शब्द और स्वर की बातचीत

शब्द ने स्वर से
अवतरित होने का रहस्य पूछा
तो स्वर ने कहा
सृष्टि
शब्दों की गुफाएँ
मैं तपस्वी
मैं बारिश की बंद से आया
शब्दों से लिपट
बादलों से टपका
बिजली में कड़का
हृदय में दहका
चाँदनी की तार में लिपट
तबले की थाप में थिरका
मैं उपवन के उन्माद में हूँ
सुख-दुःख की नाव में हूँ
पर मैं सदैव मग्न हूँ
मैं किसी की यादों में
कैनवास के रंगों में भी
तुम्हारे,
शब्दों के अवसाद में लिपट
शीतल वाणी का छँद
मैं हर शब्द का वो संदेश हूँ
जो तुम्हें ओढ़
दीवाना सा
खिलखिलाता हूँ
इंद्रधनुष
हो जाता हूँ
हँसते हुए
शब्दों ने कहा
चाहे हमें कितना तोड़ लो
मरोड़ लो
द्विअर्थी जामा भी पहना दो
पर
गोली तो तभी चलेगी न
जब दुनाली सही और
बिना ज़ंग लगी होगी।

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-अनिता कपूर

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