‘आत्मनिर्भर भारत’ : कितना ज़रूरी और कितना सफल
नितीन उपाध्ये
“आत्मनिर्भर” मेरे विचार में आज किसी भी व्यक्ति/परिवार/शहर/राज्य/देश का पूर्णरूपेण आत्मनिर्भर होना सरल नहीं है। अब मैं स्वयं का ही उदाहरण लूँ तो मैं सुबह से लेकर शाम तक लगभग हर बात के लिए दूसरों पर निर्भर होता हूँ। फिर चाहे दूध हो या सब्जी, अन्न हो या वस्त्र, आज के समाज में हर कोई एक दूसरे पर निर्भर है। आज का विश्व अपनी किसी विशेषता को अपना मुख्य सामर्थ्य (Core Strength) बनाने का है, और फिर अपनी इसी विशेषता से अपना स्थान बनाना पड़ता है।
भारत एक समय सोने की चिड़िया था, जब वह अपने को लगने वाली हर वस्तु का उत्पादन और खाद्य पदार्थों की कृषि किया करता था। पर उसके बाद गंगा में काफी पानी बह चुका है और हम कई क्षेत्रों में पिछड़ गए थे और कई में ऊपरी पायदानों पर थे। पर इसी बीच विश्व के अन्य देश भी आगे बढ़ने के प्रयास कर रहे थे और यह एक सतत दौड़ है शायद जीवन जीने की दौड़। हम सबने बचपन में कछुयें और खरगोश की कहानी सुनी ही है पर इस कहानी का अगला संस्करण भी है, जिसमें खरगोश फिर से कछुए को दौड़ के लिए आह्वान देता है और इस बार जीत जाता है। अगली बार कछुआ दौड़ का मार्ग बदलकर खरगोश को बुलाता है और इस बार मार्ग में नदी होती है और कछुआ धीरे-धीरे आकर भी जीत जाता है और अंत में दोनों समझदारी का सबुत देते हुए एक साथ मिलकर दौड़ने का निर्णय लेते है। आज की दुनिया में आत्मनिर्भरता का अर्थ शायद उत्तरी कोरिया हो सकता है, पर वह आज क्या है, ये हम सब जानते है।
औद्योगिक उत्पादन के क्षेत्र में एक संकल्पना है क्षैतिज एकीकरण (Horizontal Integration) या ऊर्ध्वाधर एकीकरण (Vertical Integration)। अधिकतर उद्योग अपने मुख्य सामर्थ्य पर ध्यान केंद्रित कर के अपने व्यवसाय को horizontal integration के द्वारा बढ़ाते है, बहुत कम व्यवसाय Vertical integration के तहत कच्चे माल से लेकर अपने उत्पाद के उत्पादन की सभी प्रक्रियाओं और वितरण स्वयं ही करते है ।
इन सब बातों को कहने का मेरा यही तात्पर्य है कि आत्मनिर्भर होने के लिए कुछ ही क्षेत्रों में कुशलता प्राप्त करना भी काफी होता है। भारत देश स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद धीरे-धीरे ही सही बहुत से क्षेत्रों में काफी तरक्की कर रहा है, हरित क्रांति, तकनीकी शिक्षा का प्रसार के साथ ही सूचना और दूरसंचार तकनीक के क्षेत्र में भारत ने काफी झंडे गाड़े हैं। पर भारत की तरक्की के रास्ते में आज भी कई रुकावटें है जैसे बढ़ती जनसँख्या, अशिक्षा, सामाजिक और जातिगत असुंतलन, स्त्रियों की कम भागीदारी, आरक्षण, भ्रष्टाचार और लोगों का श्रम के प्रति उदासीनता। इन सबकी वजह से भारत अगर दो कदम आगे बढ़ाता है तो एक कदम पीछे खिसक जाता है।
अंत में, मैं यही कहूंगा की भारत को आत्मनिर्भर होना बहुत ही जरुरी है, और वह कुछ हद तक सफल भी हुआ है पर सफलता की इस राह में अभी और भी आगे जाना है, और आज जिस तेजी से भारत विश्व में अपना स्थान बना रहा है।
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