माहिया
यादों की गहन झड़ी
ढलकें ना आँसू
पलकें ले बोझ खड़ीं।
दिल बाँचे यादों को
काँधे तरस गए
अपनों के हाथों को।
उलझी जीवन- पाँखें
भूल गई आँसू
गुमसुम भीगी आँखें।
हम कुछ ना कह पाते
लब आज़ाद सदा
मर्यादा आ बाँधे।
*****
-कृष्णा वर्मा
हिंदी का वैश्विक मंच
यादों की गहन झड़ी
ढलकें ना आँसू
पलकें ले बोझ खड़ीं।
दिल बाँचे यादों को
काँधे तरस गए
अपनों के हाथों को।
उलझी जीवन- पाँखें
भूल गई आँसू
गुमसुम भीगी आँखें।
हम कुछ ना कह पाते
लब आज़ाद सदा
मर्यादा आ बाँधे।
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-कृष्णा वर्मा