हाइकु
रुत की ख़ता
चुप्पियों को दे गई
गीतों का पता।
सर्दी का छोरा
माना नहीं लाने से
हिम का बोरा।
हिम उत्पात
आँगन, छत, छज्जे
काँपे हैं हाड़।
तुमने मुझे
जब-जब नकारा
और सँवारा।
गिरीं बौछारें
झुलसी दिशाओं की
देह सँवारें।
ऋतु-संचार
बतकहियों की भी
आई बहार।
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-कृष्णा वर्मा