संवेदनशील मनोवृत्ति

कौशल किशोर श्रीवास्तव

मेलबर्न महानगर का एक चर्चित उच्च विद्यालय। आठवें वर्ष की कक्षा में प्रवीण विद्यार्थियों का समूह, तेरह-चौदह वर्ष के हमउम्र लड़के और लड़कियों की संख्या क़रीब बराबर थी। शिक्षिका मिस रिबेका का प्रवेश, गुड मॉर्निंग से उनका स्वागत। मिस रिबेका ने भी अभिवादन स्वीकार करते हुए ‘थैंक यू’ कहा और एक सरसरी नज़र से सभी विद्यार्थियों का अवलोकन किया। कक्षा की शुरुआत का यह दूसरा सप्ताह था, विद्यार्थियों में उत्साह था और थोड़ा संकोच भी। शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच विश्वसनीय सेतु बनने में कुछ वक़्त लगता है, यह सर्वविदित तथ्य है। मिस रिबेका ने प्रारंभ किया, “मैं शिक्षक के साथ-साथ तुम सभी की दोस्त भी हूँ, मेरी दृष्टि में तुम सभी बराबर हो, यह लैंगिक समानता का युग है, संबंधों में परस्पर सम्मान की अपेक्षा है। अनुशासन और निर्भीक व्यवहार जीवन के आभूषण हैं, तुम्हारे आचरण में उनका समावेश होना चाहिए – विद्यालय के भीतर भी और बाहर भी। इसके साथ ही संवेदनशील होना एक वरदान के समान है, अदृश्य किंतु मानवोचित।”
कक्षा में कुछ देर तक मौन का आलम था। शायद सभी मिस रिबेका के संक्षिप्त कथन की गहराई को समझने का प्रयास कर रहे थे। यह देखते हुए मिस रिबेका ने पुनः कहा, “कोई प्रश्न? कोई जिज्ञासा?”
सामने बैठे मोहन ने पूछा, “मिस, अनुशासन का कोई मापदंड? कोई स्पष्ट विवरण?”
उसी समय हेलेन की आवाज़ आयी, “मिस, संवेदनशील होना क्या होता है? मैंने पहले पहल यह शब्द सुना है।”
“व्यवस्थित समाज के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं : जैसे वयस्क होने से पहले अल्कोहल सेवन वर्जित है, अवांछित नशीला ड्रग लेना वर्जित है, पब्लिक के बीच धूम्रपान करना वर्जित है, अभद्र भाषा का प्रयोग करना अशोभनीय है, इत्यादि। इन नियमों को लागू करना अनुशासन का कार्यक्षेत्र है; इस विद्यालय में भी समय समय पर इसकी सूचना दी जाती है।”
फिर रिबेका ने हेलेन की ओर देखते हुए कहा, “संवेदनशीलता का सामान्य अर्थ है सहानुभूति जो एक अनुभूति है, भावनात्मक प्रवृति है। यह अदृश्य है, परिभाषा रहित है, माप रहित है, एक व्यक्तिगत गुण है। किसी असहाय, दुःखी, या अभावग्रस्त व्यक्ति के प्रति सहानुभूति रखने वाले को संवेदनशील कहा जाता है। यही सहानुभूति मूर्त रूप भी ले सकती है; जैसे भूखे को भोजन देना, बीमार का मुफ़्त इलाज करना, दुःखी को भावनात्मक समर्थन देना, आकस्मिक विपत्ति आने पर आश्रय देना, इत्यादि। इसी महीने जंगली आग की ज्वाला में अनेकों परिवार घर-विहीन हो गये, जो सुखद ज़िंदगी बिताते थे वे शरणार्थी हो गये, एक आकस्मिक विपत्ति के शिकार हो गये। तुमने टेलीविज़न पर देखा होगा कि उनकी सहायता के लिए दूर-दूर से कुछ लोग पहुँच गये और अपने संसाधनों से उनकी भरपूर मदद की। संवेदनशीलता का यह उदाहरण प्रशंसनीय है। जिन क्षेत्रों में युद्ध चल रहा है वहाँ भी ऐसे संवेदनशील लोग सहायता कार्य में जुटे हुए हैं। सरकारी मदद अपनी जगह पर है।”
“आपके सारगर्भित व्याख्यान के लिए धन्यवाद” कई छात्र एक साथ बोल उठे।

एक महीना बाद
रविवार को मोहन का जन्मदिन था। उसी सप्ताह दो दिन पहले शुक्रवार को उसके घनिष्ठ दोस्त मनीष का भी जन्मदिन था। मनीष दूसरे विद्यालय का छात्र था, मोहन के समकक्ष था। छुट्टी के दिनों दोनों प्रायः मिलते, विचारविमर्श करते, और कभी-कभी एक साथ सिनेमा भी देखते। कई वर्षों से दोनों एक दूसरे के जन्मदिन पर हार्दिक बधाई देना, गिफ्ट देना, और अन्य मेहमानों के साथ “हैप्पी बर्थडे टू यू” गाना नहीं भूलते। उल्लास के माहौल में ख़ुशियों के फूल बिखर जाते थे, उनके जन्मदिन की तस्वीरें जीवंत हो जाती थीं।
लेकिन इस वर्ष मनीष के चेहरे पर उदासी की छाप थी। उसके पिता कई महीनों तक ‘कोरोना-वायरस’ के दुष्प्रभाव से ग्रसित थे, आर्थिक रूप से भी तंगहाल थे। इसलिए मनीष ने अपना जन्मदिन सादगी तरीक़े से मनाने का निश्चय किया और मोहन को इसकी जानकारी दी।
“मैं तुम्हारे जन्मदिन समारोह का भार वहन करूँगा, चिंता की बात नहीं है। मेरे माता-पिता सक्षम हैं, उन्हें ख़ुशी होगी,” मोहन ने सुझाव दिया।
“मेरे परिवार को यह कदापि स्वीकार नहीं होगा, उनके स्वाभिमान को ठेस पहुँचेगी। भूलकर भी कभी ऐसा प्रस्ताव नहीं देना।” मनीष की आवाज़ में थोड़ा रूखापन था।
तब मोहन ने संयमित स्वर में कहा, “हम दोनों रविवार को एक साथ जन्मदिन मना सकते हैं, पार्टी मेरे घर होगी। हम दोनों के मित्र और अन्य मेहमान भी आमंत्रित होंगे, धूमधाम से पार्टी होगी। तुम्हारे माता-पिता और परिवार को आमंत्रित करने में मेरे पिता जी पीछे नहीं रहेंगे, बल्कि उन्हें प्रसन्नता होगी। उन्हें तुम्हारे परिवार से सहानुभूति है।”
मनीष ने कहा, “हाँ, मैं समझता हूँ। जब मेरे पिता कोरोना से संक्रमित थे, तब तुम्हारे पिता जी ने उन्हें दो बार फ़ोन किया था और हर संभव सहायता करने का आश्वासन दिया था। मैं उनकी संवेदनशीलता का सम्मान करता हूँ। लेकिन मेरे पिता को तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार नहीं होगा और शायद तुम्हारे पिता अपमानित भी महसूस करें।”
मोहन ने गंभीरता से उत्तर दिया, “तुम्हारी समझ में कुशलता है, सार्थकता है। मैंने इतनी गहराई से कभी सोचा भी नहीं था। फिर हमें क्या करना चाहिए? जन्मदिन मनाना हम छोड़ नहीं सकते, यह एक ख़ुशी का अवसर होता है जिसकी प्रतीक्षा रहती है। एक सप्ताह का समय बचा है, जल्दी ही निर्णय लेना होगा।”
“मुझे सोचने का वक्त दो। कल शाम हम लोग फिर मिलेंगे।”

दूसरे दिन की शाम, मोहन ने मनीष को चॉकलेट का एक टुकड़ा देते हुए मज़ाकिए स्वर में कहा “इसके सेवन से दिमाग़ तेज़ी से काम करेगा।” “स्कूल की व्यस्त दिनचर्या के बाद चॉकलेट का स्वाद बढ़ जाता है, तुम भी लो।”
शीघ्र ही दोनों ने जन्मदिन मनाने संबंधित अपने-अपने सुझाव रखे। निर्णय इस प्रकार हुआ : “जन्मदिन शनिवार को मनाएँगे, मनीष के जन्मदिन के एक दिन पश्चात तथा मोहन के जन्मदिन के एक दिन पूर्व। दोनों परिवारों के बीच भावनात्मक संधि का प्रतीक ! अल्पाहार पर आवश्यक खर्च होगा, फ़िज़ूलख़र्ची नहीं। ग्रीष्मकाल है, इसलिए बारबेक्यू करना उचित होगा। खर्च में दोनों परिवार शामिल होंगे। जन्मदिन का केक हम दोनों अपने ‘पॉकेट मनी’ से ख़रीदेंगे। मोहन के घर के पीछे बड़ा मैदान है, इसलिए आयोजन वहीं होगा।
आगंतुक मेहमानों से आग्रह किया जाएगा कि कोई गिफ्ट नहीं लाएँ। इसके बदले बंद लिफ़ाफ़े में इच्छानुसार कुछ राशि दे सकते हैं जिसे बच्चों के कल्याणार्थ एक स्वयंसेवी संस्था को भेजी जाएगी।”
दोनों के माता-पिता जब इस निर्णय से अवगत हुए तो उन्होंने इसका भरपूर स्वागत किया। शीघ्र ही मोहन और मनीष ने अपने मित्रों को जन्मदिन का आमंत्रण भेज दिया, उनके माता-पिता ने भी कुछ मेहमानों को बुला भेजा। दूसरे ही दिन हेलेन ने कहा कि वह केक बनाकर लाएगी, बाज़ार से ख़रीदने की ज़रूरत नहीं है। मनीष की बहन ने कहा वह रंगीन बलून लाएगी और उसकी दोस्त संगीता सितार वादन करेगी। इसी प्रकार कुछ मित्रों ने मनोरंजन प्रस्तुत करने का प्रोग्राम बना लिया।
आज वह दिन आ गया। मोहन के पिता ने आगंतुकों के स्वागत के लिए उचित प्रबंध कर लिया था, और सामान्य सजावट भी। मौसम सुहाना था, ख़ुशी का माहौल था। मोहन और मनीष ने एक साथ जन्मदिन का केक काटा, तालियों की गूँज दूर तक फैल गयी।
मोहन के पिता ने कहा, “दोस्ती की क़ीमत अनमोल होती है, संवेदनशील दोस्त ज़िंदगी को सार्थक बनाते हैं। इन दोनों की सूझबूझ से हम सभी प्रभावित हैं, उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं।” मनीष के पिता ने कहा, “दोनों दोस्तों ने आज एक कीर्तिमान स्थापित किया है, समाज को नया संदेश दिया है। जन्मदिन पर गिफ्ट लेने-देने के बदले बच्चों के कल्याण के लिए कुछ दान देना सराहनीय है। दोनों को मैं हृदय से बधाई देता हूँ।”
बंद लिफ़ाफ़ा से प्राप्त कुल राशि 550 डॉलर थी। मोहन और मनीष ने सबों को इस अनुदान के लिए धन्यवाद दिया। यह राशि ‘फाउंडेशन फॉर चिल्ड्रेन’ को भेज दी जाएगी। ‘हैपी बर्थडे टू यू’ का गाना पुनः गुंजित हो उठा!

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