
कौन कब कहाँ है
कौन कब कहाँ है मिट्टी जानती है
किसका निशाँ कहाँ है मिट्टी जानती है
काशी काबा क्या है है दैरो हरम में क्या
किसमें कहाँ ख़ुदा है मिट्टी जानती है
सूरज चंदा तारे नज़रें यह नज़ारे
किसमें क्या छुपा है मिट्टी जानती है
तख़्त से क़बर तक फ़ासिला है कितना
तेरे गुनाह सारे मिट्टी जानती है
बोलती है तुझमें बुनती है दस्ताने
सच ओ झूठ तेरे मिट्टी जानती है
ख़्वाब है यह दुनिया तेरे जागने तलक
तेरी है क्या हक़ीक़त मिट्टी जानती है
रंगमंच ए ज़िंदगानी औ यह कि रदार तेरा
है और देर कितनी मिट्टी जानती है
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– पंकज शर्मा