सेदोका

ओस बूँदों सी
सरल औ निश्छल
तुम्हारी ये मुस्कान
ढही आस को
दे जीने की वजह
फूँके नूतन प्राण।

बदली रुत
सावन डाकिया ले
आया पुराने ख़त
भूली यादों की
भीगी-भीगी चिठ्ठियाँ
सुलगा रहीं मन।

छुआ हवा के
हाथों ने हौले से
नदिया के नीर को
बज उठी हैं
नदी की कलाई में
लहरों की चूड़ियाँ।

प्रेम- जुनून
क़ायदा ना कानून
मिटना लगे चंगा
जले बेबाक
एक ओर दीपक
दूजी ओर पतंगा।

*****

-कृष्णा वर्मा

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