देह की अपनी अवधि है
देह की अपनी अवधि है, साँस का अपना सफर ।
मन का’ पंछी उड़ चले कब, किसको इसकी है खबर।।
पर्व जीवन का मना लें, प्रेमियों के रूप में,
आओ साथी जी लें जीवन, क्यों तपें कड़ी’ धूप में।
है यही चिर सत्य जग का, आके’ फिर जाना हमें
इन क्षणों के मध्य में ही, लक्ष को पाना हमें।
इन पलों को हम सहेजें, प्रेम के संदूक में,
हर किसी का साथ दें हम, प्यास में अरु भूख में *।
खुशबू फूलों से चुराकर, बह चलें धारा के’ सँग *
सावनी इन बारिशों में, हो मिलन का मस्त रँग *
है डगर मुश्किल ये माना, थामना तुम बाहों में,
भींच लेना अंक में, यदि डगमगाऊँ राहों में।
देह की अपनी अवधि है, साँस का अपना सफर ।
मन का’ पंछी उड़ चले कब, किसको इसकी है खबर।
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-डॉ शिप्रा शिल्पी