वैलेन्टाइन्स-डे या मुसीबत

– दिव्या माथुर

शादीशुदा हो या कुँवारे, वैलेन्टाइंस-डे पुरुषों के लिए खासतौर पर एक अच्छी खासी मुसीबत है। बीवियों और गर्ल-फ़्रेंड्स की फ़रमाइशें हफ़्तों पहले शुरू हो जाती हैं। वो अच्छे हैं जो जानते हैं कि उनसे क्या अपेक्षित है। वक्रोक्तियों, उलाहनों और असहयोग के बाद भी नासमझ बने रहने वाले पुरुषों की जोड़ीदार पीहर या कोप भवन में जा बैठती हैं; जूते चप्पल तक चल जाते हैं।

इस सबके बावजूद, वैलेन्टाइंस-डे की शाम को एक ख़ूबसूरत गर्ल-फ़्रैन्ड या पत्नि की कमर में हाथ डाले हार्ड-रौक कैफ़े में क़दम रखने के लिए पुरुष क्या नहीं करते। महंगे तोहफ़े, गुलदस्ते और वैलेंटाइंस कार्ड के अलावा होटलों के बिल्स और खाने-पीने का ख़र्चा भी उठाने को तैय्यार रहते हैं। एकल अथवा कुँवारे अपने सहकर्मियों और मित्रों को साल भर मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाते; पीठ पीछे भी उपहास के ही पात्र बने रहते हैं।  

वैलेंटाइंस-डे पर पौश पार्लर्स, सुनार और फूल बेचने वालों की तो चांदी है। बेहूदे और गन्दे चुटकलों से भरे सुर्ख़ लाल और गुलाबी ग्रीटिंग कार्ड्स, जिसमें तीर से घायल दिल चित्रित होते हैं, ख़रीदने के लिए दुकानों में लम्बी-लम्बी कतारें लगती हैं। ‘फ़ौर यौर लवली लेडी, सर,’ सुना सुना कर एक गुलाब दस से बीस पाउंड्स में बिकता है। महंगे से महंगे तोहफ़े ख़रीदने के लिए पत्नियां और गर्ल-फ़्रैंडस इधर से उधर दौड़ लगाती और उनके जोड़ीदार बेमन से लिथड़ते चलते हैं। रात के बारह बजे तक महंगी शैम्पेन, केकड़ा, लौबस्टर्स, औइस्टर्स और सैमन मछली जैसे महंगे से महंगे व्यंजन ऑर्डर किये जाएंगे; जोड़े आलिंगन में बंधेंगे; चूमें-चाटेंगे, बड़े बड़े वादे होंगे, जो अगली सुबह किसी को याद भी नहीं रहेंगे।  चंद घंटों में बिलियन्स का व्यापार, एक और वैलेंटाइंस-डे ओवर।

*** *** ***

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate This Website »