सात क़दम

-जय वर्मा

“कभी हमारे भी दिन बदलेंगे। सभी लोग छुट्टियाँ मनाने दूसरे देशों में घूमने-फिरने के लिए जाते हैं और एक हम हैं कि इंडिया भी नहीं जाते!… जब से इंडिया छोड़ा है एक बार भी घर वापिस नहीं गये।” प्रिंस को अब यह सुनने की आदत सी पड़ गयी थी। पत्नी सिम्मी की इन बातों का उस पर कोई असर नहीं होता था।

 “केवल घूमने के लिए हम इंगलैंड नहीं आये थे। यहां आना मेरे इंजीनियरिंग कैरियर के लिए महत्वपूर्ण था। रूड़की से इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद अगर मैं भारत में ही बस गया होता तो शायद मैं अब तक एक्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर बनकर रिटायर्ड होने की सोचता होता। नये चैलेंजिज़, उन्नति तथा नये अनुभवों के लिए ही मैं यहाँ आया था। न जाने कितने प्रोजैक्ट और बाँध बनाने के काम मैं अपने देश के लिए करता। सिविल इंजीनियर बनना उन दिनों भारत में एक सुनहरे पेशे की नींव थी। देश में नई सडकें, नये बाँध, ऊँची इमारतें और बड़े पुल बनने शुरू हो गये थे। पढ़ते समय मेरे भी कुछ सपने थे। मैं भी अपने जीवन में उन्नति और मानवता के लिए कुछ करना चाहता था।”  गर्दन उठाकर चश्मा संभालते हुए प्रिंस धीरे से बोले।

“कितने दिनों से आप वायदा करते आ रहे हैं कि अंग्रेजों की तरह हम भी होलीडे में घूमने के लिए कहीं बाहर गर्म देश जायेंगे। जब हमारी शादी हुई तब आप काम ढूँढ़ रहे थे…..। नौकरी तो आपको भारत में भी अच्छी मिल गयी थी। लेकिन उन दिनों विदेश घूमने तथा युवावस्था के जोश में हम अपने घर वालों और देश को छोड़कर यहाँ बेकवैल, डार्बिशायर के पीक डिस्ट्रिक्ट में रहने आ गये। देवदार, चीड़ और ओक के वृक्षों से घिरी ये मैटलोक की पहाडियाँ गर्मियों में सुंदर लगती हैं। बेकवैल की ठोस बर्फ से भरी घाटियों में नवम्बर के महीने से लेकर मार्च तक पेडों पर पत्ते और ज़मीन पर धूप भी नहीं आती। सुबह अँधेरे में काम पर जाते हैं और अंधेरे में ही घर लौटकर आते हैं। दिन भी इतने छोटे होते हैं कि तीन बजे से ही कार की लाईट्स ऑन करनी पड़ती हैं। कोहरे और ठंड से सिकुड़ते और ठिठुरते ऊनी गर्म कपड़ों में लदे हमें सर्दियों के दिन अँधेरे में ही बिताने पड़ते हैं।” सिम्मी ने सूरज न दिखने की शिकायत करते हुए कहा।

“इंगलैंड में ठंड तो सब जगह होती है। नॉर्थ-ईस्ट की कम्पनी न्यूकॉसल शिपयार्ड के मेनेजमैंट कंसलटेंट का काम छोड़कर मैं पीक डिस्ट्रिक्ट में बसने के लिए आ गया था। सोचा था कि यहाँ मौसम थोड़ा अच्छा होगा।”

“बिजली से लेकर वैल्डिंग तक के काम में आपका हाथ सधा हुआ है अतः जीवन निर्वाह के लिए आप कोई भी इंजीनियरिंग का काम कर सकते थे। सभी अँग्रेज साथी आपको पसन्द करते हैं। फिर आपने लंदन की ब्रांच में क्यों नहीं काम लिया? वहाँ मौसम भी अच्छा है और शहर भी बड़ा है। लंदन में रहना मुझे भी अच्छा लगता है।”

“मैं यहाँ खुश हुँ। विभिन्न पत्थरों के व्यापार करने वाली फ़र्म में डार्बिशायर, बक्सटन, मैटलोक और मेनचैस्टर इत्यादि शहरों में मैनेजमैंट कंसलटेंट का काम करने जाता हूँ। यह मेरी पसंद का ज़िम्मेदारी वाला काम है। अगर मैं एक दिन की भी छुट्टी ले लूँ, बॉस से लेकर एडमिन स्टाफ़ तक सब परेशान हो जाते हैं।”

अगर कभी कोई अँग्रेज प्रशंसा कर देता, “हिंदुस्तानी बड़े ही मेहनती और ईमानदार होते हैं।” प्रिंस का सीना गर्व से फूल जाता था।

“बिज़नेस के कारण हमारी जान-पहचान काफ़ी लोगों से हो गयी है। परन्तु इस प्रदेश में हिंदुस्तानी लोग कम होने के कारण हमारी सोशल लाईफ़ न के बराबर है। हम दोनों ही एक दूसरे के साथी बनकर अपने आस-पास के वातावरण में जैसे कि रम गये हैं।” जल्दी-जल्दी मीटिंग में जाने की तैयारी करते हुए सिम्मी बोली।

कई प्रकार की संस्थाओं के वे दोनों सक्रिय सदस्य बन गये थे। माउन्टेन क्लाइंबिंग, हाईकिंग, स्नो रैस्कयू सोसाइटी, कनूईंग, वनप्रदेश में घूमना, नेचर रिज़र्व, साईक्लिंग और फ़ोरस्ट प्रिज़र्वेशन इत्यादि गतिविधियों में उनका मन लगता था। वे दोनों अपने व्यक्तित्व के अनुसार अपनी विशेषताओं के आधार पर आस-पास के लोगों के साथ काम करने में व्यस्त रहते थे।

टीचर बनने से पहले सिम्मी केक शोप में काम करती थी, जहाँ के बेकवैल टार्ट दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। घुड़सवारी वाले घोड़ों के अस्तबल में भी पार्ट-टाईम काम करने शनिवार और रविवार को जाती थी।

सिम्मी की दुकान वाली सहेली सिंथिया कहा करती थी, “सिम्मी को जानवरों से बहुत प्रेम है। अगर उसका वश चले तो वह भेड़ों के कई मेमने खेतों से उठाकर अपने घर पालने के लिए ले आये।”

कुत्ते शेरू के साथ घूमने, खेलने और देख-भाल करने में उसका दिन बीत जाता था। ‘डोग्स फ़ॉर ब्लाइंड्स’ चेरिटी की सहायता भी वे दोनों करते थे।

अपने बच्चे न होते हुए भी सिम्मी को बच्चों से अति लगाव था। ज़िन्दगी में मेहनत और अनुशासन जैसे वैस्टर्न अनेकानेक तत्व इस दम्पति में समा गये थे।……

आज सिम्मी ने संदूकची खोली। जिसे देखकर वह अतीत के लिये लालायित हो गयी। माँ के द्वारा दिये गये शादी में गहने तथा कुछ कपड़े वह इंगलैंड साथ लेकर आयी थी। दो जड़ाऊ कंगन और अंगूठी देखकर उसे माँ की याद आ गयी। दोनों ही चीजें बहुत सुंदर लग रही थीं। उनकी चमक आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई थी।

 ‘ये गहने न कोई मेरे आर्थिक सहारा बन सके और न ही सजावट का सामान। इन्हें पहन कर कहाँ जाऊँगी? जब से हम लोग बेकवैल मे आकर बसे हैं, न कोई हिंदुस्तानी माहौल, न कोई पार्टी या उत्सव जिसमें कि गहने और भारतीय कपड़े पहने जा सकें।’ बीते दिनों की याद में वह व्याकुल हो गयी। 

 “चाय का समय हो गया है….। तुम कहो तो चाय मैं बनाकर ले आऊँ?” प्रिंस की आवाज़ उसे दूर से आती सुनाई दी।

“मेरी माँ को यह जानकर कभी विश्वास ही न होता कि बिना माँग में सिंदूर भरे और गले में मंगल सूत्र बिना पहने कोई भारतीय सुहागन औरत अपने पति की लम्बी आयु की कामना कर सकती है…?” प्रिंस से बात करते हुए ज़ेवर देखकर मोहित मन से सिम्मी ने संदूकची वापस बंद कर दी।

यहाँ पर पहाड़ी झरनों का स्वर ही आभूषण का काम करता है। सिम्मी अक्सर प्रकृति के चारों ओर फैले हुए सुरम्य सौंदर्य के अद्भुत रूप में खो जाती। स्त्री के मानस पटल पर सुन्दरता के मानसिक स्तर से वह उपर उठ चुकी थी। सुंदरता की क़ीमत और सराहना तो मन के विकास और अंतर्मन के विचारों से होती है। पढ़ाई के नये तौर-तरीकें और टीचर्स ट्रेनिंग सिम्मी ने इंगलैंड में आकर ही की थी। अपनी भारतीय संस्कृति को उसने सहेज कर रखा था लेकिन पश्चिम के रीति रिवाजों की प्रशंसा करते हुए न जाने वह कब वैस्टर्न रंग में रंग गयी। अब तीज-त्योहारों की तारीखें उसे याद नहीं रहतीं। उसके शहर में न आस-पास कोई मंदिर है और न कोई गुरूद्वारा।

रविवार को चर्च में ईसाई धर्म के लोगों को अच्छे कपड़े पहने हुए परिवार के साथ इक्कठे देखकर सिम्मी ने प्रिंस से एकाएक पूछा, “क्या आप बता सकेंगे कि हमारा धर्म क्या हैं?”……हम कौन हैं?.. हम किस धर्म को मानते हैँ?”

“तुम जानो….. अपना-अपना सोचने का अंदाज़ है।” गंभीरता के साथ प्रिंस बोले, ”पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु से उत्पन्न शरीर में ही आत्मा और परमात्मा बसते हैं। उन्हें मैं ढूँढ़ने बाहर क्यों जाऊँ?… इंसानियत ही मेरा धर्म है।”

सिम्मी भावनाओं और अनुभूतियों में घिरी हुई बोली, “मुझे नहीं मालूम है कि इंगलैंड में बस जाने को मैं त्याग और बलिदान कहूँ या फिर वनवास। अन्य स्त्रियों की तरह न तो मैं भोग विलास को ही जीवन का परम लक्ष्य समझती हूँ  और न मेरे भीतर भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन जुटाने की प्रवृत्ति जाग्रत हुई है। सादगी का रहन-सहन जीकर क्या मैंने अच्छा काम किया है? या अपने अरमानों का ख़ून किया है?”

प्रिंस ने सिम्मी का हाथ अपने हाथ में लेकर सहलाया “आज तुम्हारा मन इतना विचलित क्यों हो रहा है? ज़िन्दगी तो यहाँ इंगलैंड में बीत ही गयी अब पिछली बातों को सोचकर क्यों अपने आपको परेशान कर रही हो?”

 “क्या मालूम? अगर जीवन जीने की किसी दूसरी राह का चयन करते शायद और भी अच्छा होता?” आँखों को नीचे झुकाये हुए ही सिम्मी ने कहा।

 “ये सब हिसाब-किताब हमारे बस की बात नहीं। हमें तो परस्पर विश्वास और अपने कथन पर भरोसा है। प्रत्येक दिन जाने अनजाने में हम कितनी आकांक्षाओं और कामनाओं से प्रभावित होते हैं। ख़ुशी मेरे अंदर है, संस्कार बुज़ुर्गों से विरासत में पाए हैं और न जाने अंत समय में हमारा क्या अंजाम होगा?” अपनी सकारात्मक सोच और अनुभव की परिपक्वता दर्शाते हुए प्रिंस बोले।

सिम्मी ने बात बदलते हुए कहा, “बस आप इन्हीं बातों की सोचते हैं। ज़िन्दगी में और भी बहुत कुछ करने के लिए है। हमने क्या जीवन जिया है? …जीवन में क्या हासिल किया है? …किसकी कितनी मदद की है? …बताओ, क्या कुछ सीखा है हमने दुनिया में आकर?”

“अगर हम इन बातों की विस्तृत बहस या उलझन में पड़ गये तो सितम्बर महीने के पतझड़ मौसम का यह दिन ऐसे ही बीत जायेगा। आओ चलें, मैटलोक में हाइट्स ऑफ इब्राहिम या डवडेल की पहाड़ियों में घूमने चलते हैं। न तुम्हें उँचाई का डर है और न ठंड की फ़िक्र। रेडियो एवं टेलीविज़न के अनुसार आज के मौसम की सूचना अच्छी है और धूप निकलने की सम्भावना है। लेकिन इंग्लिश मौसम का कुछ भरोसा नहीं है इसलिए ऊनी स्वेटर, छाता और बरसाती मैक ज़रूर साथ में रख लेना।”

टेलीफ़ोन की घंटी बजी और सहेली सिंथिया से बात करते हुए फ़ोन पर हाथ रखकर सिम्मी बोली,“डार्लिंग सुना आपने…, कैथी की बेटी आईला को डाo मार्क्स ने पेरिस में जाकर आईफल टावर की ऊंचाई पर “विल यू मैरी मी” कहकर शादी के लिए प्रपोज़ किया है।…. वे दोनों यूरोटनल ट्रेन लंदन से कल ही फ़्रांस गये थे।”            प्रिंस हंसकर बोले, ”अरे इन लोगों का क्या कहना? इनकी जो इच्छा होती है ये वही करते हैं। इनका तो काम रोज़ कमाना और रोज़ ख़र्च कर देना है। अंग्रेज़ों से हमारा क्या मुक़ाबला, ये लोग ज़िंदादिल होते हैं। भाई हम ठहरे सीधे-साधे लोग। इन बातों से हमें क्या लेना-देना।”

“हमारे पेरिस घूमने की बात मैं नहीं कर रही हूँ जनाब!.. लंदन तक आप कभी मुझे साथ घुमाने लेकर नहीं गये।  हालांकि डारबी रेलवे स्टेशन से लंदन की यात्रा केवल दो घंटे की है।” 

“भई, बिना किसी वजह हम दोनों क्यों लड़ रहे हैं? इस संदर्भ से हमें क्या मतलब? रविवार की सुबह-सुबह दूसरों की बातें न करके हमें अपनी दिनचर्या के बारे में सोचना चाहिए कि आज कौन से पहाड़ी रास्ते पर घूमने चलेंगे? कैसे कपड़े पहनेंगे और आज खाना कहाँ खाने जायेंगे?”

  “सुबह से आप इतने इतमीनान से आज का दैनिक अख़बार पढ़ रहे हैं, अगर अख़बार पढ़ने से फ़ुर्सत हो तो हम घूमने चलें…?”

“तुम अख़बार से इतनी सौतिया डाह क्यों करती हो? ‘संडे टाइम्स’ को पढ़ना अपने आप में एक हफ़्ते भर की ख़बरों की जानकारी की भूख मिटाना है। परंतु तुम क्यों ऐसा सोचोगी? चलो, मैं घूमने जाने के लिए तैयार हूँ।” अख़बार को एक तरफ़ रखते हुए प्रिंस खड़े हो गये। अकसर इस तरह की नोक-झोंक दोनों पति-पत्नी में आए दिन होती रहती थी।

प्रिंस ने अपने घर ‘हिलक्रैस्ट कॉटेज’ की गैराज से लैंडरोवर कार निकाली। लम्बी स्नेक पास की घुमावदार सड़क पर चलते हुए पहाडियों की हरी घाटियों के रोचक रास्ते से वे मैटलोक पहुँचे। घने पेड़ों के घुप्प रास्ते, झरने और नदी के प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर मन प्रसन्न हो रहा था। बादलों से घिरी घाटियों के बीच से निकलते हुए, दोनों कब पहाड़ी की चोटी पर पहुँच गये, उन्हें पता ही नहीं चला। मेप्लस, बीच, ओक और दूसरे पेड़ों के पत्तों के बदलते सुनहरी रंगों का ख़ज़ाना चारों ओर बिखरा हुआ था।

“आज लंबी सैर हो गयी है रात्रि के अंधेरे से पहले आओ अब घर चलें।” झरने की ध्वनि में सिम्मी की आवाज खो गयी।

सोने जाने से पहले सिम्मी का हाथ लाइट ऑफ करने के लिए स्विच की ओर बढ़ा, वह प्रिंस के हाथ में एक लिफ़ाफ़ा देखकर ठिठकी, “ये क्या है?”

“तुम स्वयं खोलकर देख लो।”

उसने प्रश्न सूचक निगाहों से लिफ़ाफ़ा खोल कर देखा और आश्चर्य चकित रह गयी। चेहरे पर ख़ुशी की लहर दौड़ गयी। उसने अविश्वसनीय भाव भंगिमा से प्रिंस की ओर देखा। कल्पनाओं की सीमा पार हो गयी थी। क्या वास्तव में दो मेडिटरेनीअन क्रूज़ के टिकट प्रिंस ने खरीदे थे? उसे विश्वास नहीं हो रहा था। जल्दी से विचित्र स्फूर्ति के साथ टिकट को उलट-पलट कर देखने लगी। निर्णय नहीं कर पा रही थी कि यह सपना है या यथार्थ। सिम्मी ने प्रिंस के गले में बाहें डाल दीं, “यह करिश्मा कैसे हो गया? अब हम एक या दो देश नहीं बल्कि कई देश घूमने जायेंगे। सुन्दर-सुन्दर जगहों का भ्रमण जल और थल दोनों पर करेंगे। बड़ा मज़ा आयेगा। मैं पहली बार समुद्र देखूंगी।”

 सिम्मी की प्रतिक्रिया और उत्सुकता देखकर प्रिंस मन ही मन मुस्कराये। उन्हें कितना अच्छा लग रहा था कि सिम्मी ‘थैंक यू, थैंक यू’ और बार-बार ‘थैंक यू’ कह रही थी।

अगले दिन से ही सिम्मी ने तैयारी आरंभ कर दी। सूटकेस पर से धूल झाड़ते हुए पुरानी हिंदी फिल्मों के गाने गुनगुना रही थी। चीज़ों को सूटकेस में रखते हुए हाथ तेज़ी से चल रहे थे। ‘मुझे अब भी विश्वास नहीं हो रहा है कि हम होलीडे जा रहे हैं।’

 अपनी सहेली सिंथिया और मारग्रेट को फ़ोन पर हँस-हँस कर सिम्मी बता रही थी, “तुम्हें यक़ीन नहीं आयेगा कि हम दो हफ़्ते के होलीडे पर कल ही क्रूज़ करने जा रहे हैं। घर की चाबी मैं तुम दोनों के पास छोड़ जाऊंगी ताकि हमारी अनुपस्थिति में तुम घर तथा पौधों की देख भाल कर सको।”

“तुम बहुत भाग्यशाली हो, हैव ए गुड़ होलीडे। फिर आकर हमें अपनी यात्रा का आँखों देखा हाल बताना।” सिंथिया ने बधाई दी।

“तुम्हें ख़ुश होना चाहिए और प्रिंस को धन्यवाद देना मत भूलना। तुम्हारी यात्रा सुखद हो। सी यू सून।” मारग्रेट बोली।….         

डार्बिशायर से साऊथहेम्पटन पहुँचने में पाँच घंटे लग गये। पासपोर्ट चैकिंग और सिक्योरिटी से निकलने  के बाद केबिन में पहुँच कर सिम्मी ने जूते उतारे और पलंग पर हाथ-पैर फैलाकर लेट गयी। “ताज्जुब! हॉलिडे में पहले दिन ही इतनी थकान…!” मन हवा से बातें कर रहा था परन्तु शरीर थककर चकनाचूर हो गया था।

शिप के चलने के अनाउन्स्मेन्ट से उसमें नयी ऊर्जा और उमंग आ गयी। “जल्दी चलो प्रिंस“ हाथ पकड़कर दौडती हुई डैक में सबसे आगे पहुँच गयी।

समुद्री पोर्ट के विशाल रोमांचक दृश्य को देखकर दोनों दम्पति प्रसन्न हो रहे थे। साऊथहेंप्टन पोर्ट का किनारा धीरे-धीरे आँखों से ओझल हो गया।

“भूमध्य सागर के बारे में केवल सुना था कि मिश्र और ग्रीस की मानव सभ्यताएँ सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से हैं। अब मुझसे प्रतीक्षा नहीं हो रही है।” मचलते हुए सिम्मी ने कहा।

लहरों की आवाज़ के साथ सपनों के उतार-चढ़ाव में मिलकर मधुर निद्रा न जाने कब आ गयी।

लिसबन, पुर्तगाल में सुबह का सूरज अपनी भव्य सुनहरी किरणों के साथ उदय हुआ। क्षितिज में फैले लाल रंग देखकर वास्कोडिगामा के देश को नमन् किया। चार-पाँच घंटे शहर में घूमे फिर शिप जिबराल्टर के लिए रवाना हो गया। जिबराल्टर चट्टान अपने आप में एक अद्भुत अजूबा है। मिनोर्का और कोर्सिया आईलैंड होते हुए फ्रांस पहुँच गये जहाँ उन्होंने समस्त दिन व्यतीत किया। फ्रांस की विश्वविख्यात सभ्यता और संस्कृति के विकास से प्रभावित होकर उन्होंने आगे की यात्रा मेडिटरेनीअन सागर में स्पेन की तरफ़ अग्रसर की। बारस्लोना में पूरब और पश्चिम की शिल्प कला तथा भवन निर्माण बहुत मोहक थे।

रात में तारों की छाँव में पति का हाथ पकड़कर घूमते हुए सिम्मी ने कहा, “सुनते है कि कश्मीर एवं स्विटज़रर्लैंड धरती के स्वर्ग हैं। वे मैंने कभी देखे नहीं है। परन्तु मैं कहती हूँ कि धरती पर कहीं स्वर्ग है तो इसी होलीडे में है।

यात्रा में तिलस्मी, आर्ट्स, शिल्प, वास्तुकला और कल्चर के समृद्ध नज़ारे देखते हुए यूनान देश पहुँच गये। रास्ते में गहरे नीले सागर के पानी को सूरज अपनी किरणों की चमक से पारदर्शी बना रहा था।

“प्रिंस देखो नीले पानी में मछलियों का संसार साफ़ नज़र आ रहा है। यहाँ छोटी मछलियों के साथ-साथ सील एवं व्हेल जैसी बडी मछलियाँ स्वतंत्रता से तैर रहीं हैं। संतरों के पेड़ों की क़तारें, जैतून के बाग़, हरे और जामुनी अंजीर से लदे पेड़, अंगूर के वाइनयार्ड् और बादाम इत्यादि के रूम सागरीय पेड़ हमने पहले कभी न देखे थे।”

समुद्री यात्रा में डैक पर खड़े सूर्यास्त के आलौकिक रंगों में भीगे हुए सिम्मी को बाहु पाश में भरकर प्रिंस ने प्रेम से कहा, “हनीमून पर हम लोग नहीं जा सके थे इसका मुझे अफ़सोस है। लेकिन मैं अपने मन की बात बताना चाहता हूँ कि वैवाहिक जीवन का यह हमारा सबसे सुन्दर और अविस्मरणीय होलीडे है। अगर मैं एक चित्रकार होता तो इस पल को मैं कैनवस पर उतार देता।”

“अब दो दिन साउथहेम्पटन पहुँचने में बाक़ी हैं। छुट्टियाँ समाप्त होने को हैं और मुझे सुख और दुख दोनों की अनुभूतियाँ हो रही हैं। कल मैं जहाज़ की सबसे ऊँचाई वाले डैक पर घूमने जाऊँगी।”

सुबह जल्दी उठकर सिम्मी ने देखा कि बहुत लोग समुद्री जहाज़ पर घूम रहे थे। कुछ कुर्सियों पर अपने-अपने तौलिया बिछाकर अपनी डैक-चेयर्स को स्विमिंग पूल के पास रिज़र्व कर रहे थे। शिप पर खाने-पीने के विभिन्न प्रकार के व्यंजन मेहमानों के लिए उपलब्ध थे। संभ्रांत लोग अपने-अपने हीरे-जवाहरात, घड़ियाँ एवं डिज़ाईनर्स कपड़े इत्यादि पहनकर घूम रहे थे। एलीट वर्ग के लोग बैस्ट सैलर पुस्तक किंडल पर पढ़ने में संलग्न थे। कुछ लोग लैपटोप कमप्यूटर और ‘आईपैड’ पर काम करते दिख रहे थे। विश्व भर से आये हुए यात्री अँग्रेजी के साथ-साथ दूसरी भाषाएँ भी बोल रहे थें। युवाओं को मोबाईल पर टैक्स्ट करते अपनी दुनिया में मस्त देखकर वह मंत्रमुग्ध थी। ‘कुछ अजनबी परन्तु बहुत से परमानैंट गेस्ट ही नज़र आ रहे थे।’

सिम्मी स्विमिंग पूल के बराबर में रखी दो डैक चेयर्स पर अपने बढ़िया तोलिये बिछाकर प्रिंस को बुलाने के लिए अपने केबिन वापस चली आयी।

केबिन के दरवाज़े पर सिम्मी ने दस्तक दी। लेकिन कोई हलचल न हुई। ‘क्या बात है? हो सकता है प्रिंस कहीं घूमने चले गये, अभी आठ ही बजे हैँ।’ वह मन ही मन सोच रही थी।

वह केबिन में अपनी चाबी से दरवाज़ा खोलकर स्वयं अंदर आ गयी, ’अच्छा हुआ कि सुबह मैंने अपने पास एक चाबी ट्रेकसूट की जेब में रख ली थी।’ 

 ‘प्रिंस अभी तक सो रहे हैं। जगाऊँ या न जगाऊँ?….अब साढ़े आठ बज गये हैं।’ आशंकित निगाहों से उसने बिस्तर की ओर देखा।

“प्रिंस उठिए, आज क्या देर तक सोने का इरादा है? क्या तबीयत ख़राब है? “ वह परेशान हो उठी।

कोई जवाब न मिलने पर उसके हाथ-पैर ढीले होने लगे और उसने प्रिंस को झकझोरा। वह डर से काँप गयी। मन में न जाने कैसे-कैसे बुरे विचार आ रहे थे। पुनः प्रिंस का हाथ थामकर माथे को सहलाने लगी। धुंधली नजर से देखते हुए कहा “उठिए”। सिम्मी ने झुककर प्रिंस का माथा चूमा। आज वह अपने मन की आवाज़ को सुनना नहीं चाहती थी। बार-बार उसकी नज़र प्रिंस के चेहरे पर जाकर रूक जाती थी। पीड़ा से व्याकुल हुई सीने पर सिर रख पागलों की तरह प्रिंस को आवाज़ देती रही। उसने महसूस किया कि यह सब अंतिम बार है। ‘मुझे क्या करना चाहिए?’ मस्तिष्क अनेक दिशाओं में काम करने लगा।  नये-नये विचार उसके मन में उभरने लगे। अपने सफ़ेद स्कार्फ़ से प्रिंस का चेहरा ढँक दिया और सिम्मी दहाड़ मार-मार कर रोने लगी।

‘किसी को इस बात की ख़बर नहीं लगनी चाहिए कि प्रिंस अब इस दुनिया में नहीं हैं।…’ यह सोचकर वह चुप हो गयी और रोना बंद कर दिया। ‘यदि किसी को सच्चाई का पता चल गया तो प्रिंस की आख़िरी इच्छा कैसे पूर्ण हो पायेगी?… प्रिंस की ‘विल‘ के अनुसार उसने अपना मृत शरीर मैनचेस्टर मैडिकल कालेज के अनोटमी विभाग को दान दे दिया था। मुझे इस स्थिति में हिम्मत से काम लेना होगा। साधारण परिस्थिति में डाक्टर जाँच और परीक्षण के बाद मृत शरीर को अंतिम क्रिया के लिए परिवार को सोंप देते हैं। मुझे हर हालत में प्रिंस की बोडी को मैडिकल कालेज में भिजवाना होगा।’ 

अपने दिल की घबराहट को छिपाती हुई वह कमरे की कुर्सी पर बैठ गयी। प्रिंस की ’विल’ के बारे में विस्तार से सोचने लगी, ‘कैसे उनकी इच्छा को पूरा कर सकूँगी? जहाज कल इँगलैंड पहुंचेगा। कल तक कैसे छिपेगी यह बात?’ अंधेरे कमरे के सन्नाटे में उसे अपनी प्रत्येक धड़कन सुनाई दे रही थी।…

दरवाज़े पर खटखटाहट सुनकर सिम्मी काँप गयी। अब मैं क्या करूँ? दरवाज़े की ओर देखते हुए घबराहट से माथे का पसीना पोंछने लगी। मुँह से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था। दूसरी बार दस्तक सुनने पर उसने धीरे से केबिन का दरवाज़ा खोला और बाहर झाँककर पूछा “कौन है? क्या बात है?”

“मैडम आप दोनों नाश्ते करने के लिए नहीं आये। इससे पहले कि हम नाश्ते की सर्विस बंद कर दें, आप ग्यारह बजे तक आकर नाश्ता अवश्य कर लीजिएगा।” वेटर ने विनम्रता से कहा।

अपने होठों पर उँगली रखते हुए बोली, “साहब सो रहे हैं।,,,उन्हें डिस्टर्ब नहीं करना। यदि आप चाहें तो हमारे नाश्ते की ट्रे यहीं कमरे में ला सकते हैं।”

वेटर जल्दी से क़दम रखता हुआ वापिस चला गया और थोड़ी ही देर में नाश्ते की ट्रे लेकर केबिन में आ गया। सिम्मी ने इशारे से मेज़ पर नाश्ता रखवा लिया। चेहरे की घबराहट और परेशानी को उसने छिपाये रखा। उसने वेटर से आँखें मिलाये बिना “थेंक्स” कहा तथा केबिन का दरवाज़ा जल्दी से बंद कर लिया। उसने केबिन की सब खिड़कियां बंद कर दीं, ताकि रोशनी की किरण भी न पहुँच सके।

‘किस पर यक़ीन करूँ?… शिप के कर्मचारियों और पोर्टर्स से कैसे व्यवहार करूँ?’ ‘कितना बताया जाए और कितना नहीं?’ वह सभी से सशंकित हो रही थी। ‘मैं किससे मदद लूँ? एक हिंदुस्तानी पति-पत्नी यात्री जो अक्सर शाम को खाने की मेज़ पर मिला करते थे, उनका केबिन नम्बर भी मुझे मालूम नहीं। प्रबंधकों से सवाल कैसे पूछूँ?  डैथ सर्टिफिकेट का क्या होगा? …उस पर कौन हस्ताक्षर करेगा?….. शिप या होस्पिटल का डॉक्टर?’

इन सब उलझनों में कर्तव्य और प्रिंस की अन्तिम इच्छा पूरी करने के लिए आत्मविश्वास और भी दृढ़ होने लगा। इसी चिंता में उसकी दिमाग़ी हालत बिगड़ने लगी। बैठे-बैठे कभी उसे नींद आ जाती और फिर भयभीत होकर घबरा कर उठ जाती थी।

चुप रहना ही बस एक उपाय सूझ रहा था। इस कठिन समय में वह कोई निर्णय भी नहीं ले पा रही थी।। ऐसा लगता था कि विवेक, बुद्धि और चेतना सब सो गये थे।

‘कैसे करूँ? …प्रिंस भी तो नहीं है सलाह देने के लिए…..। कितनी मुश्किल हो गयी है?  इस दुर्गम परिस्थिति से परेशान और क्रोधित होकर आक्रोश में कोई ग़लत क़दम न उठा लूँ? मुझे सोच समझकर व्यवहार करना होगा? पानी के जहाज़ और इम्मिग्रेशन के नियम मुझे मालूम नहीं हैं कि वे मृत शरीर को मोर्चरी में रखेंगे या जहाज़ से समुद्र में ही दफ़ना देंगें? मुझे हर हाल में प्रिंस की ‘विल’ को पूरा करना है। उसके मृत शरीर को मेनचैस्टर हॉस्पिटल के एनाटमी डिपार्टमैंट को सुपुर्द करना है। यह केवल मेरा पत्नी धर्म ही नहीं बल्कि मानवता का कर्तव्य भी है कि प्रिंस का मृत शरीर ‘एनाटमी डिपार्टमैंट‘ में समय से पहुँच जाये। उनकी अन्तिम इच्छा पूरी करने में कोई भी कमी नहीं होनी चाहिए। मैं अपनी क्षमता और पूर्ण विश्वास के साथ इस काम को करूँगी। हालाँकि ऐसा प्रतीत होता है कि मेरे पक्ष में इस समय कुछ भी नहीं है। ईश्वर मुझे शक्ति प्रदान करें।‘ रह-रहकर प्रश्न मन में उठ रहे थे….

‘चंद दिनों का साथ कितना सुहाना था। सचमुच क्या ये यात्रा हम दोनों को बिछुडने के लिए ही इतना क़रीब लायी थी? ऐसा कभी सोचा न था कि प्रिंस का साथ ऐसे अचानक छूट जायेगा…!’ वह सोच कर दुखी हो रही थी।

धरती की तरफ़ देखते-देखते सिम्मी की आँखें अनायास ही उपर आसमान की ओर उठने लगीं, लेकिन अन्तरिक्ष में तो सब कुछ ख़ाली था। ‘इस क्रूर अनहोनी के लिए मैं किसी को दोषी नहीं ठहरा सकती। क़िस्मत के सामने किसका बस चलता है?…. यहीं आकर बीसवीं सदी के सांइस और विज्ञान के युग में भी इंसान को प्रकृति के सामने हार माननी पड़ती है।’

साऊथहेंप्टन पोर्ट के किनारे को पास आता देखकर सिम्मी के आँसू रोके नहीं रूक रहे थे। निरंतर टूटे बाँध की तरह बह रहे थे। निगाहें झुकाए हुये उसने काँपते ओठों से स्टूवर्ड्स को धीमी आवाज़ में कहा, “मेरे पति के लिए आप कृपया ऐम्बूलैंस बुला दीजिए…………..।”

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(साभार : ‘ब्रिटेन की प्रतिनिधि हिंदी कहानियाँ’, संपादक- जय वर्मा, प्रकाशक- प्रलेक प्रकाशन, मुंबई)

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