खुर्ची हुई लकीरें
मेरे नाम को अपनी हथेलियों से मिटाने की कोशिश में
अनजाने में
अपनी ही कुछ लकीरों को भी खुरच दिया था उसने
सुर्ख रंग उभर आने पर
उन हथेलियों को उसी नदी में डुबो दिया था
जो मेरे घर तक आकर झील बन जाती है
फिर कहीं नहीं जाती
कहीं नहीं
अब वो सुर्ख रंग भी मेरा है और वो लकीरें भी
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-पूनम चंद्रा ‘मनु’