मुझे गीत से प्रीत नहीं है
गा ना सकी तो ये मत कहना
मुझे गीत से प्रीत नहीं है
रो ना सकी पर मन की गागर
हौले हौले रीत रही है
इतने ज़ख़्म दिए जीवन ने
रख ना सकी मैं लेखा जोखा
रुँधे कंठ से कह ना सकी कि
मन पर कैसे बीत रही है
रो ना सकी पर मन की गागर
हौले हौले रीत रही है
हिमखंड हो गयी थी छाती
अपने दुःख की चट्टानों से
देख हिमालय तेरे ग़म का
पता लगा बस शीत यही है
रो ना सकी पर मन की गागर
हौले हौले रीत रही है
शब्द मिले हैं भरे भाव भी
अनुभव का तो भरा पिटारा
पर कंठ बेचारा कैसे गाए
धड़कन में संगीत नहीं है
रो ना सकी पर मन की गागर
हौले हौले रीत रही है
शाम ढले जब यादें भीतर
टकराती , शोर मचाती हैं
कैसे कह दूँ अब मत आना
और कोई भी मीत नहीं है
रो ना सकी पर मन की गागर
हौले हौले रीत रही है
सभी गिले शिकवे है तब तक
जब तक है साँसो की सरगम
एक बार ये लय टूटी तो
फिर जुड़ने की रीत नहीं है
गा ना सकी तो ये मत कहना
मुझे गीत से प्रीत नहीं है
रो ना सकी पर मन की गागर
हौले हौले रीत रही है।
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-मीनाक्षी गोयल नायर