
क्या हारा क्या जीत गया
समय बहुत सा बीत गया
बहुत समय था रीत गया।
अनुभव आपहि बोलेगा
क्या हारा क्या जीत गया।।
जीवन किसी नाव की भाँति
हिचकोले से हमें हिलाती
समय आप पतवार बनाकर
वर्तमान आगे ले जाती।।
सूखे फूल बहे जाएँगे
भूतकाल कहे जाएँगे
वह भविष्य माला होगी
जो वर्तमान में गढ़ जाएँगे।।
संयम की रेखा पर चलकर
जीवन जीना सीख गया।
अनुभव आपहि बोलेगा
क्या हारा क्या जीत गया।।
राख ख़ाक हो जाना सबको
माटी में मिल जाना कलको
क्या होगा कल किसने जाना
राम नाम ही देना मन को।।
एक प्रेम की नदी बहाकर
उसकी धारा को अपनाकर
लिख देना हर तट पर जाकर
झूठा सब मैला-सा पाकर।।
सुख-दुःख दोनों जीवन में
कुछ छिपा रहा कुछ दीख गया।
अनुभव आपहि बोलेगा
क्या हारा क्या जीत गया।।
आँसू सस्ते बिक जाएँगे
सिसकी नीचे गिर जाएँगे
हिचकी रुक रुक कर पूछेगी
बीते पल क्या फिर आयेंगे।।
झूठा है अभिमान बनाना
भर-भर मुट्ठी रेत दबाना
हर बीता लमहा पूछेगा
तुम्हें प्रश्न उत्तर बतलाना।।
कुछ लमहा बारिश में सूखा
कुछ बारिश में भीग गया।
अनुभव आपहि बोलेगा
क्या हारा क्या जीत गया।।
समय बहुत सा बीत गया
बहुत समय था रीत गया।
अनुभव आपहि बोलेगा
क्या हारा क्या जीत गया।।
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– आशीष मिश्रा