उस क्षितिज से आवाज़ दो हमें कृष्ण

उस क्षितिज से आवाज़ दो हमें कृष्ण
जहाँ दिन और रात ढलते नहीं
विलय होते हों
आकाश में उस सूर्य की तरह उदित हो
जिसकी ऊष्मा धरा पर
इन्द्रधनुष सा श्रृंगार करे
नेत्रों को गहन चिन्तन का विश्राम दे कर
अधरों को बाँसुरी का स्पर्श दो
मुखड़े पर मद्धम सी मुस्कराहट ले कर
वायु को मोरपँख छू कर बहने दो
वेद मन्त्रों से गूँजती ध्वनि का कोई छोर न हो
धरा गगन सृष्टि अब से बस
कृष्णमय हो
उस क्षितिज से आवाज़ दो हमें कृष्ण
जहाँ दिन और रात ढलते नहीं
विलय होते हों

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-पूनम चंद्रा ‘मनु’

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