प्रीति अग्रवाल ‘अनुजा’ की हाइकु – (हाइकु)
प्रीति अग्रवाल ‘अनुजा’ की हाइकु 1. झीनी चूनरशालीनता दर्शा तेबदरा लौटे। 2. छम छपाक!औंधी सीधी टपकेंबूँदें बेबाक। 3. धूप का पारासातवें आसमाँ पेबूँदें उतारें। 4. प्रीत न बंधे!मुठ्ठी भिंची रेत…
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प्रीति अग्रवाल ‘अनुजा’ की हाइकु 1. झीनी चूनरशालीनता दर्शा तेबदरा लौटे। 2. छम छपाक!औंधी सीधी टपकेंबूँदें बेबाक। 3. धूप का पारासातवें आसमाँ पेबूँदें उतारें। 4. प्रीत न बंधे!मुठ्ठी भिंची रेत…
आईना कई दिनों बादअपने आप को आजआईने में देखा,कुछ अधिक देर तककुछ अधिक ग़ौर से! रूबरू हुई–एक सच्ची सी सूरतऔर उसपर मुस्कुरातीकुछ हल्की सी सिलवट,बालों में झाँकतींकुछ चाँदी की लड़ियाँ,आँखों…
कटघरा जाने क्यों और कैसेरोज़ ही अपने कोकटघरे में खड़ा पाती,वही वकीलवही जजऔर वहीबेतुके सवाल होते,मेरे पासन कोई सबूतऔर न गवाह होते,कुछ देर छटपटा करचुप हो जाती,मेरी चुप्पीमुझे गुनहगार ठहराती,वकील…
फिर वही वही खिड़कीवही कुर्सीवही इलायची वाली चायवही पसन्दीदा कपवही थकनवही सवालऔर वही जवाब!उफ्फ!ये बेहिसाब ज़िम्मेदारियाँ!लाइन लगाकरहमेशा तैनात,जाने कब ख़त्म होंगी . . .जाने कब सब बड़े होंगे..जाने कब मुझे…
मुलाक़ात नहीं है, तो न सहीफ़ुर्सत किसी को,चलो आज ख़ुद से,मुलाक़ात कर लें! वो मासूम बचपन,लड़कपन की शोख़ी,चलो आज ताज़ा,वो दिन रात कर लें। वो बिन डोर उड़ती,पतंगों सी ख़्वाहिशें,बेझिझक,…
जल्दबाज़ी में यूँही, स्कूटर को आड़ा-टेड़ा खड़ा करके, तेज़ क़दमों से राकेश बढ़ा और सड़क के कोने पर छोटी सी फलों की छबड़ी लगाए लड़के से बोला, “अरे भईया, ज़रा…
आज सभी प्रदर्शनी की तैयारी में जुटे हुए हैं। एक कोलाहल सा मचा हुआ है। नहीं नहीं! हम कहीं बाहर प्रदर्शनी देखने नहीं जा रहे हैं, प्रदर्शनी यहीं है, हमारे…
आज नेहा के ऑफ़िस का वार्षिक उत्सव था। उसने अपने आप को आख़िरी बार आईने में निहारा- गुलाबी बनारसी साड़ी और उसपर सोने, मोती का हार व झुमके– वह बेहद…
जन्म स्थान : नई दिल्ली, भारत वर्तमान निवास : टोरोंटो, कैनेडा शिक्षा : बी.ए. अर्थशात्र (ऑनर्स) संप्रति : स्वतंत्र-लेखन प्रकाशित रचनाएँ : कवितायें, हाइकु विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखन विधाएँ…