चाहत
क्या हुआ जो तुम मुझे नहीं चाहते
मेरा प्यार
हो या
समुद्र की अथाह गहराई
न तुम उसे भाँप सके
न इसे नाप सके
फिर भी तुम आया करो
क्योंकि
तुम्हारा आना जैसे
पतझड़ के मौसम में
बहार का एक झौंका
जानती हूँ
तुम मुझे प्यार नहीं करते
फिर भी तुम आया करो
तुम्हारा आना और
आ कर वापस चले जाना
उन्हीं कुछ क्षण की यादों को समेटे
उन्हीं के साये में
मैं जिंदगी गुज़ार लूंगी
मैं जानती हूँ
तुम मुझे नहीं चाहते
फिर भी तुम आया करो
अभिलाषा है
तेरे खुश्क होते शब्दों पे
बादल रख दूँ
तुम थोड़ा भीग जाओ
तुम्हारी वो मेज़
जिस पे मेरे नाम की मीनाकारी थी
डायरी जिसमें में न जाने कितनी बार
मैं डूबी उतरी थी
वो लम्हे फ़र्श पे बिखरा दूँ
तो शायद
ख़ामोशियाँ जो आहटों को
आगोश में भरे तेरे अंदर है
लफ़्ज़ बन के बह जाएँ
तुम अपने हिस्से में नहा लो
मैं अपने में डूब जाऊँ।
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-अनिता कपूर
