– मंजु गुप्ता

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खामोशी एक नदी है

खामोशी एक नदी है
भीतर बहती
उदास,शांत, निःस्वन

कई बार चाँदनी रातों में
गीत गाती
तनहाई में चुपचाप
बरसात में अक्सर
चुप्पी का बाँध तोड़
झरने-सी झरती झर-झर
बहुत खुश होने पर
झील बन जाती
नीली, पारदर्शी, निर्मल

दुखों का कगार छू
आँसू बन जाती
उजले, अमूल्य, निष्पाप

मन इसके तट पर बैठ
बाँसुरी बजाता है
और मैं झूमती हूँ अनायास….

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