पीर बहुत पर नीर नहीं

बरसों से सूखी आँखें है, पीर बहुत पर नीर नहीं
इन आँखों के पथराने में, क्या तुम ने मेरे मुस्काने में
महसूस की है कोई नमी कभी

फूलों की मदमाती खुशबू, पागल हमको कर जाती थी
दिल बाग़ बाग़ हो जाता था, जब नयी कली मुस्काती थी
उन फूलों के मुरझाने में, क्या तुम ने मेरे पगलाने में
महसूस की है कोई कमी कभी
इन आँखों के पथराने ….

अम्बर के जो तारे गिन, हम बिरह की रात बिताते थे
जिन तारों से बातें कर हम खुद ही खुद शर्माते थे
उन तारों के खो जाने में, क्या तुम ने मेरे सो जाने में
महसूस की है कोई ग़मी कभी
इन आँखों के पथराने ….

हवा के झोकों पर चढ़ कर, हम आसमान छू आते थे
बादल भी अपना हाथ पकड़, इठलाते और इतराते थे
उस हवा का रुख मुड़ जाने में, क्या तुम ने मेरे रुक जाने में
महसूस की है कोई ज़मीं कभी
इन आँखों के पथराने ….

सपने पलकों में पलते थे, हम पलकें नहीं झपकते थे
उस रंगीं दुनिया में अक्सर हम सजते और संवरते थे
उन सपनो के मर जाने में, क्या तुम ने मेरे अफ़साने में
महसूस की है कोई ग़मी कभी
इन आँखों के पथराने ….

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-मीनाक्षी गोयल नायर

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