इक मुसाफ़िर राह से भटका हुआ

इक मुसाफ़िर राह से भटका हुआ
इक दिया मुंडेर पर जलता हुआ

एक पत्ता शाख से गिरता हुआ
इक परिंदा आस्माँ छूता हुआ

एक तितली फूल पर बैठी हुई
एक मकड़ा जाल में उलझा हुआ

ज़र्द पत्ते हर तरफ़ उड़ते हुए
और हवा का हौसला बढ़ता हुआ

एक धरती धूप में तपती हुई
एक दरिया बेख़बर बहता हुआ

कोई आहट दूर से आती हुई
एक दरवाज़ा कहीं खुलता हुआ

बेसबब सारे खिलौने तोड़ कर
एक बच्चा ज़ोर से रोता हुआ

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-अखिल भंडारी

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