
मुहावरे और लोकोक्ति की भिड़ंत
एक दिन
मुहावरे और लोकोक्ति में
हो गई जिद्दबाजी
कदम पीछे हटाने को
न मुहावरा राजी
न लोकोक्ति राजी!
मुहावरे ने उचक कर कहा —
तुम खुद को समझती क्या हो?
तुम जो भी हो
लोगों के अनुभवों का निचोड़ हो
लोग ही तुम्हारे जन्मदाता हैं
तुम लोगों की बनाई हुई मिज़ाइल हो
सारा जगत
तुम्हें प्रक्षेपास्त्र की तरह चलाता है
तुमसे इतने झूठ बुलवाता है
होते हैं एक और एक दो
पर उन्हें ग्यारह बताता है
पता नहीं
यह लोक 9 कहाँ से लाता है?
अब बताओ —
कोई बात हुई
थोथा चना बाजे घना!
लोकोक्ति भवें टेढ़ी करके बोली —
यह कथन तेरे लिए ही है बना!
अरे मुहावरे!
तू इतनी देर से बलबला रहा है!
मुझे लोक की ईज़ाद बता रहा है
कभी मिज़ाइल बता रहा है
और तू!
खुद को आईने में देख!
वाक्य की देह में डली
रॉड-सा पड़ा हुआ है
उसके किसी अंग का
स्थानापन्न बना हुआ है
पर इतरा ऐसे रहा है
जैसे तू भाषा का टूल नहीं
उसका फूफा हो!
बात ऐसे करता है
जैसे कोई बड़ा शिगूफा हो!
मेरा तो फिर भी वजूद है
पर तू तो
खुद चल भी नहीं सकता
सिर्फ वाक्य का अंग है!
वो तुझे बाहर निकाल फेंके
तो तू अपंग है!
पर डीँग इतनी मारता है
कि बड़े बड़े झूठोँ को भी मात देता है
कभी पाँव के नीचे से
जमीन सरका देता है
कभी तिल का ताड़ बना देता है
बातें ऐसी बेतुकी करता है
कभी थूके हुए को चटवा देता है
कभी मुसीबत का पहाड़ तुड़वा देता है!
और तू मुझे कहता है
लोक की मिज़ाइल!
पर मैं हूँ तो अपने पाँवों पर ख़डी
तेरी तरह वाक्य के गले तो नहीं पड़ी!
उसके गले की हड्डी तो नहीं
खुद चल भी न सकूँ
इतनी फसड्डी तो नहीं!
फसड्डी सुनते ही मुहावरा हँसा —
बोला —
सुन ओ लोकोक्ति!
तू! भाषा के किसी काम नहीं आती
तू तो वाक्य की मंथरा दासी है
कभी उत्तेजना में आकर
उसे बिना बात भड़काती है
कभी उसके समर्थन में सिर हिलाती है
उसकी येसमैन है
अपने बॉस के काम आती है
वो जो कहे
उसके पक्ष में नारे लगती है
विज्ञापन करती है
पर खुद को बॉस समझती है!
मैं सब करतूत समझता हूँ
तेरी हेकड़ी निकाल दूँगा
तेरी औकात
सारी दुनिया को समझा दूँगा!
जब होने लगी
इस तरह कपड़ों की फाड़ाफाड़ी
तो मौन हो गई लोकोक्ति बेचारी
नारी जात जो ठहरी
इज्जत की मारी।
मुहावरे को भी शर्म आई, गर्दन झुक गई
उसकी ऊलजलूल भाषा वहीं रुक गई
उससे गर्दन उठाई ना गई!
वह लोकोक्ति का आँचल पकड़कर
लिपट गया
लोकोक्ति का दिल
मोम-सा था, पिघल गया
बोली — अरे नन्हूँ!
तू बड़ा शैतान हो गया है !
जुबान के तीर ऐसे चलाता है
कि खुद कृपाण हो गया है।
मुहावरा मुँह छुपा कर बोला–
दीदी! मुझे और लज्जित ना करो।
मैं तो शर्म से गला जा रहा हूँ!
जमीन में गढ़ गया हूँ!
जाने कैसा-कैसा दोष
तुझ समर्पिता पर मढ़ गया हूँ!
मेरी नालायकी पर न जाना!
मुझे अपना नन्हूँ ही समझना।
तुम्हारे लिए
किसी का भी सर कलम कर दूँगा
या खुद कलम करवा लूँगा
तुझ पर जो भी उँगली उठाए
उसे मिट्टी में मिला दूँगा।
लोकोक्ति बोली — क्या मैं जानती नहीं!
हम दोनों भाषा के सबसे उन्नत शस्त्र-अस्त्र हैं
पानी में आग लगा देते हैं
दुश्मन के छक्के छुड़ा देते हैं
किसी को मोम
किसी को लोहा
तो किसी को गुलबदन बना देते हैं
हम पैदा होते हैं झोंपड़ियों में
मेलों में, बाज़ारों में!
हम जनपथ से लेकर
राजपथों तक सजाए जाते हैं
सैनिकों के तूणीर में लगाए जाते हैं
हम आपस में
कभी लड़ा नहीं करते
और अगर उलझ भी जाएँ कभी आपस में
तो झगड़े को बड़ा नहीं करते।
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– डॉ. अशोक बत्रा