
फूस की सीढ़ी
डॉ आरती ‘लोकेश’
समाचार-पत्र में कल के आयोजन की खबर खूब चमक रही थी। साध्वी गौर से सब पढ़ ही रही थी कि फ़ोन की घंटी बजी।
“साध्वी! तुम नहीं आई कल अभीप्सा के पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में?” हर्षाली ने पूछा।
“कैसा रहा कार्यक्रम?” अखबार को पुन: तह बनाकर साध्वी ने ऐसे ही जमा दिया कि उसने उसे देखा ही न था।
कैसे बताती वह कि जिस पुस्तक का विमोचन था, उसके पन्ने-पन्ने पर उसने अध्यापिका के समान जाँचकर सुधार करवाया था और शिष्या के समान सुधार के नियम बताकर भविष्य में त्रुटिहीनता और गुणवत्ता के लिए तैयार किया था। अपनी पहचान के प्रकाशक से उसकी भेंट करवाई थी। इसी पुस्तक पर उसकी संस्तुति से ही उसे ‘शब्द गौरव’ ईनाम मिला, जिसकी उद्घोषणा का डंका मीडिया में बज रहा था। विमोचन के निमंत्रण-पत्र के लिए उससे मार्गदर्शन लिया गया था और इसकी रूपरेखा में उसके नाम के पहले अक्षर का भी कहीं उल्लेख न था।
“कार्यक्रम तो शानदार था ही। बड़े-बड़े लोग उसके अतिथि बनकर आए थे।” हर्षाली हर्षित और अचम्भित थी।
“अंतरिक्ष की उड़ान के लिए रॉकेट लगते हैं, माँझे की डोर नहीं।” साध्वी ने अनुमोदन किया।
मन में सोचने लगी कि जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि वाली पंक्ति कितनी असंगत हो चली है। लोग तलवार पिघलाकर सैंकड़ों सुइयों का निर्माण करने की कला में माहिर हो गए हैं अब।
“तुम्हें बहुत याद किया।”
“किसने?” साध्वी के आहत मन की भीतरी तह की सहज जिज्ञासा को अब भी आशा थी कि उसे याद करने वाली वह हो जिसके याद न करने से ठगे जाने का सा अहसास उसकी साँसों को फूस सा सुलगाए दे रहा है।
मन ने भरमाया कि वह गई नहीं पर मित्रों से जानने को कान तरस रहे थे कि विमोचित पुस्तक में उसके योगदान का उल्लेख किया गया था। यदि ऐसा है तो वह उसकी तरक्की की सीढ़ी बनने पर पुन: गर्व कर उठेगी, भले ही फूस की सीढ़ी की तरह ऊपर चढ़ने के बाद उसे जलाया ही गया था।
“मैंने और किसने पगली!” हर्षाली ने रोष जताया।
“हम्म!…” ठंडी अँगीठी पर धरी काठ की हाँडी के समान साध्वी का स्वर शीत रहा था।
“अभीप्सा बहुत खुश थी। बहुत संवेदनशील, भावुक और स्नेही लड़की है। मुझसे कह रही थी कि उसे मेरी लघुकथाओं में एक अलग ही धार दिखती है। मैं उसकी अगली पुस्तक के लिए लघुकथाएँ सुधारने में उसकी मदद करूँ।”
साध्वी नाम की हाँडी भी आँच पर ऐसे ही चढ़, हँसते-हँसते स्वाह हो गई थी।
“वह अभी बहुत सीढ़ियाँ चढ़ेगी। नई सीढ़ी निर्माण की प्रक्रिया में है।”
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