लेकर के अगला जन्म

जो इस हृदय में है छुपी वो बात न बतला सकूँ
लेकर के अगला जन्म ही शायद मैं तुझको पा सकूँ

संग में हवाओं के बसंती खुशबू है झूमती
ये चंद्र की किरणें मेरी पलकों को क्यूँ है चूमती
जो मैं समझ पाया कभी तो तुझको भी समझा सकूँ
लेकर के अगला जन्म ही शायद मैं तुझको पा सकूँ

साँसों में बजती बांसुरी, तेरे ही नाम की ताल पर
मैं बांधता हूँ ख़ामोशी को, तेरी अपनी, चाल पर
इक दिन लिखे तू गीत वो जिसको कभी मैं गा सकूँ
लेकर के अगला जन्म ही शायद मैं तुझको पा सकूँ

मैं पास होता हूँ तेरे पर तुझको तो दिखता नहीं
क्यों नाम तेरा संग मेरे, वो जन्मों से लिखता नहीं
हाथों में अगली बार तेरा नाम मैं लिखवा सकूँ
लेकर के अगला जन्म ही शायद मैं तुझको पा सकूँ

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                                    -नितीन उपाध्ये

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