वैश्विक प्रार्थना

गैरों की पीड़ा को समझूँ,
इतनी तो गहराई देना।
देने वाले जब भी देना,
दिल में बस अच्छाई देना।।

लिखना जब भी भाग्य हमारा,
थोड़ी सी नरमी अपनाना।
हो जाये रोटी की किल्लत,
इतनी मत मँहगाई देना।।

माना बोझ उठाना हमको,
जीवन में अपने कर्मों का।
जी लें हम भी जी भर यौवन,
इतनी तो तरुनाई देना।।

अपने अपनों के संग रहें,
नातों में कोई बैर न हो।
विपदा के काले सायों में,
हम को मत रुसवाई देना।।

जब भी पथ विचलित हो अपना,
राहें यदि हो जायें धूमिल।
तूफानों की राह बदलकर,
मीठी सी पुरवाई देना।।

गैरों की पीड़ा को समझूँ,
इतनी तो गहराई देना
देने वाले जब भी देना,
दिल में बस अच्छाई देना।।
***

-डॉ शिप्रा शिल्पी

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