प्रेम
प्रेम की यादों में डूबी स्त्री ने
प्रेम की बारिश में डूबते हुए पूछा खुद से
क्या चाहती हो तुम मुझ से
बारिश सिहर सिहर गयी
प्रेम के खुले आकाश में विचरती स्त्री ने
सर उठा कर पूछा अपने आप से
कितना विस्तृत है विस्तार तुम्हारा
आकाश सिमट गया एक बिंदु में
प्रेम में बहती स्त्री ने पूछा स्वयं से
किधर जाना चाहती हो तुम
गंगाजली के छोटे से कलश में समां गयी नदी
अब हर सुबह स्त्री देखती है
बारिश,आकाश और अपने भीतर की नदी को
और फिर ओढ़ कर चादर यादों की
सो जाती प्रेम की मीठी नींद में
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– अनीता वर्मा