– विनीता तिवारी, वर्जीनिया, अमेरिका

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एक जीवन हूँ

एक ख़ामोशी सी रहती है
जाने मुझसे क्या कहती है

सोचा करती
कि कौन हूँ मैं
अपने ही तन में
मौन हूँ मैं
क्यूँ शांत स्वरूप
सी फिरती हूँ
कुछ भी कहने से
डरती हूँ
उठकर क्यूँ बोल
नहीं पाती
दिल अपना खोल
नहीं पाती

मैंने भी देखें हैं सपने
जीऊँ पलभर
ढंग से अपने
क्या हुआ
अगर मैं नारी हूँ
ना अबला ना बेचारी हूँ
एक जीवन हूँ
और जीने के ढंग
चुनने की अधिकारी हूँ

तो उठो!
मौन व्रत तोड़ो अब
दुनिया की परवाह
छोड़ो अब
कर लो स्वप्नों का
अभिनंदन
ख़ुद से ख़ुद अपना गठबंधन

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