सीधा देखते हुए कहा तो उसकी आँखों में प्यार का सागर उमड़ आया। मिहिर मंजरी के आंतरिक सौंदर्य पर सदा-सदा के लिए मर मिटा।
“ओह! मंजरी सच! अभी समय है तुम अच्छी तरह सोच लो। यूँ मैं तुम्हारी भावनाओं का सदा आदर करूँगा। जीवन-साथी एक उदार, सहृदय मित्र हो, ऐसा अच्छा सौभाग्य भला कितनों को मिलता है?”
कहते हुए मिहिर ने मंजरी की ठंडी हो आई हथेलियों को अपने हाथो में लेकर समर्पित भाव से सहलाते हुए कहा, “मंजरी, हम जीवनभर अच्छे मित्र की तरह रह सकते हैं। संभवतः तुम्हें नहीं मालूम, इंग्लैंड में जहाँ एक ओर लड़के-लड़की कम उम्र में शारीरिक संबंध बनाने को आतुर रहते हैं, वहीं बहुत से स्त्री-पुरुष अच्छे मित्रों की तरह जीवनभर प्रतिबद्ध भी रहते हैं। कई मायनों में इंग्लैंड एक ऐसी जगह है जहाँ मनुष्यता, भाईचारा और उदारता अपने श्रेष्ठ रूप में दृश्यमान है। संसार में वही एक ऐसी जगह है जहाँ लोग अनजाने में हो गई गलतियों के लिए इनसान को पत्थर नहीं मारते हैं। वरन् कई लोग तो सहज ही निष्काम-निस्वार्थ भाव से अपना सारा जीवन किसी शारीरिक और मानसिक विकलांग या चोट खाए व्यक्ति की सेवा को समर्पित कर देते हैं। सच कहूँ तो इंग्लैंड एक विचित्र देश है। एक ओर जहाँ वह अतिभौतिकवादी है, वहीं दूसरी ओर अत्यंत उदार, कर्तव्यनिष्ठ और श्रेष्ठ सेवाभाव को समर्पित भी है।”
मंजरी भावुक हो उठी, “मिहिर, फिर तो इंग्लैंड मेरी मनपसंद जगह है। मुझे अपने साथ ले चलो। मैं अपना जीवन दीन-दुखियों की सेवा को समर्पित करना चाहती हूँ। यहाँ मैं परकटे पक्षी सा असहाय महसूस करती हूँ। मुझे कोई कुछ करने ही नहीं देता है, लड़की हूँ न! मेरे मन में बहुत सारी दुविधाएँ हैं… तुम्हारा साथ पाकर शायद मैं खुद को समझ पाऊँ, और जीवन में कुछ सार्थक कर पाऊँ…।”
और फिर वहीं आर्य समाज मंदिर में माता-पिता सगे-संबंधियों के सम्मुख वैदिक ऋचाओं के मंत्रोच्चार के साथ उनका गठबंधन हो गया और वे लोग लंदन आ गए।
लंदन आने पर जब इन्वेस्टीगेशन का परिणाम आया तो मिहिर स्तब्ध रह गया। मोटर साइकिल के एक्सिडेंट के समय ब्लड ट्रांसफ्यूजन या दोस्तों के साथ जवानी में की गई किसी नादानी के कारण एच.आई.वी. जैसी जानलेवा बीमारी उससे चिपक चुकी थी। काफी दिनों के आंतरिक द्वंद्व के बाद, एक दिन चिंतातुर मिहिर ने क्षमायाचना के साथ स्थिति को स्पष्ट करते हुए मंजरी से कहा, “मंजरी! मेरे जीवन का कोई भरोसा नहीं, अस्पताल से रिपोर्ट आ गई है। मुझे एच.आई वी. जैसी खतरनाक बीमारी है। अभी तक इस बीमारी की कोई दवा ईजाद नहीं हुई है। मैं जल्द मर जाऊँगा।”
फिर उसने मायूसी और अपराधबोध से सिर झुका, मंजरी से साथ न निभा पाने के लिए क्षमा माँगते हुए कहा, “मंजरी मुझे शायद जल्दी ही अस्पताल में भर्ती होना पड़े। मैं तुम्हें आजाद करना चाहता हूँ। मेरी दोस्ती, मकान और जो थोड़ा-बहुत बैंक बैलेंस है; उसी का अर्घ्य तुम्हें चढ़ा रहा हूँ।”
मंजरी बड़ी सख्त जान थी। बचपन से ही उसे जिंदगी को बहुत करीब से देखने की आदत थी। बजाय रोने-धोने के उसने मिहिर के कंधे पर अपना सिर रख कर उसे आश्वस्त करने की भरपूर कोशिश करते हुए कहा, “मिहिर तुम जानते हो, इस दुनिया में तुम्हारी मित्रता के अतिरिक्त मेरी और कोई चाहत नहीं रही है। तुम्हीं से मेरा परिवार है। घर है। तुम घर पर रहो, अस्पताल में रहो। तुम्हें एच.आई.वी. हो। कैंसर हो या टी.बी. हो। मैं हर हाल में तुम्हारे साथ हूँ। मुझे जिंदगी से कभी भी अधिक की उम्मीद नहीं रही। मुझे तुम जैसा दोस्त और हमदम मिला यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। तुमने मुझे ऐसी घुटन से निकाला है जिसमें मैं जीते-जी अपना रही थी। तुमसे मेरे मन का रिश्ता है। तुम सदा मेरे साथ रहोगे और अंतिम क्षणों तक रहोगे।” कहने को मंजरी इतना सब कह गई; पर, अंदर से वह मूल-चूल हिल चुकी थी।
मंजरी, मिहिर का मनोबल टूटने नहीं देना चाहती थी। उसे बचपन में वटवृक्ष की पूजा करतीं महिलाओं द्वारा सुनाई गई वह मिथक याद आई जिसमें सावित्री, अपने पति सत्यवान को मौत के मुँह से वापस ले आती है। सावित्री ने सबसे पहले मौत के देवता यमराज के स्वभाव को समझा, फिर उसने अपने चतुर सदाशयी शतरंजी चाल से उन्हें चित कर, अपने प्रियतम सत्यवान को मौत के चंगुल से छुड़ा लिया। ‘वह मिहिर को जल्दी नहीं मरने देगी, मिहिर को उसका साथ देना ही होगा। वह दूसरी सावित्री बनेगी…’ उसने मन-ही-मन संकल्प लिया।
मंजरी एच.आई.वी. को अच्छी तरह समझ लेना चाहती थी। अतः वह लाइब्रेरी से एच.आई.वी. और एड्स पर जितनी पुस्तकें मिल सकती थीं, ले आई। उनको पढ़ा और समझा। फिर डॉक्टर से विचार-विमर्श किया। एच.आई.वी. के रोगी की देखभाल यदि अच्छी तरह होती है और यदि उसका मनोबल अच्छा बना रहे तो वह दस से लेकर पच्चीस वर्ष तक जीवित रह सकता है। मंजरी ने योजना बना ली, कार्य-शैली निर्धारित कर ली, फिर अर्जुन के धनुसंधान से प्रेरणा ले, अपनी आँखें मिहिर के स्वास्थ्य पर केंद्रित कीं। समय का नुकीला तीर तेज गति से भागता रहा। एक दशक थोड़ी-बहुत उथल-पुथल के साथ गुजर गया। मंजरी ने शुक्र मनाया।
दूसरे दशक के आरंभ में ही एक दिन मिहिर के फैमली डॉक्टर नेल्सन ने मंजरी को संबोधित करते हुए कहा, “मंजरी अब मिहिर को ऑफिस से अवकाश लेकर कोई हलका-फुल्का कार्य करना चाहिए, जिसमें उसे थकावट न हो और वह व्यस्त भी रहे, साथ ही, उसका समय भी सार्थकता की अनुभूति के साथ कटता रहे तो वह कुछ और वर्ष साधारण जीवन व्यतीत कर सकता है।”
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, मंजरी ने स्कूल बदला। उसे घर के पास ही विंबल्डन पार्क प्राइमरी स्कूल में रिसेप्शन कक्षा को पढ़ाने का सुयोग मिला। पूरे स्कूल में कंप्यूटर इंस्टाल हो चुका था पर अभी तक कोई शिक्षक नियुक्त नहीं हुआ था। मंजरी ने सोचा जब तक स्कूल में कोई और कंप्यूटर शिक्षक नियुक्त नहीं होता है मिहिर के कंप्यूटर एक्सपर्टीज की स्वैच्छिक सहायता ली जा सकती है। स्कूल का प्रेरणादायक और स्फूर्त वातावरण मिहिर के मनोबल के लिए अवश्य ही लाभदायक होगा। बच्चों की भोली-भाली बातों के साथ जब वह उन्हें खेल-खेल में कंप्यूटर सिखाएगा तो वक्त-बेवक्त यह भी भूल जाएगा कि उसे एच.आई.वी जैसी जानलेवा बीमारी है। साथ ही, उनकी नन्हीं-मुन्नी समस्याएँ, उनके हँसते-खिलखिलाते चेहरे उसे जीवन के कष्टमय क्षणों से दूर भी ले जाएँगे। मंजरी कई वर्षों से सेकेंडरी और हाई-स्कूल में पढ़ाने का अनुभव ले रही रही थी। उसे लगा कि अब उसे अपनी शैक्षिक योग्यता को और डायनामिक बनाने के लिए प्राइमरी और नर्सरी स्कूल में पढ़ाने का भी अनुभव लेना चाहिए। इसीलिए उसने काफी सोच-विचार कर विंबल्डन पार्क प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने का चुनाव किया था। मिहिर को उसका यह चयन अच्छा न लगा। मिहिर चाहता था मंजरी कॉलेज में पढ़ाए ताकि उसे ऊँची तनख्वाह मिले। जीवन की आवश्यकताएँ पूरी करने में धन बहुत महत्वपूर्ण होता है। अतः उसने मंजरी से कहा, “मंजरी तुम्हारी क्वालिफिकेशन तो कॉलेज में पढ़ाने की है तुमने यह बच्चों के स्कूल में पढ़ाने की क्यों सोची? कॉलेज में पढ़ाती तो वेतन अच्छा मिलता।”
“अरे नही! मिहिर, एक अच्छे शिक्षा विशेषज्ञ को हर आयु के बच्चों को पढ़ाने का अनुभव होना चाहिए है। मुझे बच्चे अच्छे लगते हैं। बाल मनोविज्ञान मेरे शोध का विषय भी रहा है।”
फिर मिहिर की ओर स्नेह से देखते हुए बोली, “मैं तुम्हारे मन की बात समझती हूँ, मिहिर। तुम सोचते हो कि प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने से मेरा वेतन कम हो जाएगा। पर, यहाँ ऐसा नहीं है, इस देश में एक शिक्षक का वेतन उसकी शैक्षिक योग्यता पर आधारित होता है, न कि स्कूल और कॉलेज के हायर या लोअर होने पर। फिर, नर्सरी शिक्षा यहाँ बहुत महत्वपूर्ण है; वही तो छात्र के उच्च शिक्षा की आधारशिला है। और ये लोग इस महत्व को अच्छी तरह समझते हैं। प्राइमरी शिक्षक का यहाँ वही आदर है जो कॉलेज और यूनी के शिक्षकों का है।”
“अच्छा…फिर तो ठीक है। वैसे भी बच्चों की भोली-भाली बातें, उनके हँसते-खिलखिलाते चेहरे, हिरनों जैसी कुलाँचें भरती चालें मुझे भी खूब भरमाती हैं। कभी-कभी मन करता है मैं भी बच्चा बन जाऊँ…” मिहिर प्रसन्न होकर बोला।
“तो फिर मुश्किल क्या है? सुनो! आजकल स्कूल में कोई कंप्यूटर इंस्ट्रक्टर नहीं है। एक-दो घंटे स्कूल में वाल्युटियरी कार्य कर बच्चों को कंप्यूटर और टेक्नोलॉजी सिखा दो तो हमारा भला हो जाएगा। बच्चों के साथ काम करने में तुम्हें आनंद के साथ जीवन की सार्थकता भी नजर आएगी। तुम्हारे जैसा धीरज और कतर्व्यनिष्ठ ही तो एक प्राइमरी शिक्षक का मूल गुण है।” फिर उसने खिलखिलाकर हँसते हुए अपने चेहरे को उसके जैकेट की बाँहों में छुपाते हुए बच्चों सा अनुरोध किया, “आज कल हम लोग बड़े संकट में हैं, तुम हमारी मदद कर दो ना मिहिर? फाइनेंशल कट के कारण स्कूल को कंप्यूटर इंस्ट्रक्टर के स्वैच्छिक सेवा की बड़ी आवश्यकता है…”
“पगली कहीं की…” मिहिर ने उसके आरक्त हो आए गालों पर प्यार की चपत लगाते हुए कहा, “मुझे एच.आई.वी. है यह जानने के बाद भी वो लोग मुझे बच्चों के पास फटकने देंगे क्या?”
“तुम भी हद करते हो मिहिर, स्कूल शिक्षा संस्थान है। हम बच्चों को जीवन की वास्तविक शिक्षा देते हैं उन्हें कुकुलैंड में नहीं रखते हैं। सभी जानते हैं एच.आई.वी. छूत की बीमारी नहीं है। उसका संक्रमण अकसर ब्लड ट्रांसफ्यूजन की लापरवाहियों आदि से होता आया है। तुम्हारा मोटर साइकिल एक्सिडेंट स्कूल के पास ही हुआ था, यह सबको पता है। तुम्हारी फोटो उस समय स्थानीय अखबार में निकली थी। स्कूल में लोग बता रहे थे।” मंजरी ने मिहिर के संकोच को जड़ से उखाड़ फेंका।
मिहिर को बच्चों के साथ काम करने में जब नई ऊर्जा मिली तो उसका दृष्टिकोण सकारात्मक होने लगा। बच्चों को कंप्यूटर और टेक्नोलॉजी से परिचित कराने में उसे जीवन की सार्थकता मिली। उसका भी मन बच्चों में रमने लगा था। मंजरी उसके सान्निध्य में गुलाब की कली-सी खिल-खिल उठती। मिहिर के स्वास्थ्य में आई हलकी-फुल्की तब्दीली उसके मन को सिंदूरी कर देता। स्कूल की हेडमिस्ट्रेस मिहिर से बहुत प्रभावित थी। वह उसे स्कूल में स्थायी पद देना चाहती थी। पर, जब मंजरी और मिहिर ने अपनी असमर्थता और स्थिति की गंभीरता उसे बताई तो वह बोली, “ओह! इस दु:खद स्थिति के लिए हमें अफसोस है। पूरा स्कूल तुम्हारे साथ है मिहिर। तुमने मंजरी के कक्षा के बच्चों का मन जीत लिया है। हम जानते हैं, एच.आई.वी. कोई अच्छा होने वाला रोग नहीं है, पर नियमित व्यायाम और प्रेरणादायक वातावरण, जीवन की अवधि बढ़ा देता है। तुम लोग अकेले नहीं हो हम सब तुम्हारे साथ है। तुम साहस से इस रोग का सामना कर सको, इसके लिए हम रोज जीजस क्राइस्ट से प्रार्थना करेंगे। तुम्हारा हमारे स्कूल में सदा स्वागत रहेगा। तुम अपनी सुविधानुसार स्टाफ रूम में आकर अन्य टीचर्स के साथ अपना पूरा टाइम टेबल बना लो।” कहते हुए मिस हैमिल्टन ने उसे स्कूल असेंबली में सभी टीर्चस और बच्चों से परिचित करा दिया।
इतनी सहृदयता! इतना स्नेह!! मिहि1र और मंजरी का मन उत्फुल्ल हो उठा। अंदर होने वाला रक्त क्षरण रुक तो नहीं सकता है, पर विलंब कर सकता है। पहले तो मिहिर स्कूल कई वर्षों तक नियमित रूप से काम करता रहा। फिर जैसे-जैसे स्वास्थ में गिरावट आती गई, उसका स्कूल जाना कम होता गया। अंत में एक दिन मिहिर को अस्पताल में एडमिट होना ही पड़ा।
रक्त-विहीन चेहरे पर आँखें, साबुत तली मछली की आँखों सदृश्य उभर आई हैं। पपड़ियाए होंठ हिलाने में उसे तकलीफ होती है। पर… मंजरी उसकी पलकों के उठने-गिरने से ही उसके मन की हर बात समझ लेती है।
वह जानती है पूरे पच्चीस वर्ष किस तरह मिहिर की जिजीविषा इस घातक जानलेवा बीमारी से सिर्फ उसके लिए ही जूझती रही है। फिर इस कठिन घड़ी में वह उसके सुख के लिए आँखों में उमड़ते आँसुओं के वेग को दबाकर मुस्करा क्यों नहीं सकती?
परिवार में अब कोई रहा नहीं, जिसे मंजरी मिहिर के बारे में बताए। वैसे भी मंजरी किसी और मिट्टी-पानी की बनी हुई है; जो दूसरों के दुख-दर्द बाँट लेती है पर अपना दुख-दर्द अपने तक ही रखती है। अब मिहिर की दुनिया मंजरी में सिमट आई है। और मंजरी, उसके लिए तो मिहिर ही संपूर्ण ब्रह्मांड है।
आज सेंट जार्ज अस्पताल टूटिंग के लांसबेरा विंग में मंजरी को देखती मिहिर की पनीली सफेद हो आई आँखें किसी भी पल बंद हो सकती हैं। अंदर पल-पल टूटती-बिखरती-मरती मंजरी देखती है कि सारा कमरा फूलों, शुभकामना कार्ड, पत्रों और बच्चों द्वारा दिए गए शुभाषीश कहते हुए गुड्डे-गुड़िए और टैडी-बियर से सजा हुआ है।
स्कूल का बच्चा-बच्चा और यहाँ तक नेशनल फ्रंट का सपोर्टर (नस्ली- कट्टरपंथी) बिल भी पूरे मन से ईश्वर से उसके लिए दुआ माँग रहा है। जीवन-मृत्यु से जूझते मिहिर के प्राण सहजता से इस पार्थिव देह को छोड़े यही सबकी कामना है। मिहिर कष्ट में है सारा स्कूल असहज हो उठा है। स्कूल की यह चिंता मिहिर के प्रति सहज ही गहन प्रेम और लगाव का प्रत्यक्ष प्रमाण है। कल पूरा स्कूल हेडमिस्ट्रेस मिस हेमिल्टन के साथ मिहिर के अंतिम क्षणों को सुगम करने के लिए चर्च प्रार्थना करने गया था। मिहिर शांत मन से सहज ही प्राण त्यागे, मंजरी भी यही चाहती है… मिहिर जैसे नि:स्वार्थ और निष्काम लोग संसार में विरले ही होते हैं। सबसे मीठा बोलना और सबके काम आना, यही उसके जीवन का एक मात्र राग रहा है। और मंजरी… मंजरी तो उसके जीवन की लय रही है। उसके साँसों की आरोह-अवरोह रही है।
मंजरी को पहले दिन से ही पता था मिहिर उसके जीवन में केवल एक अतिथि की भाँति आया है। वह एक मलय पवन है, एक बसंती बयार का झोंका है, जो उसके नथुनों में सुगंध की तरह तनिक देर बसेगा पर उसकी पकड़ में नहीं आ सकेगा। उससे बिछड़ने का राग ही उसके जीवन का स्थायी राग है। आज जब बिछड़ने की वह घड़ी साक्षात उसके सामने खड़ी है, तो वह चंचल हो उठी है। बिदा की यह घड़ी कितनी मार्मिक, असह्य और भयावह है। अंतर-वेदना का समुद्र गहरा रहा है। मिहिर से बिछड़ना खुद से बिछड़ने जैसा हो रहा है। वह लज्जा और संकोच छोड़कर सिर पटक-पटक कर जाहिल असहाय औरतों की भाँति छाती पीट-पीट कर रोना चाहती है, पर वैसा रोना मिहिर का अपमान करने जैसा होगा। मिहिर की विदा की घड़ी को और कठिन बनाने जैसा होगा। वह भीषण तूफान को अंदर समेटे शांत और सौम्य बनी, मिहिर के आँखें खोलने पर मधुर मुस्कान बिखेरती है। उसकी हथेलियों में रखा मिहिर का कमजोर हाथ बस जरा सा हिलता है और वह समझ जाती है मिहिर ने उसके मुस्कान का जवाब दिया है और उसकी पलकें सुकून से फिर बंद हो जाती हैं। मिहिर ने ही उसे यह जीवन दिया था। उसने ही उसे जीना सिखाया और अब उसके जाने की घड़ी आ गई है। वह किसी भी पल चुपचाप बिना आवाज उससे विदा ले लेगा। मंजरी से उसका कष्ट देखा नहीं जा रहा है। जैसे ही मिहिर थोड़ी चेतना में आता है दर्द से उसका चेहरा विकृत हो उठता है। वह ‘मर्सी किलिंग’ की अपील करती है। अपील खारिज हो जाती है।
मिहिर की मृत्यु की प्रतीक्षा में वह स्वयं मरने लगती है।
तभी मिहिर को जरा होश आता है वह इशारे से मंजरी का हाथ माँगता है। और अपनी कलाई से ढीली पड़ आई कैसियो घड़ी को काँपते हाथों से मंजरी की कलाई में डालने का अधूरा प्रयास करता है। फिर अपनी ठंडी हो आई हथेली उसके हाथो में छोड़ आँखें मूंद लेता है। मंजरी की रुलाई छूटने को होती है; पर, वह उसे रोक लेती है। गले में अटकी दर्द की गुठली ऐंठने लगती हैं…
मिहिर की आँखें फिर हलके से खुलती हैं उसे मंजरी का चेहरा साफ नही दिखता है। पर वह मुस्कराने की कोशिश करते हुए विदा माँगता है, जवाब में मंजरी उसके हाथों को हलके से दबाकर अपना स्नेह प्रदर्शित करती है। मिहिर की आँखें उसकी आँखों से पलभर को उलझ जाती हैं। फिर वह पूरे कमरे को एक नजर देखता है।
कमरा फूलों, टैडी-बियर और ‘गेट वेल सून’ के कार्ड से सजा हुआ है। बच्चे हर रोज उसे ‘गेट वेल सून’ का कार्ड भेजते हैं।
बुझते दीये की लौ लपलपाती है…
स्मृति के पन्ने फड़फड़ाते हैं…
हेडमिस्ट्रेस मिस हैमिल्टन तथा अन्य टीचर्स उसे लैपटॉप भेंट करते हुए कहती हैं अस्पताल में तुम बोर मत होना। लैपटॉप पर बच्चों के लिए नन्हीं-नन्हीं कहानियाँ लिखना, अपना प्रिय संगीत सुनना और वीडियो गेम खेलना। बच्चों ने कहा, वे उससे ई-मेल पर बातें करेंगे और अपने माता-पिता के साथ उसे अस्पताल देखने आया करेंगे।
इतना स्नेह, इतना प्यार, इतना सम्मान! विदाई के दिन मिहिर ने गले में अटक आई गुठली को पानी पी-पी कर सरकाते हुए आँख में आए आँसुओं को पोंछा फिर जोर से ठहाका लगाते हुए बोला, “मैं कहीं जा थोड़े ही रहा हूँ मैं तो कंप्यूटर में बसने जा रहा हूँ। जब कभी तुम लोग कंप्यूटर खोलोगे मेरी तस्वीर स्क्रीन सेवर पर पाओगे और जब की-बोर्ड पर तुम्हारी उँगलियाँ खेलेंगी तो इंस्ट्रक्शन मेरी आवाज में आएगी…हाँ तुम लोग मंजरी का खयाल रखना और मुझे ‘गेट-वेल’ कार्ड भेजते रहना…और वह मुड़कर पियानो चेयर पर आँसू पोंछते हुए बैठकर ‘द साम ऑफ लाइफ’ बजाने लगा…
विदा की घड़ी कठिन थी।
यह सब तो होना ही था।
मंजरी आत्मबल बनाए रही…
बच्चे अस्पताल में मिहिर के लिए रोज तस्वीरें बना-बना कर गेट-वेल कार्ड भेजते रहे। मंजरी के सभी साथी और मिस हैमिल्टन उसे देखने आते रहे। मंजरी का मनोबल कई बार टूटा; पर, मृत्युशैया पर पड़ा मिहिर, साथी शिक्षक और नर्स, मंजरी को संबल देते रहे। मंजरी यूँ भी इस परीक्षा की घड़ी के लिए पहले दिन से ही तैयार थी।
मिहिर अंतिम साँसें गिन रहा है। उसकी रक्तवाहिनी शिराएँ निष्क्रिय हो चली हैं। सदा स्नेह छलकाती आँखें निस्तेज हो चली हैं। क्षण-क्षण…पल-पल मिहर के साँसों का हिसाब देते मॉनीटर का ग्राफ धीरे-धीरे एक सीधी रेखा में परिवर्तित होने लगता है…
मंजरी बुदबुदाती हुई भागवत् गीता के एक ही श्लोक को बार-बार दोहराती है। शब्द अर्थ खो देते हैं। समय ठहर जाता है। मृत्यु की आहट से त्रस्त, विछोह से अवसन्न,…वह अचेत-सी न जाने कितनी देर स्तब्ध बैठी रहती है, इसका अहसास उसे तब होता है जब नर्स उसके के हाथों से भागवत गीता उठा, सामने टेबल पर रख देती है। और मंजरी के हाथ में पास रखी कटोरी पकड़ा देती है। मंजरी किसी यंत्रचालित रोबोट सी मिहिर के मुख में तुलसी-दल रख गंगा-जल की बूँदें टपकाती है। मिस हैमिल्टन उसके कंधे पर आश्वस्ति का हाथ रखते हुए परिवार के किसी बड़े सदस्य की तरह मोबाइल फोन पर बिल हडसन को अंतिम संस्कार के लिए स्थानीय मंदिर के पंडित को सूचित करने के लिए कहती हैं…
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