1. राम-सरल हृदय

स्वयं से जब पहचान करेंगे
सबको अपने राम मिलेंगे

सरल हृदय है पहली नीति
वरना ना भगवान मिलेंगे

तनिक कृपा मिल जाय अगर
हे राम तेरा वरदान कहेंगे

माया मोह मलीन है झूठा
सच का केवल मान करेंगे

श्रद्धा की माला होगी जब
भाव स्वयं सब बात करेंगे

कोलाहल में रुकना कैसा
हम तो मौन के साथ रहेंगे

अँधियारे की बात ना करना
उजियारे का सम्मान करेंगे

निश्चित ही आशीष मिलेगा
जब हनुमान श्री राम कहेंगे


2. बीता हुआ समंदर


बीता हुआ हर इक समंदर याद आता है
मुझको मेरा बचपन बराबर याद आता है

वो जहाँ सीखा बहुत कुछ यार थोड़े में
पल बहुत ज़्यादा वो सुंदर याद आता है

मेरे नये हर आज के नीचे पुराना है
भूलता बाहर से, अंदर याद आता है

आज मुझमें है चमक कुछ लोग कहते हैं
वो मुफ़लिसी वाला बवंडर याद आता है

वो तालाब, वो नदी जो कभी बाढ़ में बही
उस गाँव के ऊपर का अंबर याद आता है

आशीष देकर चल दिए जिस माह माँ-बापू
वो नवम्बर वो दिसंबर याद आता है

बीता हुआ हर इक समंदर याद आता है
मुझको मेरा बचपन बराबर याद आता है


3. दिन निकलते ही

    दिन निकलते ही पुराना हो गया
    रात का आना दुबारा हो गया

    शाम के आते पहर ने कह दिया
    मैं अँधेरे का ठिकाना हो गया

    जागते हैं हम सपन में आज भी
    आज भी देखा दीवाना हो गया

    जो कही दिल ने पुरानी बात फिर
    फिर वही झूठा तराना हो गया

    जीतना हर बार किसको है मिला
    जीतना ख़ुद को हराना हो गया

    उड़ रहा आकाश पंखों के बिना
    भूगोल पर इतिहास लिखना हो गया

    दिन निकलते ही पुराना हो गया
    रात का आना दुबारा हो गया


    4. क्या लिखते हो

      क्या लिखते हो मिटा देते हो
      कुछ अनदेखा दिखा देते हो

      आईना धूल रखता है सहेजे
      रूमाल निकाला हटा देते हो

      सपनों की चादर में रंग मिला
      फिर हवा में ख़ुशबू मिला देते हो

      सच तुम्हारी आदत अज़ीब-सी है
      कभी पास कभी दूर दिखाई देते हो

      कलम से स्याही जो बिखरे
      ग़ज़ल तो कभी गाना लिखा देते हो

      जुबां पर नाम तेरा है मगर
      कहानी अधूरी सुना देते हो

      क्या लिखते हो, क्या मिटाते हो
      खुद को कैसे यार छुपा लेते हो?

      लमहों का किस्सा है इन अश्कों में
      पलकों में बंद कर छुपा लेते हो

      *****

      ©️आशीष मिश्रा, ब्रिटेन

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