1. एक टिमटिमाता तारा

तारों की छाँव में चलते-चलते
एक टिमटिमाता तारा
साथ देता रहा
मुस्कराता हुआ
आँख मिचौली खेलता रहा
कभी आगे की ओर दौड़ जाता
कभी पीछे वह रह जाता
उसका साथ मुझे अच्छा लगता
वह मेरी हिम्मत बन जाता।
कभी वह मेरी बायीं ओर होता
न जाने कब वह दायीं तरफ आकर
साथी बन जाता
मैं मुस्कराती और हँसती
वह भी मेरे साथ खिलखिलाता
कभी मैं आँखें मूंदकर उसे ढूँढ़ती
कि वह कहाँ है?
वह उसी जगह टिमटिमाता मुझे मिलता
मुस्कराता हुआ
हँसता हुआ
खिलखिलाता हुआ।

………………………

2. क्यों चाहूँ नया जन्म, क्यों चाहूँ मोक्ष

अगला जन्म मैंने देखा नहीं
पूर्व जन्म मुझे याद नहीं
देख ली प्यार की दास्ताँ यहीं
स्वर्ग, नर्क दोनों हैं धरा पर यहीं

उमंग दिलों में चतुर्दिशाएं देखीं
पर्व-उत्सव नव चेतना देखी
बसंत ऋतु में अंकुरित धरा देखी
मन के आँगन में नृत्य-रत वर्षा देखी

रिश्तों को सार्थक होते देखा
श्रद्धा-श्रद्धेय का सिद्धान्त देखा
भोर में सुनहरे रंगों को देखा
सूर्य, चन्द्र एवं तारों को संग देखा

जीवन का सुख नयनों में देखा
बाँसुरी की धुन में स्पर्श देखा
मंझधार की तरंगों को झूमते देखा
अँधेरी गलियों में आशा का दीप देखा

क्यों चाहूँ नया जन्म, क्यों चाहूँ मोक्ष?

…………………………………….

3. चल निकल चलें

चल निकल चलें तेरे गुलिस्ताँ से
कौन जानता है कि राह किधर ले जाए
पार हो जाती है कोसों की दूरी
जिस दिन बस देहरी पार हो जाए

दर पर पाँव रखते ही आ जाती है समझ
कि कौन हैं अपने और कौन पराए
कदमों की आहट देती है आने की खबर
वरना दिल का हाल हमें कौन बताए

कांधों पर उठा रखा है बोझ बरसों से
चेहरे की मुस्कुराहट में सब छिपा जाए
सुनाई न किसी को दास्ताँ अपनी
पर बोझिल आँखें तेरा राज बता जाएँ

एक ही दिन में देखे सब मौसम
खुशियाँ, गम, धूप और सर्द हवाएँ
रफ्तार देख ली आखिर जमाने की
क्यों अब जमीं के उस पार जाएँ।

………………………………………

4. चिराग

तेरी रहमत से जी रहे हैं हम
परिधि में रहकर
चिरागों से ज़रा पूछ
अपनी मर्जी से न वे जलते हैं
और न बुझते हैं
उनकी जलती हुई लौ को देख
अपने पास न वे कुछ रखते हैं
लाल अग्नि में जलकर ख़ामोश हो जाते हैं
रोशनी किसको मिली वे नहीं पूछते
अंधेरों में कौन खो गये वे नहीं जानते
उनका काम था राह दिखाना
वे दिखाते रहे
उनकी फ़ितरत थी जलना
वे जलते रहे।

…………………………..

5. जब साजन घर आये

शाम ढले साजन घर आये मैं दुल्हन सी शरमाऊँ
हुई बाबरी मैं तो घर का हर एक दीप जला आऊँ

कदमों क आहट सुनते ही चौखट के पीछे छुप जाऊँ
छुपा-छुपी के खेल-खेल में अपनी सुध-बुध खो जाऊँ

मन पर न काबू दिल की धड़कन न रोक मैं पाऊँ
आज पिया मिलन की आस में गदगद मैं हो जाऊँ

सहमी और शरमाई मैं साजन से नैन न मिला पाऊँ
आँचल भी साथ न दे मैं खुद में सिमट रह जाऊँ

दबे पाँव चलकर मैं दर के पट खोल आऊँ
पलकें झुकी हुई मैं अभिनन्दन भी भूल जाऊँ

जग की न मुझे खबर कोई मैं बावरी हो जाऊँ
मैं तो दिवानी साजन के रंग में ही रंग जाऊँ।

……………………………………………….

6. तुम आ जाओ गगन पार से

चेतना को विश्व में जगाने के लिए
सृष्टि को फिर से बचाने के लिए
तुम आ जाओ गगन के पार से
हाथ में सुदर्शन चक्र लिए

देख लिया विश्व का रूप तुमने यही
मानव है आज विवशताओं में खड़ा
भुलाकर भी कैसे भूल सकता है वो
शोषण और स्वार्थ की भावनाओं से भरा

नभ के कजरारे बादल बने हैं बावरे
अनायास बरस कर व्यर्थ हो जाते हैं कहीं
पीने के पानी की समस्या है भारी
सागर में पानी और धरा पर सूखा कहीं

मनुष्य जब तक अनुशासित न हो जाएगा
त्याग भावना हृदय में न बसा पाएगा
दर्द भरे तूफान का टलना कैसे संभव है
सामाजिक परिवर्तन निश्यच असंभव है

रंग-बिरंगी दुनिया में तर्क भी अजीब है
बढ़े मूल्य प्रस्ताव पर पुलकित होते हैं
निरंतर लड़ रहे हैं देश तेल के लिए
अटल फैसला सुनकर ओपेक का
मौन हो जाते हैं हृदय में आकुल हुए

व्याधियों से मुक्त करने के लिए
तृषित धरा को शान्त करने के लिए
फिर सागर का मंथन करना होगा तुम्हें
विष और अमृत को बांटने के लिए

तुम आ जाओ गगन के पार से
हाथ में सुदर्शन चक्र लिए

……………………………….

7. पत्थरों के शहर में

पत्थरों के इस शहर में
हम घर ढूँढें कैसे
चिने हैं महल यादों के
आजादी का शहर ढूँढे कैसे?

उम्मीदों के दिये जला भी लें
अंधेरों में रंग भरें कैसे
विधाता ने लिख दिया तख्ती पर
उसका रंग छुड़ाएँ कैसे?

मुखौटों के पीछे छुपे हैं चेहरे
इन्सानों को पहचानें कैसे
चट्टानों से टकराकर गूँजती हैं आवाजें
दबे पाँव चले कैसे?

चलकर दो कदम आगे
हट जाते हैं एक कदम पीछे
राहें हैं इतनी मुश्किल
मंजिल पर पहुँचे कैसे?

अंधेरों में रोशनी
और उजालों में हमने अंधेरे देखे
मिलते ही लोग कर लेते हैं आँखें चार
तो पहचानें कैसे?

आँचल में भर ली खुशियाँ और गम
चीर हम बढ़ायें कैसे
हँसी के पीछे छुपी है एक सूरत
मुस्कुराहट हम लायें कैसे?

उलझन है कैसी, तड़पन है कैसी
जग से हम हाल छुपायें कैसे
आँखें हैं मन का दर्पण
इनमें हैं गम सबका
लेकिन अश्रु बहायें कैसे?

…………………………………

8. नारी

आँखों मे पीड़ा
एक भय
एक शर्म
छिपाती हुई
शरमाती हुई
बेबस
सांसों की आवाज़ को सीने मे
दबाये हुए
उसे नहीं है ज्ञात
कि क्या है कारण
परेशानी का
बीमारी का
उसके परिवार की स्थिति का
या उसके बच्चे के स्वभाव का
जिसके एक रोने की आवाज़
से ही वह
हो जाती है बैचेन
वह अपनी बिमारी भूलकर
बच्चे को सहलाती है
चुप करने के लिये
खुश करने के लिये
देती है एक मुस्कराहट
खूब सारा प्यार
फिर भूल जाती है कि
डाक्टर के यहाँ स्वंय को
दिखाने आयी थी
मगर बच्चे की तरफ देखकर
करुणा भरी आवाज में कहती है
संक्षेप मे एक बात
डाक्टर मैं तो ठीक हूँ
बस आप मेरे बच्चे का कर दो इलाज़

……………………………………….

9. फिर से रामराज्य

हर युग में होंगी सीता
हर युग में होंगे राम
हर युग में होगी अग्नि परीक्षा
हर युग में होंगे राज्य
त्रेता युग के तुम अवतार
मानव के भेद मिटाने वाले
अहिल्या को मुक्त कराने वाले
शबरी के बेर बना दिए प्रसाद
तुम तो कल आकर चले गये
त्रेतायुग की दिशा दिखा गये
आज कलयुग का सुन क्रन्दन
क्या नहीं करता तुम्हारा वापिस आने का मन
तुलसी ने लिखी रामचरित मानस
रामानन्द सागर ने बनाया रामायण सीरियल
केवट आज आज भी खड़े हैं नाव लिए
तुम्हें वापिस लाने के लिए
कोई कहता है कि राम ने
धोबी के कहने पर सीता को छोड़ दिया
कोई कहता है कि लव और कुश ने
पिता को युद्ध में हरा दिया
सीता को सोने का मृग लाने वाले
सुग्रीव को राज्य लौटाने वाले
रावण को मांगी तुमसे परम गति
रघुकुल की रीत निभाने वाले
हे मर्यादा पुरुषोत्तम राम
मैं तुमसे आज कहती हूँ
तुम्हें कलियुग में आकर देखना होगा
हिंसा, स्वार्थ और अधर्म को मिटाना होगा
राजनीति को फिर से संभालना होगा
हनुमत को साथ लाना होगा
वरना पूर्ण कैसे होंगे अधूरे सपने
और कैसे होगा फिर से राम राज्य।

…………………………………..

-जय वर्मा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate This Website »