गौरैया

पिताजी कहते थे
काटे हुए नाखून
दरवाजे के सामने
कभी मत फेंकना,
दाना समझकर
चुन लेती है, गौरैया
और
पेट की अंतड़िया टूटकर
तड़पकर मरती है गौरैया,

फसल कटाई खत्म होते ही
पिताजी मंदिर जाकर
बंदनवार में अनाज के भुट्टे बांध देते थे,
फसल कटाई के दिन
उड़ा दिए गए पंछियों के लिए
पानी का भरा हुआ मटका टांग देते
और पुण्य कमा लेते थे,

पंछी होकर भी गौरैया जानती थी
पिताजी का मन
और
फसल कटाई खत्म होने पर भी
गौरैया डेरा डालती थी गांव घर आंगन।

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मूल मराठी कविता : इंद्रजीत भालेराव

अनुवाद : विजय नगरकर

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