धीरे-धीरे हम दलदल में

धीरे-धीरे हम दलदल में
धँसते चले गए।
अपने ख़ुद के बुने जाल में
फँसते चले गए।

हैरी-पॉटर तो गहरी
तन्मयता से पढ़ते
गीता-रामायण पढ़ने से
दूर-दूर रहते
संस्कार हम सभी ताक पर
रखते चले गए।

शिक्षा का मतलब अब है
अच्छे नंबर पाना
कुछ सीखा या नहीं मगर
पट-पट-पट बतियाना
समझे-बूझे बिना किताबें
रटते चले गए।

पाँच सितारा होटल जैसे
अस्पताल अब हैं
वहाँ मरीजों को लाने के
भी दलाल अब हैं
पैसे के लालच में हद से
गिरते चले गए।

***

-आलोक मिश्रा

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