भारत

मैं भारत हूँ जो आज सुनो
वही भारत था बरसों पहले
बरसों से भी बरसों पहले
सदियों से भी सदियों पहले

लेते हो तुम क्या टोह मेरी
बस चंद बरसों की उम्र बता
कभी कहते मैं कुछ दूषित हूँ
कभी कहते मैं कुछ विकसित हूँ

सिमटा इतिहास के पन्नों में
तुम कहते मैं पराधीन रहा
परसत्ता के अधीन रहा
ये बात नहीं है सत्य मगर…

मैं था किसके अधीन कभी
मानवता मुझसे उत्पन्न हो
विकसित है चहुं दिशाओं में
ये देन मेरी है दुनिया को

किस धर्म से बाँध रहे मुझको
मैंने जन्मा है धर्मों को
मेरे आंगन में खेल कूद
ये धर्म सभी तो पनपे हैं

पर्वत जो गगन को चूम रहा
वो मेरा ही है वक्ष सुनो
क्षितिज से भी परे कहीं
मेरी सीमाएं विकसित हैं

हर परदेसी आगंतुक को
मैंने अपनाया अपनाकर
मुझसे जो नाता तोड़ सके
है कोई कहीं क्या इस जग मैं

मेरी प्रतिभा को बाँध सके
कोई कैसे कुछ बाँहों में
मैं भारत हूँ मैं सबका हूँ
मैं भारत हूँ सब मेरे हैं

सब मेरे हैं – मैं सबका हूँ
मैं भारत – फिर मैं भारत हूँ

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-निखिल कौशिक

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