
ब्रिटेन का पतझड़
मानो धरती हरी नहीं
सोने की लगती एक परात
पत्ते मटक-मटक बिखरे
जैसे जाते कोई बरात
उड़ते पत्ते, झड़ते पत्ते
गिरते पत्ते, पड़ते पत्ते
कहीं हवा में तैर रहे
कहीं फ़िज़ा में सैर करें
हर कोनों पर इनकी मेड़
रंग-बिरंग पातों का ढेर
कहीं सजी है एक कतार
रंगोली नीचे ऊपर पेड़
हैं लाल गुलाबी पीले पत्ते
गले पड़े कहीं हरे हैं पत्ते
अपने ब्रिटेन के पतझड़ में
हैं गिरे पड़े पर सजे हैं पत्ते
इस मौसम की अलग बयार
पतझड़ में सावन बौछार
नीचे वाला पत्ता कहता
तू भीगा मैं सूखा यार
कुछ पर अब भी फूल खिले
कुछ के पत्ते धूल मिले
पत्ते जीवन समझाते
सुख-दुःख दोनों बतलाते
मज़बूत पेड़ के साथी
लटके थे मोटी टहनी
आज जमीं पर हैं बिखरे
बह जाएँगे थेम्स नदी
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– आशीष मिश्रा