
ऐसी बानी बोलिए _कबीरा आपा खोए LOL
-डॉ शिप्रा शिल्पी सक्सेना, कोलोन , जर्मनी
ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोए।
औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय।
15 वीं शताब्दी में जब कबीरदास ने ये दोहा लिखा था तब उनके दिवास्वप्न में भी नहीं आया था कि वाणी की, भाषा की एवं सौम्य, सुंदर, सरल और सुसंस्कृत शब्दों की चाशनी से लबालब भरे जिन शब्दों की वो बात कर रहे है वो 21वीं सदी में आते आते डायनासोर की प्रजाति हो जायेंगे। शब्द सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होते होते, इतने अनकटौटे और अरबेटी हो जायेंगे, कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में भी उसको व्याख्यायित करने वाला कोई न मिलेगा। वाणी इतनी निर्लज्ज हो जाएगी कि द्रोपदी की लाज बचाने में सक्षम कृष्ण का चीर भी जिसको नहीं ढक सकेगा। यहां तक कि संस्कारों की सभ्य सीमाओं को चीरते हुए 21वीं सदी की जंगली घास से प्रस्फुटित शब्दावली ब्रह्माण्ड को चीरते हुई पुनः असभ्यता एवं बर्बरता के युग में जाने को उद्यत हो जाएगी। जहां शोर ही संवाद था। सच कहूं तो गूगल बाबा की भी ज्ञानेंद्रियां जिस भाषा के तिलस्मी रहस्य को नहीं खोज पा रही, उसका अनुमान बेचारे कबीर दास लगाने का मंतव्य बना रहे। आर्यभट्ट के शून्य की खोज पर अध्ययन सरल है किंतु आज के युग की न्यू नॉर्मल शब्दावली के अर्थ को क्रैक कर पाना बीरबल की खिचड़ी से भी दुष्कर है। दुनिया चांद पर पहुंच गई है, ai ने मानवीय दिमागों की बत्ती गुल कर दी है, डिजिटल दौर में आदमी मशीन बन गए है और मशीन को चाहिए ऑयलिंग, ग्रीसिंग, तेल, वाणी की शीतलता से कब है इनका मेल। उसे चाहिए करेंट, पर एक बात है ये मशीनी मानव आज भी मिग 25 के युग में तरकश से शब्दों के वाण चला रहे है, हां ये बात अलग है अब इनके तरकश में मान भेदी, संस्कार भेदी, अंग भेदी, अश्लील वाणों की भरमार है। आधुनिकता के नाम पर ये इन्हें खुलेआम चला रहे है, लोग भी चटखारे ले ले कर सभ्य भाषा की हत्या का उत्स मना रहे है।
सोशल मीडिया पर बदहवास, बौखलाए, पथभ्रष्ट नवयुवक जब अपने ही रिश्तों की धज्जियां उड़ा रहे है। तो हम, हां !! हम ही उन्हें मिलियन views देकर मालामाल कर रहे है। उनके अभद्र अश्लील बेसिरपैर के चुटकुलों पर बेशर्मों की तरह हंसकर उनका हौसला बढ़ा रहे है। जिस बेटे ने मां बहन की इज्जत अभी सारे आम तार तार की थी , वो ब्लॉग्स बनाकर बड़े बड़े शोज में अपने हाईलोजन के संघर्षों की गाथा सुना रही है। अब कुल चिराग कहकर इन महान कुपूतों की झूठी शान में बट्टा थोड़ी लगाना है। और न ही इनके शब्द भेदी वाणों की शर शय्या पर अपने जमीर को लिटाना है । वाह री दुनिया, वाह रे रिश्ते। ये सब सुनकर कबीरदास सकपकाए बोले ये स्टेल्थ बॉम्बर जैसी कौन सी भाषा है, जो मेरे दोहे के परखच्चे उड़ा रही है। उलटवासी और अनगढ़ तो हम भी कहते थे, पर ये Lol क्या बला है अब तो हम भी है सकते में।
आनन फानन भारतेंदु जी को फोन लगाया पूछा Lol जानते हो , भारतेंदु जी ने कहा निज भाषा उन्नति है, सब उन्नति को मूल, मेरे युग में भाषा में नहीं हुई कोई भूल। Lol कुछ विचित्र लगता है, शायद मंगल ग्रह की भाषा है। कबीरदास भौचकाए बोले घट घट में जब राम को खोजा तो lol को भी खोज लेगे। सोचा चलो वर्तमान में चलते है, कल ही विज्ञापन आया था, महाकुंभ लगा है ज्ञानी विज्ञानी का थाल सजा है, कोई न कोई मिल जाएगा, LOL का राज भी खुल जाएगा। महाकुंभ में प्रवेश करते ही एक गौगल धारी, सिक्सपैक युवा कबीरदास को देखते ही बोला क्या तुम ही आईआईटीएन बाबा हो, मै भी एयर इंजीनियर हूं, पंचर बनाता हूं , hey buddy व्हाट्स अप।
कबीर दास सकपकाए बोले वत्स ! ये कौन सी भाषा है , जो हम समझ न पाए। युवक पोकर मुंह करके बोला _ Lol हिंदी है ड्यूड। कबीर ने कहा Lol _Lol क्या है ये मखौल। युवक ने कहा चिल पिल मैन हम जैज़ी है, ज्यादा बोलेंगे तो Ls हो जायेंगे, इसलिए LoL कहकर स्माइली भेज देते है, मुस्कुराने का कष्ट भी नहीं करते है। अब चौंकने की बारी कबीर दास की थी बोले हे राम हमे जब हंसी आती थी हम हंसते थे, हंसने के लिए भी शब्द, हे परमानंद कैसी तेरी माया है। जैसे जैसे कबीरदास का ज्ञान बढ़ रहा था हताशा और नैराश्य से उनका हृदय डूब रहा था। कबीरदास ने मन ही मन सोचा, ये बेचारा अभी छोटा है, एक पीढ़ी ऊपर चलते है, युवक के मां बाप से मिलते है। वो अवश्य ही वाणी में शीतलता रखते होंगे किसी का आपा न खोए ऐसा प्रयास करते होंगे।
घर में प्रवेश करते ही युवक ने जोर से आवाज लगाई, ममी, कबीर घबराए!! बोले ममी तो मरे हुए शरीर को कहते है, क्या इस युग में ममी को घर में रखते है। तभी एक पाउट धारी, सुंदर, छहररी काया वाली नारी साक्षात प्रकट हुई, उन्हें देख वाणी की शीतलता के सपने को लग गई ब्रेक। कबीर ने कहा यह ममी है। आशा अभी भी बची है, बेटा पिताश्री को बुलाओ वो चिल्लाया डेड, हाय हाय ये क्या सुना, हृदय पकड़ कर बैठ गए कबीर बोले, आह हे प्रभु !! कितना दुखद इस उम्र में वैधव्य।
युवक बोला OMG !! जैसा आप सोच रहे वैसा नहीं है, पिता जी जिंदा है। कबीरदास ने मन ही मन सोचा अब किसी से क्या ही मिलना है, गुरु को बुलाया तो जाने क्या बुला देगा। महाकुंभ में आया हूं पाप लगा देगा। टीचर ही भला है कम से कम टी बुलाएगा , फिर चाहे हम चाय समझे, कम से कम गुरु को ___तो नहीं बुलाएगा।
हम हंस सकते है, क्योंकि भाषा, वेद, पुराण, संस्कार हम में अभी जिंदा है किंतु आने वाला समय विध्वंसकारी है, सोच कर देखिए जब हमारे बच्चे इमोजी, omg, Lol से काम चलाएंगे। हमारे वेद, पुराण, संहिताएं न उनसे पढ़े और न ही उन्हें समझ आयेगे। पूरा वाक्य बोलना भी सजा होगा, शब्दों का अकाल और सिर्फ अभद्र भाषा से उनका शब्दकोश भरा होगा।
रील की दुनिया से रियल में आइए। संवाद स्थापित कीजिए। वरना हम बस HMRJ अर्थात हाथ मलते रह जायेंगे।
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