उक्ति के बहाने से

कुछ भी कहा
वो वाक्य है
अपना मत रखा
तो कथन है
कथन की ओर उँगली
उक्ति है
सारगर्भित
या कि मर्मबेधक उक्ति
सूक्ति है
और बरसों बरस का अनुभव
चढ़ जाए
लोगों की जुबान पर
तो लोकोक्ति है

खाकर कच्चा करेला
या नीम की पत्ती
जो कहा जाए
वह कटूक्ति है
और मुस्कराते हुए
धूल चटा दी जाए
तो व्यंग्योक्ति है

प्रतिवादी को
तड़पा-तड़पा कर
घुमा-घुमा कर
उक्ति से पटका जाए
तो वक्रोक्ति है

कोई एक को हज़ार बताए
तो अतिशयोक्ति है
उस अतिशयोक्ति की भी अतिशयोक्ति
अत्युक्ति है
और अगर चिंघाड़ते हाथियों को
अपने घूँसों से
आसमान में उड़ा दे
कोई चूहा
तो उसे कहते हैं ऊहा

कोई बालक अपने
बालकोचित स्वभाव को
स्वभाववश कह दे
तो स्वाभावोक्ति

कोई लेकर
प्रतीकों का सहारा
कहे कुछ
और सन्धान करे कहीं और
तो अन्योक्ति है
या यों कहें
अन्य को कही गई उक्ति अन्योक्ति है

और अगर शूल नहीं
द्विशूल हो कोई
अर्थ दो दो सन्धान करे
प्रसंग में तो कहे ही कहे
कहीं और भी इशारा करे
हों एक साथ दो दो अर्थ भरे
तो समासोक्ति है

और यदि कहने वाला
केवल संकेत अर्थ से बोले
साफ- साफ बिल्कुल न बोले
तो समझ लेना पर्यायोक्ति है

यों तो उक्तियों में सहोक्ति भी है
विनोक्ति भी है
व्यजोक्ति भी है
पर विशेष है विशेषोक्ति
जिसमें सावन खूब बरसता है
मगर मन है कि प्यासा रहता है
आदमी भीड़ में भी अकेला रहता है

और मित्रो!
यह उक्ति भी
पत्थर की लकीर नहीं होती
लकीर की फकीर नहीं होती
वह बदलते वक्त के साथ
परिभाषा बदल लेती है
कभी फैल जाती है समुद्र-सी
कभी नदी-सी सिमट लेती है

वक्रोक्ति कभी अलंकार का पर्याय थी
आज यह वक्र कूट शैली वाला
एक घातक हथियार है
आप कह सकते हैं — घातक अलंकार है।
इसके चलने भर से
विरोधी जमीन में गढ़ जाता है
शिशुपाल का शीश कट जाता है।

और हाँ!
कविता की अदा में
लिखी जाने वाली
हर उक्ति कविता नहीं होती
वह पद्यात्मक गद्य हो सकता है
या ज्ञानगर्भित पद्य हो सकता है

पद्य कविता ही हो
जरूरी नहीं
कविता के लिए संवेदना जरूरी है
फिर भी आप
इस रचना को
कविता कहते हैं
यह आपकी मज़बूरी है।

*****

– डॉ. अशोक बत्रा

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