मैं नारीवादी हूँ
तुम कहते हो– मैं नारीवादी हूँ
क्योंकि मैं प्रगतिवादी हूँ।
तुम अधिकार की बात करते हो,
मैं अस्तित्व की दुहाई देती हूँ।
मेरी लड़ाई समानता की है –
जहाँ मेरी सोच पर, मेरी चाल पर,
मेरा अधिकार हो, मैं चुन सकूँ –
अपनी ख़ुशी, अपनी हँसी,
अपनी देह पर अपना अधिकार चाहती हूँ।
हाँ, समाज की ज़िम्मेदारियों से
बख़ूबी परिचित हूँ,
इसलिए– मर्द विरोधी नहीं हूँ मैं, और
विरोधी हो भी कैसे सकती हूँ
मैंने ही तो उसे जना है, पाला है,
और
यह मेरा सामर्थ्य है।
मगर अफ़सोस कि –
पितृसत्ता का लबादा पहने
तुम मुझे निर्बल समझकर लूटते हो–
यहाँ तक कि सामूहिक तौर पर!!
अगर निर्बल कहते हो और निर्बल मानते हो
तो एक निर्बल पर हाथ उठाना,
उसकी अस्मिता लूटना–
भला कहाँ का सामर्थ्य ??
मैं मापदंड की वस्तु नहीं
मुझे आँकना, जाँचना छोड़ दो, ताकि –
मैं अपने आपको भरा हुआ महसूस कर सकूँ
क्योंकि –
मैं एक इच्छा हूँ, हौसला हूँ, भावना हूँ, धैर्य हूँ,
समर्पण हूँ, तुम्हारा आधार हूँ, तुम्हारा सुकून हूँ।
हाँ, तो हूँ –
मैं प्रगतिवादी हूँ
मैं नारीवादी हूँ।
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-कुल दीप