
ब्लडी कोठी
– दिव्या माथुर
‘चोर भी दो घर छोड़कर डाका डालता है, मम्मी।’ बड़े बेटे सुमित की बात सुनकर मानसी का दिल दहल गया; अपने ही छोटे भाई के लिए यह क्या कह गया सुमित? उसके पति अभिनव की मृत्यु को अभी एक हफ़्ता ही तो हुआ था; बच्चे और सम्बन्धी तो क्या, उसे लगा कि हफ़्ते भर में जैसे सारी दुनिया ही बदल गई थी।
‘यह आप क्या कह रहे हैं?’ सास के दिल पर लगी ठेस को महसूस करते हुए बड़ी बहु सानवी की प्रश्नभरी दृष्टि पति की ओर उठी।
‘तू ये अच्छे-अच्छे मुहावरे कहां से सीख आया, सुमित? ग़ुस्से में मानसी ने पूछा तो सुमित ने नज़र चुरा ली, मन ही मन वह भी पछता रहा था कि कम से कम मां के सामने उसे ऐसा नहीं कहना चाहिए था।
‘मम्मी जी, आप इनकी बात को दिल से न लगाइए। ये इनके नहीं, चाची जी के शब्द हैं। चाचा-चाची की बातों में आकर कहीं हम आपस की प्यार-मुहब्बत ही न खो बैठें, सुमित।’ सानवी की बात खरी थी किंतु सुमित फिर चिढ़ गया।
‘चाचा-चाची ठीक ही तो कहते हैं, अमित और आरुषि को मम्मी ने हद से ज़्यादा सिर पर चढ़ा रखा है।’ तिरछी नज़र से देखती हुई सानवी जैसे पति को बताना चाह रही थी कि कम से कम उसे समय और स्थान देखकर बात करनी चाहिए।
‘अजीब बात है; अमित और आरुषि कहते हैं कि मैं तुम दोनों को ज़्यादा चाहती हूं।’ मानसी एक ठंडी सांस लेती हुई बेटे-बहु के पास से उठ गई।
अपने को कितना भाग्यशाली समझती आई थी मानसी कि उसका परिवार एक सुखी परिवार था; किसी के घर में कोई कमी नहीं थी, किसी में लड़ाई-झगड़ा नहीं, कोई तेरी-मेरी नहीं। सुमित और सानवी न्यू-यौर्क में रहते थे और बेटी महक और उसका पति डैनियल औस्ट्रेलिया में। साल में एक ही बार तो आना होता था उनका किंतु जब भी आते, तोहफ़ों से लदे-फ़दे। बस एक ही कमी रह गई थी; सुमित और सानवी के अपनी कोई औलाद नहीं थी किंतु वे अमित-आरुषि के बच्चों अर्णव और अनन्या पर जान छिड़कते थे।
मानसी को समझ नहीं आ रहा था कि अभिनव के मरते ही घर ऐसे कैसे बिखरने लगा। क्या अभिनव के पास कोई जादू था या फिर उनके डर से कोई बोलता नहीं था। बेटों ने तो अभिनव की तेरहवीं का भी इंतज़ार नहीं किया और लड़ने लगे। सुमित दिल्ली पहुंचा तो तैश में था। वह चाचा-चाची के कहे में आकर तो अमित ताऊ-ताई के बहकावे में आकर अपने ही घर की शांति नष्ट करने पर तुले थे। ससुराल वालों को तो जैसे मौका ही मिल गया था मानसी के घर में हस्तक्षेप करने का और उन्होंने घर को कुरुक्षेत्र का मैदान बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। क्या मानसी की ही आंखे बन्द थीं जो वह देख नहीं पाई कि उसके बेटे-बहुओं को पट्टी पढ़ाई जा रही थी? वह जानती थी कि अमित-आरुषि ताऊ-ताई के साथ बहुत हिल-मिल गए थे किंतु उसने इसे अन्यथा नहीं लिया था।
अभी हाल ही में तो चाचा-चाची पूरा एक महीना अमेरिका में सुमित और सानवी के साथ रहकर लौटे थे; उनके पांव ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। सुमित-सानवी के महल जैसे घर और उसमें सजे आधुनिक उपकरणों के बारे में जब वे अमित-आरुषि को बढ़ा-चढ़ा कर बताते तो उन्हें लगता कि वे यहां केवल झक मार रहे थे। जानते हुए भी कि देवर-देवरानी उसके परिवार में मन-मुटाव पैदा करने का प्रयत्न कर रहे थे, मानसी ने उनसे कभी यह भी जानने का प्रयत्न नहीं किया कि वे अमेरिका में सुमित को क्या पाठ पढ़ा कर आए थे क्योंकि वह जानती थी कि सानवी चाचा-चाची की बातों में आने वालों में से नहीं थी किंतु यहां तो उसका अपना बेटा ही बहक गया था। अभिनव के होते हुए उसने कभी किसी की परवाह ही नहीं की थी और न ही कभी किसी की हिम्मत हुई कि कोई चूं भी कर जाए।
‘शांति-पाठ के लिए मन्दिर बुक कर दिया था न तूने अमित?’ मानसी ने तय किया कि वह तेरहवीं के सम्पन्न हो जाने तक अपने ऊपर अंकुश रखेगी।
‘हां मम्मी, पंडित जी कह रहे थे कि हमें तीन बजे तक हौल ख़ाली कर देना होगा।’ अमित ने रूख़े स्वर में जवाब दिया।
‘आरुषि, सुबह तुम बिज़ी थीं, हलवाई आया था। ज़रा उसे फ़ोन पर मेन्यू बता देना।’ मानसी ने कहा।
‘मैंने उसे दोपहर को ही फ़ोन पर बता दिया था।’ आरुषि भी मुंह सुजाए बोली।
‘करें-धरें सब हम और भैय्या-भाभी चले आते हैं अपना हक़ जमाने।’ अमित फूट ही तो पड़ा।
‘कैसी बातें कर रहा है तू अमित?’ चाहकर भी मानसी चुप न रह सकी। मन ही मन सोचने लगी कि बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां सुभान अल्लाह!
‘ठीक ही तो कह रहे हैं ये, मम्मीं। कभी इलैक्ट्रिशियन को बुलाओ तो कभी गैस वाले को, कभी टौएलेट्स बन्द तो कभी छत टपकने लगी। इस ब्लडी कोठी को सम्भालने के लिए अमित ही को तो भागते रहना पड़ता है। तब कहां होते हैं आपके प्यारे बेटा-बहु?’ अमित से चिपक कर खड़ी आरुषि ने सास को उलाहना दिया तो मानसी के ग़ुस्से का पारावार न रहा।
‘आरुषि, तुम्ही लोग रहते हो इस ब्लडी कोठी में तो इसे ठीक कराने क्या कोई और आएगा?’
‘साल में एक बार भैय्या और महक आते हैं और सब उनके गुण गाते नहीं थकते। कभी उन्होंने पूछा हमसे कि घर की अपकीप कैसे करते हैं हम?’ अमित बोला।
‘सुमित या महक की जायज़ाद को किराए पर उठाने से पहले तुमने तो उनसे झूठ को भी नहीं पूछा कि उन्हें कोई एतराज़ तो नहीं या कि जो किराया आ रहा है, कहीं उन्हें उसकी ज़रूरत तो नहीं।’
‘जब वे यहां रहते ही नहीं तो उन्हें क्या औबजैक्शन हो सकता है? ख़ाली पड़े पड़े कोठी का जो हाल होता…’ आरुषि ने दलील पेश करनी चाही।
‘उनकी जायज़ाद से नब्बे हज़ार रुपये महीना किराया आ रहा था अब तक। इसी ब्लडी कोठी के किराए की वजह से मज़े उड़ाते रहे हो तुम सब।’ मानसी बोलती ही चली गई, ‘अर्णव और अनन्या के ऊपर शिफ़्ट हो जाने के बाद भी तुम्हें चालीस हज़ार तो मिल ही रहे हैं। नीचे वाली मंज़िल की रीफ़र्बिशमैंट के बाद सत्तर-अस्सी हज़ार और मिलने लगेंगे। इस ब्लडी कोठी में मज़े उड़ाओ तुम और इसकी अपकीप करें विदेश में बसे तुम्हारे भाई-बहन, भई वाह!’ मां को ग़ुस्से में देखकर वे दोनों चुप लगा गए। उन्हें अन्देशा नहीं था कि मानसी उन्हें यूं लताड़ भी सकती थी।
घर में एक ख़ौफ़नाक सन्नाटा छा गया, जिसमें अर्णव और अनन्या की आवाज़ें आसमान में घिरे काले बादलों में कभी-कभी बिजली की सी कौन्ध छोड़ जातीं। बजाय पति का शोक मनाती, मानवी बच्चों के झगड़े सुलझाने में लगी थी। अभिनव ज़िन्दा होते तो मजाल थी किसी की कि वे मानसी से इस बद्तमीज़ी से पेश आते!
अभिनव की आकस्मिक मृत्यु को मानसी के लिए झेलना ही बहुत कठिन था, उसपर बच्चों की ये तू-तू मैं-मैं। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि कोई ऐसे अचानक उठकर चला जाएगा। पिछले रविवार की शाम की ही तो बात है। रोज़ की तरह, हल्के भोजन के बाद अभिनव सामने ही बाग में टहल रहे थे कि उनके सीने में जलन होने लगी; लौटकर वह लेट गए। मानसी ने कच्चा दूध पीने को दिया, फिर पुदीनहरे की दो गोलियां भी दीं किंतु जलन थी की बढ़ती ही चली गई। दफ़्तर से अमित लौटा तो वह पिता को अस्पताल ले चलने की ज़िद करने लगा।
‘डाक्टर से मज़ाक उड़वाना है तो चलो।’ मानसी और अमित उन्हें ज़बरदस्ती कार में बैठाकर ग्रेटर कैलाश स्थित एक प्राइवेट अस्पताल की ओर चल दिए। अभी पांच मिनट भी नहीं हुए थे कि अचानक अभिनव की तबीयत बिगड़ने लगी; वे सीधे एमर्जैंसी में पहुंचे। डाक्टर ने बताया कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। जब मानसी और अमित को उनसे मिलने दिया गया तो वह बहुत कमज़ोर लग रहे थे किंतु ख़तरा टल गया था। रात के बारह बजे के क़रीब अभिनव ने अमित से घबराई हुई मानसी को घर ले जाने को कहा जो वहां से टस से मस होने को तैय्यार नहीं थी। डाक्टर के इस आश्वासन पर कि अभिनव अब ख़तरे से बाहर थे और उन्हें आराम की आवश्यक्ता थी, वे दोनों ही घर लौट आए। रात के क़रीब डेढ़ बजे फ़ोन पर सूचना दी गई कि अभिनव को दिल का एक भारी दौरा पड़ा और इस बार वे उन्हें बचा नहीं सके।
पड़ौसियों और अभिनव के मित्रों ने क्रिया-कर्म सम्बन्धी सब काम सम्भाल लिए थे। मानसी, अमित-आरुषी एवं अर्णव-अनन्या सभी एक सकते की सी हालत में थे। सुबह-सुबह निगम बोध घाट पर अभिनव का अंतिम संस्कार कर दिया गया। मानसी को घर ऐसा ख़ाली लग रहा था कि जैसे वहां से केवल अभिनव ही नहीं, बहुत सारे लोग अचानक चले गए थे।
सुमित-सानवी कहीं जाकर तीसरे दिन ही पहुंच पाए थे। उनके रहने की व्यवस्था ऊपर अर्णव और अनन्या के कमरों में की गई थी, पोता-पोती नीचे दादी के कमरे में वापिस आकर आश्वस्त थे। समय की नाज़ुकता को देखते हुए किराएदार साहनीज़ अपना बाथरूम-टौएलेट शेयर करने कि लिए राज़ी हो गए थे।
‘दिस ब्लडी कोठी इज़ आवर्स एंड वी हैव टु शेयर टौएलेट्स!’ सुमित फिर भड़क उठा था और साहनीज़ अपना सा मुंह लेकर रह गए।
‘कोई बात नहीं बेटा, कुछ ही दिनों की तो बात है। हमें पता होता कि ऐसा होगा तो …’ अशांत मानसी ने सुमित को शांत करना चाहा।
‘आपको तो कुछ नहीं पता था मम, डैड इतने दिनों से बीमार थे, आपने हमें बताया तक नहीं, अमित हमें एक फ़ोन ही कर देता…’ सुमित भाव-विह्वल हो उठा।
‘वी वर रन्निंग लाइक हैडलैस चिकंस, डैम्न इट…’ अमित को भी ग़ुस्सा आ गया।
‘मोबाइल्स के ज़माने में भागते-दौड़ते भी फ़ोन किया जा सकता है, अमित, पर तुम तो चाहते ही नहीं थे कि हम लोग समय पर पहुंच पाते।’
‘वाट डू यू मीन?’ मेज़ पर घूंसा मारते हुए अमित बोला।
‘मदर्स डार्लिंग, यू वेरी वेल नो वाट आई मीन।’
‘चुप हो जाओ, बहुत हो गया, अभी तुम्हारे डैड की तेरहवीं भी नहीं हुई है और तुम दोनों भाई चूहे-बिल्ली की तरह लड़ रहे हो,’ मानसी का दिमाग़ भन्ना रहा था। कहीं वह बुरा सपना तो नहीं देख रही थी?
‘मुझे तो बस आप यह बता दीजिए, मम्मी, कि हमें डैड की डेथ के बाद ही ख़बर क्यों दी गई?’
‘सब इतना अचानक हुआ, सुमित, कि…?’
‘एक ब्लडी कोठी के लिए ये लोग इतना गिर गए कि आख़िरी वक्त हम डैड से मिल भी न सके।’ मां के सीने से लगा सुमित सुबकने लगा तो मानसी घबरा गई कि कहीं अमित यह न सोचे कि वह सुमित की तरफ़दारी ले रही थी।
‘वाट दि हैल इज़ ही टौकिंग एबाउट, मम?’ कहता हुआ अमित भाई की ओर लपका तो आरुषि उसे ज़बरदस्ती घसीटती हुई नीचे ले गई।
अर्णव और अनन्या अवाक खड़े थे; ताऊ-ताई जी पहले जब भी अमेरिका से आते थे, इस तिमंज़ली कोठी में ख़ुशियों का गदर मच जाता था, जिसे जीवन भर की कमाई लगाकर अभिनव और मानसी ने बड़े प्यार से बनवाया था आने तीनों बच्चों के लिए। बीच के खन में अभिनव-मानसी के साथ अमित-आरुषि और अर्णव-अनन्या रहते थे। सुमित के लिए नीचे वाला फ़्लैट था। महक को दूसरी मंज़िल ही पसन्द थी, जिसकी छत पर एक स्पोर्ट्स-रूम भी था। विवाह के बाद, महक वाले फ़्लैट को भी किराए पर चढ़ा दिया गया था। अमित की तनख़्वाह पूरी की पूरी बैंक में जमा हो जाती थी; आरुषि एक महारानी की तरह रहती और ख़र्च करती थी। घर में दो नौकरानियों के अलावा उसने झाड़ू-पोचे और कपड़े धोने-इस्त्री करने वाली अलग लगा रखी थीं। माली और ड्राइवर तो थे ही। मानसी को यह समझ नहीं आ रहा था कि अमित और आरुषि को और क्या चाहिए?
अर्णव-अनन्या जब पांच और छै वर्ष के हुए तो आरुषि ने ऊपर की मंज़िल पर बने दो शयन-कक्ष उनके लिए और ख़ाली करवा लिए। बाक़ी के बचे दो शयन-कक्ष, बैठक, रसोईघर और बाथरूम-टौएलेट अब भी किराए पर चढ़े थे। सुमित ने कोठी में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी और करोड़पति मां-बाप की इकलौती बेटी सानवी को भी पैसे की कोई कमी नहीं थी किंतु चाचा और चाची ने अपने अमेरिका-वास के दौरान सुमित को न जाने क्या पट्टी पढ़ाई कि वह बात बात में भड़कने रहा था।
‘हमने तो सुना है कि तुम्हारे हिस्से में आरुषि अपना बुटीक खोलने जा रही है।’ न्यू-यौर्क पहुंचते ही चाची ने सुमित और सानवी को एक नई ख़बर सुनाई।
‘घर किराए पर उठाने से यह बेहतर रहेगा, हैं न सुमित?’ सानवी ने पति को सावधान करना चाहा कि घर के मामले में वह चाचा-चाची की बात न ही सुने तो अच्छा था।
‘सानवी, तुम तो बहुत ही गलिबल हो।’ चाचा बोले थे।
‘सचमुच सानवी, आरुषि धीरे-धीरे पूरी कोठी पर अधिकार कर लेगी और तुम्हें कुछ पता भी नहीं चलेगा, ऊपर की मंज़िल तो उसने पहले ही हथिया ली है।’ चाची ने हमदर्दी दिखाते हुए कहा।
’चाची जी, हमें तो दिल्ली लौटना नहीं है, आरुषि को करने दें जो वह करना चाहती है, क्यों सुमित?’
‘सानवी के मां बाप ने तो अपनी सारी धन-जायज़ाद उसके नाम कर दी है। तुम्हारा अपना क्या है?’ सानवी को डर लगा कि मंथरा सी चाची का जादु कहीं सुमित पर चल ही न जाए।
‘घर-जवांई बनकर न रह जाना, सुमित। भैय्या ने कुछ सोच समझकर ही ग्राउंड फ़्लोर तुम्हारे नाम किया होगा, हैं के नईं?’ चाचा ने बड़े भाई का हवाला दिया तो सुमित को लगा कि एक केवल चाचा-चाची थे, जिन्हें उसकी सचमुच परवाह थी। इस विषय को लेकर सुमित और सानवी में जब तब बहस छिड़ने लगी।
अभिनव की मौत का तो नहीं किंतु कोठी के हर हिस्से में मातम हो रहा था। मानसी को फ़िक्र ही नहीं ख़ौफ़ था कि इन हालात में उसके पति की तेरहवीं केवल एक तमाशा न बन कर रह जाए।
अगली ही सुबह बेटी महक और डैनियल भी आ पहुंचे, जिन्हें हवाईअड्डे से लिवाने के लिए कुनाल मामा और जयश्री मामी पहुंचे थे, जो हाल ही में आस्ट्रेलिया में उनके मेहमान रह चुके थे। कम से कम डैनियल के तो वे विश्वास-पात्र बन ही चुके थे।
‘अरे, तुम दोनों कितनी मेहनत करते हो, घर की सफ़ाई से लेकर बर्तन मांजने तक, कपड़े धोने और इस्त्री करने से लेकर भोजन पकाने तक सारे काम ख़ुद करते हो और वहां देखो अमित और आरुषि के क्या ठाठ हैं। दोदो फ़ुल टाइम नौकरानियों के अलावा माली, ड्राइवर और दो पार्ट-टाइमर्स हैं उनके पास। यह सब तुम्हारे फ़्लैट के किराए के बल पर ही तो हो रहा है।’ महक के तो नहीं किंतु डैनियल के कान अवश्य खड़े हो गए थे।
महक और डैनियल के रहने की व्यवस्था ग्राउंड-फ़्लोर पर की गई थी, जहां इन दिनों लिपाई-पुताई का काम चल रहा था।
‘अपना हिस्सा लेकर चाहे तुम किसी भिखारी को दे दो पर ऐसों के लिए क्यों छोड़ो जो अपने ही बड़े भाई और बहन का हिस्सा हड़पने की सोच रहे हों।’ कुनाल मामा उन्हें समझा रहे थे।
‘हां, तुम्हारे हिस्से में अर्णव और अनन्या को सैटेल करने से पहले उन्हें तुमसे कम से कम पूछ तो लेना चाहिए था।’ मामी ने आग में घी डाला। महक ने उनकी बातें अनसुनी करना चाहीं किंतु डैनियल उनकी बातों को बड़े ध्यान से सुन रहा था।
‘बट दे शुड हैव ऐट लीस्ट इंफ़ौर्म्ड अस, डार्लिंग।’ डैनियल ने महक से कहा। महक के दिमाग़ में आया कि उसके निजी मामले में डैनियल क्यों टांग अड़ा रहा था? पिछले चार सालों में डैनियल एक बार भी अपनी मर्ज़ी से दिल्ली आने को राज़ी नहीं हुआ था। ससुर की अकस्मात मृत्यु का समाचार सुनकर वह झटपट दिल्ली चलने को तैय्यार हो गया था; क्या उसे अपनी पत्नी के हिस्से की जायज़ाद में सचमुच दिलचस्पी थी? महक को यह बात अच्छी नहीं लगी।
‘डैनियल, वाए डू वी नीड पापाज़ हैंड-आउट्स?’ महक ने उससे पूछ ही लिया।
‘वाए नौट? यू वर हिज़ डार्लिंग डौटर, ही हैज़ लैफ़्ट इट फ़ौर यू। अवर किड्स विल बी सो प्राउड औफ़ देयर इन्हैरिटैंस वन डे, हनी।’ डैनियल का तर्क सुनकर महक को लगा कि शायद वह ठीक ही कह रहा था।
कोठी में अब सचमुच मातम मनाया जा रहा था – ऊपर की मंज़िल पर सुमीत-सानवी के साथ चाचा-चाची, पहली मंज़िल पर अमित-आरुषि के साथ ताऊ-ताई जी और ग्राउंड फ़्लोर पर महक-डैनियल के साथ मामा-मामी – सब के सब ब्लडी कोठी और किराए को लेकर परेशान थे।
तन और मन से थकी हुई विधवा मानसी को तीन-मंज़िला कोठी में एक कोना भी नहीं नसीब नहीं हुआ जहां वह पति का शोक ठीक से मना सकती।
‘अमित ने तुम्हें समय पर ख़बर कर दी होती तो कम से कम तुम अपने पिता से आख़िरी बार मिल तो लेते।’ चाची ने अपनी बात फिर दोहराई।
‘क्या जाने अमित और आरुषि का प्लैन सफ़ल हो ही गया हो। उनके कहने में आकर जीजाजी ने शायद तुम्हें जायदाद से बेदखल कर दिया हो।’ चाचा बोले।
‘जो भी हो, हमें नहीं चाहिए इस कोठी का एक भी कमरा। चलो सुमित, हम लोग होटल में जाकर रहते हैं।’ तंग आकर सानवी बोली।
‘नहीं नहीं, अमित-आरुषी यही तो चाहते हैं कि तुम ग़ुस्से में उठकर चल दो ताकि मानसी तुम्हें धिक्कारे। होटल चले जाओगे तो लोग भी यही कहेंगे न कि बाप की तेरहवीं तक भी नहीं रुक सके।’ चाची घबराई कि कहीं उनका बना बनाया खेल न बिगड़ जाए।
‘तुम्हें किसका डर है सुमित? यह तुम्हारी कोठी है, कम से कम जब तक भैय्या की विल नहीं पढ़ी जाती तब तक रुको।’ चाचा ने कहा।
उधर मां बिखरे हुए अमित को सम्भाल रही थीं, जो आरुषि पर अपनी झल्लाहट उतार रहा था।
‘ऊपर नीचे सब जगह पांव फैलाकर तुमने ही उन सबको बोलने का मौका दिया है, आरुषि। भैय्या और महक दोनों मुझे ही दोषी ठहरा रहे हैं।’
‘अमित, तुम अपना सारा ग़ुस्सा मुझपर उतारना चाहते हो तो ठीक है। मां ने तुमसे कहा था न कि भैय्या और महक को फ़ोन पर बता दो कि डैड को अस्पताल ले जा रहे हैं।’
‘मैंने सचमुच नहीं सोचा था कि डैड …’ अमित की रुलाई छूट गई।
‘सुबह ही तो फ़ोन कर दिया था अमित ने। कुछ घंटों की देरी के लिए सुमित न जाने क्यों इतना शोर मचा रहा है।’
‘चाचा-चाची ने उन्हें न जाने क्या-क्या बताया है कि वे हमसे इतने ख़फ़ा हैं।’ आरुषि बोली।
‘जो भी हो, अभी तो शांति रखो। लोगों की आंख-कान इन दिनों हमारी कोठी पर ही लगे हैं,’ मानवी ने उनसे चुप हो जाने की प्रार्थना की।
‘ब्लडी कोठी, मुझे अपना हिस्सा भी नहीं चाहिए, मम। जैसे ही पापा की तेरहवीं हो जाएगी, हम दुबई चले जाएंगे। आरुषि के मम्मी-पापा हमें कब से वहां सैट्टल होने के लिए कह रहे हैं।’
नीचे डैनियल और महक को समझाया जा रहा था कि इस दुनिया में नादान बनकर नहीं जिया जा सकता। यह कोई छोटी मोटी बात नहीं थी, इस समय कोठी की क़ीमत कम से कम बीस करोड़ तो होगी ही। वैसे बात पैसों की नहीं, उसूल की थी।
‘अमित-आरुषि ने तेरा एक बाल भी बांका किया न महक, तो मैं उनकी ऐसी की तैसी कर दूंगा।’ गोल-मटोल मामा अपने फूले हुए गाल बजाते इधर से उधर लुढ़कने लगे।
‘डोन्ट वरी, वी आर विद यू, 24/7।’ जयश्री मामी के इशारे पर कुनाल डैनियल के गले में हाथ डाले बाहर निकल गया ताकि वह महक से अकेले में बात कर सके।
पीछे वाली बगिया में एक हफ़्ते के लिए हलवाई बैठा दिए गया था; इतने बड़े परिवार का चाय-नाश्ता, दोपहर और रात का भोजन घर की दो नौकरानियां तो अकेले सम्भाल नहीं पातीं। घर के सभी सदस्य बहुत व्यस्त थे; बेचारों को नहाने-धोने का भी होश नहीं था।
दोपहर के भोजन के लिए परिवारजन बगिया में इकट्ठे हुए। थालियों में कते-सूत से चेहरों को निहारते हुए लोग एक दूसरे से नज़र मिलाने को भी तैय्यार न थे। हाथों में छुरी-कांटे न हुए तीर-तलवार हो गए; सबकी आंखों में गोला बारूद भरा था। मानसी को लगा कि जैसे अभिनव का प्रिय बगीचा कुरुक्षेत्र में बदल गया हो। सफ़ेद साड़ी में लिपटी मानसी भगवान से मन ही मन पूछ रही थी कि अभिनव के जीवन भर की कमाई और उसकी जी-तोड़ मेहनत का क्या यही सिला मिलना था उसे? यकायक वह फूट-फूट के रोने लगी।
‘दादी, क्या हुआ? आप रो क्यों रही हो?’ अनन्या आकर दादी से चिपट गई।
‘आप सभी दादी का दिल दुखा रहे हैं।’ ग़ुस्से में सबकी ओर देखता हुआ अर्णव बोला। पोता-पोती दादी को लेकर बैठक में चले गए।
देवर-देवरानी, जेठ-जेठानी और भाई-भाभी ने बारी-बारी आकर मानसी के कन्धे थपथपाए कि वह अपने को नहीं सम्भालेगी तो कैसे चलेगा। घर लौटने से पहले सभी ने एक दूसरे से बचे हुए भोजन के पैकटस ले जाने का आग्रह किया और फिर पैकेटस उठाए वे सब अपने अपने घर लौट गए; खेल ख़त्म हो चुका था।
जल्दी ही मानसी का पूरा परिवार बैठक में उसके इर्द-गिर्द इकट्ठा हो गया; सब अवसाद से भरे थे। जादुगर के चुटकी बजाते ही जैसे बेहोश को होश आ जाए, कुछ ऐसी ही हालत थी उन सबकी।
‘सौरी मम्मी, पापा की डेथ ने मुझे पागल कर दिया था।’ सुमित और कुछ न कह सका। उसने मां को सीने से चिपटा लिया, जो हिचकियां ले लेकर एक बार फिर रोने लगीं कि जैसे उनका दिल चूर-चूर हो जाएगा।
‘दे डिड नौट नो हाउ टु एक्सप्रैस देयर ग्रीफ़।’ सानवी ने अपना फ़लसफ़ा झाड़ा, जिससे सब सहमत थे।
‘मम्मी, मेरे नाम तो बस आप अपना प्यार कर दीजिए। ज़िंदगी भर आपने मुझे कोई कमी नहीं होने दी। मैंने जो कुछ भी एचीव किया है, आपकी वजह से ही तो किया।’ महक भी मां से आ चिपकी।
‘महक ठीक कह रही है। वादा कीजिए कि हमारे जीते जी अब आप कभी नहीं रोएंगी।’ अमित बोला।
‘आप नाहक रो रही हैं, आपके तीन-तीन कमाऊ बच्चे हैं, दो प्यारे प्यारे पोता-पोती और …’ सानवी ने कहा।
‘और यह ब्लडी कोठी।’ दीवारों और छत पर नज़र दौड़ाती हुई मानसी बोली।
‘नहीं, हमारी यह प्यारी प्यारी कोठी, जो हर साल हमें पनाह देती है।’ सुमित ने कहा।
‘यह न होती तो हम सालाना पंछी कहां आकर बैठेंगे?’ महक बोली।
कुछ ही देर में सबने अपने अपने गिले-शिकवे दूर कर लिए थे, एक दूसरे से ‘सौरी’ कहते हुए सब सुबक रहे थे और मानसी एक बार फिर उन्हें ढाढस बंधाने में जुटी थी।
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